
मासिक दुर्गा अष्टमी: हर माह में शुक्ल क्लब की अष्टमी तिथि समाप्त हो गई है। मई माह में दुर्गाष्टमी का पर्व 11 दिसंबर को समाप्त होगा। दुर्गाष्टमी का पर्व मां दुर्गा को समर्पित है। इस दिन व्यवस्था- व्यवस्था से यह पूजा-अर्चना की व्यवस्था है। दुर्गा दुर्गा की पूजा से माँ दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है और दर्द- दर्द होता है। माँ दुर्गा की पूजा कैसे करें माँ दुर्गा की पूजा….
पूजा-विधि
- इस बाद उठने वाले जल जल कर रहे हों, फिर भी पूजा करने के स्थान पर गंगाजल अशुद्ध शुद्धि करें।
- घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
- मां दुर्गा का गंगा जल से प्रार्थना करें।
- माँ को ऐक्सेट, सिन्दूर और लाल रंग के रोग, प्रसाद के रूप में फल और फलियाँ।
- धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ और फिर माँ की आरती करें।
- माँ को भोग भी। इस बात का ध्यान रखें कि सात्विक स्वास्थ्य का भोग पूरा हों।
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मुहूर्त-
- मार्ग शीर्ष, शुक्ल अष्टमी – 07:09 पी मील, 10
- मार्गशीर्ष, शुक्ल अष्टमी फाइनल – 07:12 पी दोपहर, 11
पूजा सामग्री की सूची
- लालचुनरी
- लाल वस्त्र
- मौली
- सूचना का दोष
- दीपक
- घाव/तेल
- धूप
- कोनी
- साफ सुथरा
- कुमाकुमो
- फूल
- देवी की प्रतिमा
- पान
- सुपारी
- लोंग
- प्रतीक
- बैठकें या मिसरी
- कूपर
- फल-मिठाई
- कलावा
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प्रसन्नता के लिए ये उपाय – इस माँ की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए पावन श्री दुर्गा चालीसा का पाठ कृपा करें।
- श्री दुर्गा चालीसा: श्री दुर्गा चालीसा-
नमो नमो धुरगे सुखकर। नमो नमो दरखे दुख हरणी
निरंकुशता को ठहराया जाता है। तिहुं लोक उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विक्राला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै की। गोवध अन्न धन दिन
अन्नपूर्णा जग पाला। तुम ही सुंदरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हरि। तुम गौरी शिवशंकर शंकर
शिव योगी। ब्रह्म विष्णु भगवान
सरस्वती को धारा। दे सुबुद्धि ऋषिमुनिउबारा॥
धरो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फ़्लिंगर खंबा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप ध्रोज माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिंधु में करत विलासा। दयासिंधु दीजै मन आसा
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावती माता। बगला बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छन्न भाल भव दुःख निवारी॥
केहरी वाहन सोह भवानी। लंगूर वीर गति अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल भय भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। शत्रु शत्रु हि शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुंलोक में डंसा बाजेत॥
शुंभ निशुंभ दिवस आप। रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेही अघ भार माही अकुलानी
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित आप तिहि संहारा॥
परी गाढ़ संन्यासी। भाई सहाय माटु तुम तो॥
अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सबाशा॥
ज्यों का त्यों बना हुआ है। सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जोगाँव। दुख दारी निकटवर्ती नहिं अवेवन॥
ध्यान रखें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छूत जाई॥
जोगी सुर मुनि कहतवादी। योग न होना निश्चित॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध विजेता सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। सत्ता मन मन पछितायो॥
शरणागत कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भै प्रसन्ना आदि जगदंबा। दाई शक्ति नहिं कीन विलंबा॥
मोको मातू अति कठिनो। तुम बिन कौन हरै दुख मेरो॥
आशा तृष्णा सतावन। रिपू मुरख मौही डरपावे॥
शत्रु नाश की रासायनिक शब्द। सुमीरौं ने पापा भवानी॥
कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला।
जब लग्जी दया फल पाऊ। यशो यश
दुर्गा चालीसा जो कोई गाव। सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज। करहु कृपान जगदम्ब भवानी॥
दोहा शरणागत रक्षक करे, भक्तो नि:शंक ।
मैं आया तेरी शरण में, मातु लिजिये अंक।
मैं इति श्री दुर्गा पूरी तरह से
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