भारत और साउथ अफ़्रीका के बीच क्रिकेट के रिश्ते बेहद ख़ास जगह रखते हैं. लगभग 22 साल तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से गायब रहने के बाद एपरथीड वाले पूरे मामले से निकलकर जब साउथ अफ़्रीका की टीम पहली बार क्रिकेट खेलने उतरी तो वो भारतीय ज़मीन पर आई थी. कलकत्ता में हाथ जोड़कर शुक्रिया अदा करते क्लाइव राइस की तस्वीर ऐतिहासिक है. उस 3 वन-डे मैचों की फ़्रीडम सीरीज़ के 10 साल बाद की ये कहानी है.
इस मौके पर भारतीय टीम साउथ अफ़्रीका में थी. पहला टेस्ट मैच साउथ अफ़्रीका ने बड़ी आसानी से जीता. ये मैच वीरेन्द्र सहवाग का पहला टेस्ट मैच था और उन्होंने अपनी पहली ही टेस्ट पारी में शतक लगाया. मज़े की बात ये है कि वो जिन्हें अपना आदर्श मानते थे, उन सचिन तेंदुलकर ने भी सेंचुरी मारी. सचिन और सहवाग ने मिलकर 220 रन की पार्टनरशिप की. लेकिन इन दोनों के सिवा और कोई बल्लेबाज़ चला नहीं और इंडिया 379 रन ही बना सकी. जवाब में साउथ अफ़्रीका के टॉप 6 बल्लेबाज़ों में 2 ने सेंचुरी मारी और 3 ने 70 के आस-पास रन बनाये. दूसरी पारी में इंडिया 237 रन ही बना सकी और साउथ अफ़्रीका ने चौथी पारी में 54 रन बनाकर 9 विकेट से ये मैच जीत लिया.
दूसरा टेस्ट मैच पोर्ट एलिज़ाबेथ में खेला गया. हमारी कहानी इसी मैच की है. पहली पारी में साउथ अफ़्रीका ने 362 रन बनाए जिसमें हर्शेल गिब्स अपने दोहरे शतक से मात्र 4 रन पहले आउट हो गए. लेकिन इंडिया ने बहुत अच्छी बैटिंग नहीं की. 201 रन पर पूरी टीम ऑल आउट हो गई. वीवीएस लक्ष्मण एकमात्र बल्लेबाज़ थे जो हाफ़ सेंचुरी तक पहुंचे. हालांकि साउथ अफ़्रीका की दूसरी पारी में बने 233 रनों के बाद इंडिया को 395 रनों का टारगेट मिला और विकेट को देखते हुए यही माना जा रहा था कि मैच ड्रॉ होगा. 28 रन पर 1 विकेट के नुकसान पर पांचवें दिन जब इंडिया ने जब बल्लेबाज़ी करनी शुरू की तब भी हर कोई यही मान रहा था. और असल में हुआ भी ऐसा ही. अपना दूसरा मैच खेल रहे दीप दासगुप्ता को बैटिंग करने के लिये ऊपर भेजा गया. उन्होंने ओपनिंग की और राहुल द्रविड़ के साथ 83 ओवरों में 171 रनों की पार्टनरशिप की. दीप दासगुप्ता ने 22 और द्रविड़ ने 36 के स्ट्राइक से बल्लेबाज़ी की और ये सुनिश्चित किया कि 2 मैचों के बाद सीरीज़ का स्कोर 1-0 ही रहे.
लेकिन इस कथित नीरस ड्रॉ के बीच एक और कहानी जन्म ले चुकी थी. जिस वक़्त भारतीय टीम मैच ड्रॉ करने की जुगत में लगी हुई थी, उस वक़्त तक टीम के 6 खिलाड़ियों को सज़ा सुनाई जा चुकी थी.
सचिन तेंदुलकर को गेंद के साथ छेड़छाड़ करने के लिए एक टेस्ट मैच का बैन मिला था. सहवाग को अम्पायर के फ़ैसले पर आपत्ति जताने और अम्पायर की ओर चार्ज करने के जुर्म में एक टेस्ट मैच का बैन मिला था. हरभजन सिंह, दीप दासगुप्ता और शिव सुन्दर दास को ज़रूरत से ज़्यादा अपील करने के लिये एक टेस्ट मैच के लिए बैन किया गया था और सौरव गांगुली को बतौर कप्तान, अपने खिलाड़ियों पर कंट्रोल न रखने के लिये एक टेस्ट मैच और 2 वन-डे मैचों का बैन मिला था. इसके साथ ही इन सभी 6 खिलाड़ियों की 75% मैच फ़ीस काटी गई थी. यानी, इंडियन टीम की प्लेयिंग इलेवन में 6 खिलाड़ी बैन किये जा चुके थे.
जब पहला बीज ज़मीन पर गिरा था, मैच का तीसरा दिन चल रहा था और 60वें ओवर में हरभजन सिंह गेंदबाज़ी कर रहे थे. जैक्स कालिस ने मिडल और लेग स्टंप पर पड़ी एक गेंद टैप की और फॉरवर्ड शॉर्ट लेग पर खड़े सहवाग ने अपनी दाहिनी ओर दो कदम उछलकर और डाइव मारकर गेंद पकड़ी. चूंकि ये सब सेकंड भर की देरी में हुआ था, सहवाग को ऐसा लगा कि गेंद बल्ले पर लगने के बाद कालिस के जूतों पर गिरी थी और वहां से उछलकर उन तक पहुंची थी. इसलिये उन्होंने कैच की अपील की. सहवाग कैच लेने की ख़ुशी और अम्पायर को कन्विंस करने के फेर में उनकी तरफ़ बढ़ते हुए अपील कर रहे थे. कालिस को अम्पायर ने नॉट आउट क़रार दिया और सहवाग ने अपनी फ़्रस्ट्रेशन ज़ाहिर करते हुए 4 अक्षरों का अंग्रेज़ी का वो शब्द ज़ोर से बोला जो f से शुरू होकर k पर ख़तम होता है और अक्सर जिसका U और C सेंसर कर दिया जाता है.
तीसरे दिन एक और बात हुई थी. सचिन तेंदुलकर गेंदबाज़ी करने के लिए आए और उन्होंने मीडियम पेस गेंदबाज़ी की. उन्हें आते ही बहुत अच्छी स्विंग मिलनी शुरू हो गई. चूंकि सचिन अमूमन ऑफ़ या लेग ब्रेक बॉलिंग करते थे, लिहाज़ा उनकी मीडियम पेस के बारे में कमेंट्री बॉक्स में बैठे लोग बात करने लगे. बात इसपर भी आई कि इस शानदार स्विंग के लिए वो ऐसी कौन सी ग्रिप से गेंद फेंक रहे थे कि वैसी स्विंग और कोई गेंदबाज़ नहीं करा पा रहा था. इसपर ब्रॉडकास्टर्स ने एक कैमरा सचिन के हाथ पर फ़िक्स कर दिया. इसी दौरान एक मौके पर देखा गया कि सचिन अपने नाखून से गेंद की सीम को खुरच रहे थे. इसका रीप्ले बार-बार टीवी पर दिखाया गया और मैच रेफ़री माइक डेनेस ने स्वतः संज्ञान लेते हुए मैच की फ़ुटेज मंगवाई. फ़ुटेज देखने के बाद उन्हें यकीन हो गया था कि सचिन ने गेंद के साथ जो किया, वो नियमों के विरुद्ध था.
तो इन दो मौकों के कारण भारत के 5 खिलाड़ियों को बैन मिला और कप्तान साहब यानी सौरव गांगुली भी लपेटे में आये क्योंकि माइक डेनेस को लग रहा था कि वो अपने खिलाड़ियों को कंट्रोल में नहीं रख रहे थे. तो इस तरह से, मैच के चौथे दिन की शुरुआत में इंडियन टीम को ये बता दिया गया कि उसके 6 खिलाड़ियों को सज़ा दी गई है. ये भी मालूम पड़ा कि भज्जी, शिव सुन्दर दास, दीप दासगुप्ता और सहवाग को सज़ा इसलिए मिली थी क्यूंकि ऑन-फ़ील्ड अम्पायरों ने उन्हें माइक डेनेस को रिपोर्ट किया था और सचिन और गांगुली को ख़ुद माइक डेनेस के कोप का शिकार होना पड़ा था.
सज़ा की ये जानकारी भारतीय लीडरशिप को दी गई थी और सार्वजनिक रूप से इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई. लेकिन भारतीय खेमे में खलबली मची हुई थी और इंडियन प्लेयर्स बेहद नाराज़ थे. चौथे दिन की दोपहर तक उन्होंने ये जानकारी प्रेस को लीक कर दी. और यहां से भारतीय मीडिया में बवाल मच गया. नस्लभेद के आरोप लगने लगे और सड़कों पर माइक डेनेस के पुतले जलाये जाने लगे. भारतीय टीवी का केबल टीवी युग अभी नया था और मिडल क्लास घरों में, छोटे शहरों में उसने सेंधमारी करनी बस शुरू ही की थी. सिर्फ़ न्यूज़ परोसने वाले चैनल साउथ अफ़्रीका की इस ख़बर को ले उड़े और ओवरटाइम करने लगे.
उधर मैदान पर पांचवें दिन संशय की स्थिति बनी हुई थी. खेल कुछ देर से शुरू हुआ क्यूंकि भारतीय टीम ने मैच रेफ़री के फ़ैसले पर ऐतराज़ जताते हुए मैदान पर न उतरने का मन बना लिया था. लेकिन अंत में ऐसा हुआ नहीं और पांचवें दिन का खेल आगे बढ़ा और मैच ड्रॉ हुआ. भारतीय खेमे में गुस्सा भरा हुआ था. पांचवें दिन का खेल ख़तम होने के बाद एक प्रेस कांफ्रे़ंस हुई. मुद्दा यही था. भारतीय खिलाड़ियों की सज़ा. ये प्रेस कांफ्रे़ंस इसलिए हो रही थी क्योंकि साउथ अफ़्रीकी क्रिकेट बोर्ड को ऐसा लगने लगा था कि माइक डेनेस के इन अचंभित कर देने वाले फैसलों के बाद भारतीय टीम सीरीज़ आगे ही न बढ़ाए और घर चली जाये. इसलिए साउथ अफ़्रीका के क्रिकेट बोर्ड के सीईओ जेराल्ड मजोला ने ये प्रेस कांफ्रे़ंस की और माइक डेनेस को अपने साथ ले गए. भारतीय मीडिया को सवाल उठाने का ये सबसे मुफ़ीद मौका दिखा. प्रेस कांफ्रेस रूम खचाखच भरा हुआ था. लोग माइक डेनेस से उनका पक्ष जानना चाहते थे. लेकिन डेनेस ने सवालों का जवाब देने से साफ़ इंकार कर दिया. उन्होंने कहा कि आईसीसी ने उन्हें अपने फैसलों के बारे में किसी भी तरह की सफ़ाई देने से मना किया था. बेहद सीनियर और जाने-माने खेल पत्रकार देबाशीष दत्ता ने एक किनारे खड़े होकर बेहद कड़े शब्दों में कहा कि माइक डेनेस अगर जवाब नहीं देना चाहते हैं तो न दें लेकिन वो सभी ज़िम्मेदार लोगों को ये ज़रूर बता दें कि ये फ़ैसले न्यायपूर्ण नहीं थे और ये एक साज़िश के तहत किया जा रहा था. रवि शास्त्री उन दिनों ईएसपीएन के पैनेल में थे. प्रेस कांफ्रे़ंस में वो भी थे. उन्होंने माइक पकड़ा और कहा – ‘मेरा सवाल ये है कि अगर माइक डेनेस जवाब नहीं देंगे तो वो यहां कर क्या रहे हैं? हम सभी को मालूम है कि वो कैसे दिखते हैं.’ माइक डेनेस का मुंह लाल हो चुका था लेकिन आईसीसी के आदेशों ने उन्हें भी बांध रखा था. प्रेस कांफ्रे़ंस ख़तम हुई और किसी को कैसा भी जवाब नहीं मिला.
यहां से मामला गरमाया. क्योंकि ये तय हो चला था कि खिलाड़ियों को मिली सज़ा वापस नहीं ली जाने वाली थी और माइक डेनेस या आईसीसी किसी भी तरह की सफ़ाई नहीं देने वाले थे. उधर भारतीय टीम के सर पर बीसीसीअई या ये कहें कि जगमोहन डालमिया हाथ रख चुके थे. टीम को आश्वस्त किया जा चुका था कि उनके साथ न्याय होगा.
इस मैच के, और इस बवाल के दो मुख्य भारतीय किरदार सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली अपनी-अपनी आत्मकथाएं लिख चुके हैं. दोनों ने अपनी किताब में इस घटना का ज़िक्र किया है. सौरव गांगुली ने इस घटना को मात्र एक पैराग्राफ़ लायक समझा. वहीं सचिन ने इसपर ढाई पन्ने खर्चे. सचिन का ऐसा करना बनता भी है क्योंकि उनपर सबसे गंभीर आरोप लगे थे. बॉल के साथ छेड़छाड़ के आरोप. सचिन ने अपनी आत्मकथा में बताया कि जब माइक डेनेस ने उन्हें बुलाया और बताया कि उन्हें बॉल से छेड़छाड़ के आरोप में बैन किया जायेगा तो सचिन ने ये आरोप मानने से इनकार कर दिया. सचिन ने माइक डेनेस से कहा कि ये सच है कि मैंने गेंद को अपनी उंगली से खुरचा था लेकिन मैं गेंद पर लगी घास को हटा रहा था. सचिन ने कहा कि उनकी गलती बस इतनी थी कि उन्होंने नियम संख्या 42.3 का उल्लंघन किया था जो ये कहता है कि खिलाड़ी को गेंद की सफ़ाई अम्पायरों की मौजूदगी में करनी होती है. सचिन ने कहा कि मैच की इंटेंसिटी में वो अम्पायरों को दिखाना भूल गए और अपने रन-अप पर ही गेंद की सफ़ाई कर दी. माइक डेनेस ने सचिन की इस सफ़ाई को सचिन का कुबूलनामा समझा. और उनकी सज़ा मुक़र्रर कर दी. इसपर सचिन ने फिर कहा कि माइक डेनेस को मैदान पर मौजूद अम्पायरों से बात करनी चाहिये क्यूंकि गेंद से छेड़छाड़ को वो सबसे पहले पकड़ सकते हैं क्यूंकि अम्पायर हर 3-4 ओवरों पर गेंद की कंडीशन चेक करते रहते हैं. सचिन का सवाल ये था कि अगर मैदान पर अम्पायर को गेंद की कंडीशन से कोई समस्या नहीं हुई और उन्होंने सचिन को रिपोर्ट नहीं किया तो मैदान के बाहर बैठे माइक डेनेस को कैसे बॉल से छेड़छाड़ का केस समझ में आ गया? लेकिन माइक डेनेस ने कहा कि उन्हें अम्पायरों से बात करने की कोई ज़रूरत नहीं और वो वीडियो फ़ुटेज को ही सबूत मानेंगे.
सचिन ने अपनी किताब में लिखा कि किसी भी अम्पायर ने मेरे ख़िलाफ़ शिकायत नहीं की थी और खेल में बेईमानी करने का ये आरोप मुझे बेहद अपमानजनक मालूम दे रहा था. मैं इसे ऐसे ही नहीं जाने देने वाला था. मैंने माइक डेनेस को साफ़ शब्दों में बताया कि मैं इसकी शिकायत बीसीसीआई में करूंगा और चुप नहीं बैठूंगा.
सचिन ने आगे ये भी बताया कि तमाम बातें सुनने के बाद बीसीसीआई ने आईसीसी से कहा कि भारतीय टीम माइक डेनेस में अपना विश्वास खो चुकी थी. टीम मन बना चुकी थी कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वो टूर बीच में ही छोड़ देंगे लेकिन बेईमान होने का लेबल उन्हें बर्दाश्त नहीं था.
बीसीसीआई को माइक डेनेस को हटाने की मांग आईसीसी ने ख़ारिज कर दी. आईसीसी पूरी तरह से माइक डेनेस के फैसलों के साथ खड़ी थी. इसपर भारतीय बोर्ड ने कहा कि वो तीसरा मैच खेलेंगे ही नहीं और टीम को वापस बुला लेंगे. आईसीसी ने फिर से दोहराया कि वो किसी भी दबाव में आकर मैच रेफ़री को नहीं बदलेंगे क्यूंकि ये सभी क्रिकेटिंग नेशन्स के सामने एक ग़लत उदाहरण पेश करेगा.
इधर बीसीसीआई और आईसीसी के बीच मामले को उलझता देख साउथ अफ़्रीका के क्रिकेट बोर्ड में भी खलबली मची हुई थी. बीच में टूर रद्द होने का मतलब था कि साउथ अफ़्रीका को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता. वो ऐसा कतई नहीं चाहते थे. लिहाज़ा उन्होंने कदम बढ़ाने शुरू किये. उन्होंने सीधे माइक डेनेस से कहा कि वो ख़ुद ही तीसरे टेस्ट मैच में शामिल होने से मना कर दें और मामला वहीं ख़तम हो जायेगा. माइक डेनेस ने ऐसा करने से साफ़ इंकार कर दिया. मामला फिर से वहीं आकर रुका. भारतीय बोर्ड अभी भी यही कह रहा था कि वो तीसरा मैच नहीं खेलेगा.
अब साउथ अफ़्रीका ने आईसीसी को बाईपास किया और सीधे बीसीसीआई से बात की. भारतीय बोर्ड को पेशकश दी गयी कि साउथ अफ़्रीका ख़ुद माइक डेनेस को हटाकर एक दूसरा मैच रेफ़री ले आयेगा और मैच करवायेगा. भारतीय बोर्ड इसपर राज़ी हो गयी. दोनों बोर्ड्स ने ये बात आईसीसी को बतायी. ‘काटो तो खून नहीं’ वाली कहावत आईसीसी जी रही थी. उसने फिर से दोहराया कि टीमें अपने आप किसी मैच ऑफ़िशियल को नहीं हटा सकतीं. लेकिन दोनों क्रिकेट बोर्ड तय कर चुके थे कि साउथ अफ़्रीका के डेनिस लिनसे मैच रेफ़री होंगे और तीसरा मैच तय दिन पर खेला जायेगा. आईसीसी ने कहा कि अगर ऐसा होता है तो तीसरे टेस्ट मैच को ऑफ़िशियल टेस्ट मैच का स्टेटस नहीं मिलेगा. दोनों क्रिकेट बोर्ड्स ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया. इसके बाद आईसीसी ने कहा कि वो 6 में से 5 खिलाड़ियों पर लगा बैन हटा रही है. सिर्फ़ सहवाग पर लगा immediate बैन लागू रहेगा क्यूंकि ऑन फ़ील्ड अम्पायरों ने उनकी शिकायत की थी और उन्होंने मैदान पर खेल के दौरान अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था. भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने आईसीसी का ये फ़ैसला तो स्वीकार कर लिया. लेकिन वो इस बात पर टिका रहा कि तीसरा मैच बगैर माइक डेनेस के ही खेला जायेगा.
और फिर, 23 नवम्बर से सेंचुरियन के मैदान में तीसरा टेस्ट मैच शुरू हुआ. सहवाग को एक मैच के बैन के चलते नहीं खेलने को मिला. माइक डेनेस को हटाकर डेनिस लिनसे को रेफ़री की कुर्सी पर बैठाया गया. और इसके चलते आईसीसी ने इस तीसरे टेस्ट को ऑफ़िशियल टेस्ट का दर्जा नहीं दिया.
आप कहेंगे कि आईसीसी ऑफ़िशियल टेस्ट मैच का दर्जा दे या न दे, उससे क्या ही फ़र्क पड़ता है? क्यूंकि मैच तो हुआ ही. तो इसका जवाब आपको दो उदाहरणों में मिलेगा. तीसरे टेस्ट मैच में वीरेन्द्र सहवाग को नहीं खिलाया गया क्योंकि दूसरे टेस्ट मैच में उनपर एक टेस्ट मैच का immediate बैन लगा था. इसके ठीक बाद इंडिया ने अगला टेस्ट मैच 3 दिसंबर 2001 को खेला. ये इंग्लैंड के ख़िलाफ़ मोहाली में होना था. मैच शुरू होने से पहले टीम इंडिया को बताया गया कि इस मैच में सहवाग नहीं खेल सकते क्यूंकि उनपर एक मैच का बैन लगा था जो उन्हें तुरंत ही सर्व करना था. आईसीसी को बताया गया कि सहवाग ने साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ तीसरे मैच में सहवाग नहीं खेले थे. तो आईसीसी ने कहा कि वो ऑफ़िशियल मैच था ही नहीं. इसलिये आईसीसी के सामने सहवाग ने अपनी सज़ा भुगती ही नहीं. और इस तरह सहवाग को इंग्लैंड के ख़िलाफ़ भी वो मैच मिस करना पड़ा.
दूसरा उदाहरण और भी मज़ेदार है. हालांकि हम इसे मज़ेदार कह रहे हैं लेकिन एक खिलाड़ी के लिये ये बेहद बुरा अनुभव रहा होगा. वो खिलाड़ी है कॉनर विलियम्स. बड़ौदा से खेलने वाले कॉनर विलियम्स को साउथ अफ़्रीका टूर के लिये पिक किया गया था. तीसरे टेस्ट मैच में उन्हें जगह भी मिली. दूसरी पारी में साउथ अफ़्रीका के बेहद तगड़े पेस अटैक के सामने कॉनर विलियम्स ने ओपनिंग करते हुए 83 गेंदों में 42 रन बनाये और शिव सुन्दर दास के साथ मिलकर 92 रनों की सॉलिड पार्टनरशिप की. ये पहला और आखिरी मौका था जब कॉनर विलियम्स को प्लेयिंग इलेवन में जगह मिली थी. लेकिन फुल साइड टीम के साथ और फुल साइड विदेशी टीम के ख़िलाफ़ खेलने के बावजूद कॉनर विलियम्स को भारतीय टेस्ट प्लेयर नहीं माना जाता. क्यूंकि वो मैच ऑफ़िशियल टेस्ट मैच नहीं था. क्रिकेट की किताबों में कॉनर विलियम्स हमेशा के लिये अनकैप्ड प्लेयर ही रहेंगे.
खैर, इस मैच के बाद माइक डेनेस ने मात्र 2 टेस्ट मैचों में और 3 वन-डे इंटरनेशनल मैचों में रेफ़री की भूमिका निभायी. ये मेचेज़ पाकिस्तान वर्सेज़ वेस्ट इंडीज़ सीरीज़ के थे जो 2002 में जनवरी और फ़रवरी में हुई थी. आईसीसी ने इस पूरे विवाद को देखते हुए तय किया था कि एक कमिटी मामले की जांच करेगी. सुनवाई जून 2002 में होनी तय हुई थी. लेकिन उससे पहले ही माइक डेनेस की तबीयत काफ़ी ख़राब हो गयी और उन्हें हार्ट सर्जरी करवानी पड़ी. इस वजह से ये सुनवाई टाल दी गयी. दो साल बाद यानी 2003 में आईसीसी को नया मुखिया मिला. एहसान मणि. उन्होंने भारतीय क्रिकेट बोर्ड से कहा कि उन्हें माइक डेनेस वाला मसला भूल जाना चाहिए. और क्रिकेट के खेल की राजनीति का खेल समझने वाले जगमोहन डालमिया ने इसपर तुरंत हामी भर दी. इसके बाद आधिकारिक रूप से भारतीय बोर्ड ने कहा कि वो मानवीय आधारों पर माइक डेनेस को माफ़ करते हैं. और इस तरह, स्वास्थ्य लाभ ले रहे माइक डेनेस की वो सुनवाई कभी हुई ही नहीं.
ये मसला कितना बड़ा था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तब भारत की संसद में इसको लेकर हंगामा हुआ था. सचिन तेंदुलकर आज भी बड़े नाम हैं और तब काफी बड़े नाम थे, उनपर बैन लगना यानी देश में हंगामा होना तय था. तब संसद में इस बात पर बहस छिड़ गई थी कि टीम इंडिया को अपना दक्षिण अफ्रीकी दौरा बीच में छोड़कर ही वापस आ जाना चाहिए. पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद जो अभी तृणमूल कांग्रेस का हिस्सा हो चुके हैं, तब भारतीय जनता पार्टी के सांसद थे. भारतीय खिलाड़ियों पर लगे बैन के मुद्दे को देश की संसद में जोर-शोर से उठाने में वही सबसे आगे थे. तब संसद में कीर्ति आजाद ने मांग रखी थी कि सरकार को देश के खिलाड़ियों के साथ खड़ा होना चाहिए और बीसीसीआई के साथ मिलकर सख्त कदम उठाना चाहिए. संसद सत्रों में एक-दूसरे के खिलाफ नारा लगाने वाली कई पार्टियों के सांसद तब इस मसले पर एकजुट हुए थे, भाजपा-कांग्रेस के अलावा अन्य राजनीतिक दलों ने भारतीय खिलाड़ियों की साउथ अफ्रीका से तुरंत वापसी की मांग की थी. तब की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इस मसले पर शांत स्वभाव से काम लेने की अपील की थी.
1 दिसंबर, 1940 को माइक डेनेस यूनाइटेड किंगडम के बेलशिल में पैदा हुए थे. अप्रैल 2013 में कैंसर से लड़ते हुए माइक डेनेस की मौत हो गई थी. उन्हें आज भी ब्रिटिश क्रिकेट के स्टाइलिश बल्लेबाज़ों में से एक और शानदार कवर फ़ील्डर के रूप में जाना जाता है.
(रिपोर्ट: केतन)
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