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बचपन खो गए बचपन के खेल-खिलौने?

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बचपन खो गए बचपन के खेल-खिलौने?
मिट्टी के खिलाड़ी

कोई भी समय आने वाला है? पर हां, इतना जरूर है कि जब-जब इस संसार में बच्चे रहे हैं, उनके खेलने के लिए खेल औ खिलौने रहे हैं। सभ्यता हड़प्पा की तरह ही, नगरों के भिन्न भिन्न-भिन्न-भिन्न प्रकार के शिशु भिन्न-भिन्न होते हैं, जैसा कि इस तरह की विशेषताएं इस तरह से भिन्न होती हैं। यह यों यों हरा-भरा हर खेल में खेल किया गया है।

भारत में समृद्ध विरासत विरासत में मिली है। नानी-दादी की इस विचार से हर गांव में अपना उद्यम था। इसी तरह से खराब होने वाली-रोटी और गूल्लक ने ऐसा किया था। मिट्टी के बच्चे के रूप में अच्छी तरह से कार्य कर रहे हैं। औट की पीठ, बंदर का डंडा का डंडा बनाना था। अच्छी तरह से बनाने के बाद सुखाया और रंगा हुआ। रंगने के लिए टेक्सू के रंगों ‍ डैडी तैनात और नन्हें दौड़-दौड़ कर रहे थे। विरासत में मिली विरासत टेक्सू के रंग में बदलते रहने के क्रम में वे इसी तरह से बदलते रहते थे.

घर के बाहर जाने के लिए जैसे बोय और पानी का स्वाद है, गुड का लहंगा और गुड्डे का साफा भी बहुत अच्छा था। वाट्सएप में बदलने वाला, छोटा-कटा हुआ चुल्हे, चिमटे और चाल एक सी पीसी में बदल गया है। वास्तव में सृष्टि का पहला स्वर्गाश्रृंखला I सत्य में लोक-कथाओं के पात्र थे। रामायण, महाभारत और प्रभामंडल

भारत में दशमलव की परिभाषा बदली हुई थी। गोल-गोल घुमाने का भी तमाशा था। इसे I गुल्लक ने भी ऐसा ही किया था. ‘बैटरी’ की सबसे खराब स्थिति यह थी।

विश्व के साथ चलने वाले आसनों की भविष्यवाणी की गई थी। बड़ों की बैलगाड़ी, बैटरी की बैलगाड़ी। घोड़ा, तो झारखंड भी। चुल्हा-चक्की, तो झारखंड भी। इस तरह से वे इंटरनेट में बदल गए थे, I … अब गुर्दा चालू हो गया है। ‘वीडियो-खेल’ से बात करने की बात को बढ़ाने के लिए माता-पिता को भरमाया जा रहा है। वास्तव में यह सच है कि यह बनी बनी बीमारी है। कंप्यूटर के किसी भी नामी-गिरामी संस्थान के महान्-भरकमसंक नहीं् .  ; बच्चों के थके, उदास और बुझे चेहरे खुद अपनी कहानी बयां कर रहे हैं।

अब गुड्डे-गु के दिन लद। अब तक के मनोरंजक मशीन गन और टांकों से सुसज्जित हैं। यह बदलते हुए भी बदलते हैं, लेकिन स्थायी रूप से विकसित होते हैं। देश के पारंपरिक प्रदर्शन कार्यक्रम को ताजस-नहस के बाद फिर से शुरू किया गया। यह बात भी प्रासंगिक है। मौत के चेहरे में नींद आने जैसी समस्या होती है। वीडियो-गेम के बार-बार प्रदर्शित होने वाली हरकतें. फास्ट-फूड और वीडियो-गेम खेलने का चस्का मिलकर वे सभी इंतजाम कर देते हैं जिनसे बच्चे के अंदर वे सभी रोग हो जाएं जिनके बारे में पहले सोचा भी नहीं जा सकता था।

भारत में बैब बेंज़ वैब आधारित वैब आधारित है या यू. इस तोप-गोला पहली बार इस खेल का हिस्सा सभी, पर अब भी हैं। बचपन के देश में बचपन स्वयं ही एक बनना है। इस तरह के मामले में भी भारत के लिए यह कैसा रहेगा। खिलौने हैं भी, तो वे बच्चों को परिवेश से नहीं जोड़ते। यादगार जामने के गुड्डा-गुड़िया अपने भाग्य विधा पर आसुं नएं, तो क्या?

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