भारतीय राजनीति में बीते कुछ सालों में एक उत्साहवर्धक राजनैतिक रुझान देखने में आ रहा है. सत्ता में नया-नया चुनकर आने वाला हरेक मुख्यमंत्री एक मिलता-जुलता वादा कर रहा है—वह अपने राज्य को देश के पांच श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्यों में लाएगा. वादा पूरा हो या न हो पर यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य ही अपने आप में लोगों की बदलती सामाजिक-राजनैतिक आकांक्षाओं और सत्ताधारी वर्ग से उनकी बढ़ती अपेक्षाओं का संकेत है.
इससे मुख्यमंत्रियों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलता है और यह सर्व-समावेशी आर्थिक वृद्धि को किसी भी सियासी नैरेटिव का केंद्रबिंदु बना देता है. डेढ़ साल के दौरान कोविड-19 से तबाह अर्थव्यवस्था में यह प्रेरणा और प्रतिस्पर्धा खास तौर पर फायदेमंद हो सकती है.
इंडिया टुडे ग्रुप इस प्रतिस्पर्धी भावना को उकसाने के कुछ श्रेय का दावा कर सकता है. यह पहला ग्रुप था जिसने 2003 में राज्यों की दशा-दिशा (स्टेट ऑफ द स्टेट्स या एसओएस) सर्वे के रूप में राज्यों के प्रदर्शन का लेखा-जोखा करने की अवधारणा का सूत्रपात किया.
तब से बीते 19 सालों में यह भारत के विभिन्न राज्यों के कामकाज का सबसे सटीक सालाना रिपोर्ट कार्ड बना हुआ है. शुरुआत में ही इसने राज्यों के सामाजिक-आर्थिक विकास का आकलन करने के लिए व्यापक और विश्वसनीय पैमाना ईजाद किया, पर साल बीतने के साथ इसका दायरा और पद्धति दोनों ज्यादा विकसित होते गए.
मूल्यांकन दो विस्तृत श्रेणियों—श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य और सर्वाधिक सुधार करने वाले राज्य—में किया जाता है ताकि विरासत से अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों को अनुचित फायदा न मिले या कमतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों को नुक्सान न हो.
श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य वाली श्रेणी में नवीनतम उपलब्ध डेटा वाले वर्ष के पूरे आंकड़ों की जांच-पड़ताल की जाती है. दूसरी ओर, सर्वाधिक सुधार वाले राज्य की श्रेणी में पहले के पांच सालों में राज्य की प्रगति का लेखा-जोखा किया जाता है.
इस तरह से किए गए फर्क की अहमियत इस साल के राज्यों की दशा-दिशा सर्वे के नतीजों में बहुत अच्छे ढंग से झलकती है. बीते पांच सालों की अपनी तरक्की के आधार पर बिहार कुल मिलाकर सर्वाधिक सुधार वाले बड़े राज्य के रूप में उभरा है. बीते साल के नौवें पायदान से अब शीर्ष पर आना इस पूर्वी राज्य के लिए बड़ी छलांग है, जो लंबे वक्त से पिछड़े राज्यों के पहले अक्षर से मिलकर बने कुख्यात ‘बीमारू’ शब्द का अगुआ रहा है.
यह चमत्कार शिक्षा, कृषि, अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे में बेहतरीन सुधार से मुमकिन हुआ. आर्थिक पिछड़ेपन की जंजीरें तोड़ने की राज्य की प्रतिबद्धता भी साफ दिखाई देती है—बिहार में प्रति व्यक्ति विकास व्यय 2014-15 और 2019-20 के बीच 17.9 फीसद की दर से बढ़ा, जबकि इसी अवधि में राष्ट्रीय औसत 11.2 फीसद था. लड़कियों की अधिक भागीदारी ने शिक्षा में बड़ा उछाल लाने में योगदान दिया. राज्य का लैंगिक समानता सूचकांक (स्कूलों में नाम लिखवाने वाली लड़कियों और लड़कों का अनुपात) देश में दूसरा सबसे ज्यादा—1.05—है.
फिर भी समग्रता में उपलब्धि के लिहाज से बिहार को अभी मीलों आगे जाना है. राज्य ने अपने निचले आधार को देखते हुए बीते पांच सालों में भले ही ज्यादा रफ्तार से तरक्की की है, लेकिन यह अब भी श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्यों में सबसे निचले पायदान पर है. अर्थव्यवस्था, शिक्षा और उद्यमिता की तीन दूसरी श्रेणियों में यह सबसे निचले यानी सभी बड़े राज्यों में 20वें पायदान पर है.
कृषि, स्वास्थ्य, राजकाज, समावेशी विकास और पर्यावरण की पांच अन्य श्रेणियों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्यों में यह सबसे निचले पांच राज्यों में है.
यही मणिपुर के बारे में भी सच है, जो लगातार दूसरे साल सर्वाधिक सुधार करने वाले छोटे राज्य के रूप में उभरा है. इसने 12 श्रेणियों में से सात में अपने प्रदर्शन में सुधार दर्ज किया. ये हैं अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचा, कृषि, स्वास्थ्य, राजकाज, उद्यमिता और स्वच्छता. तो भी राज्य 10 श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले छोटे राज्यों की श्रेणी में नौवें पायदान पर है.
पांच श्रेणियों—अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचा, कृषि, पर्यावरण और स्वच्छता—में उसकी स्थिति जस की तस है. हालांकि मणिपुर ने बीते पांच सालों में तेज रफ्तार से तरक्की की पर यह अब भी खराब प्रदर्शन और हिंसा के माहौल की विरासत से बेजार है.
बिहार और मणिपुर की एक उलझन है, तो तमिलनाडु और केरल की मुश्किल इससे उलट है. दोनों राज्य श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्यों के शीर्ष पांच में हैं पर सर्वाधिक सुधार वाले राज्यों की श्रेणी में सबसे नीचे के पांच राज्यों में हैं. ऊंचे आधार को देखते हुए बेशक इन राज्यों से पारंपरिक तौर पर पिछड़े राज्यों जैसे सुधार की रफ्तार से बराबरी करने की उम्मीद नहीं की जा सकती.
श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले छोटे राज्यों में पुदुच्चेरी और गोवा में भी यही गुत्थी दिखाई देती है. इस श्रेणी में वे शीर्ष तीन राज्यों में हैं, लेकिन सर्वाधिक सुधार वाले छोटे राज्यों की श्रेणी में वे सबसे नीचे के तीन राज्यों में जा पहुंचे हैं.
फिर ऐसे राज्य भी हैं जिन्होंने पहले भी लगातार और हाल के प्रदर्शन दोनों में समान रूप से अच्छा काम किया है. मसलन, गुजरात बड़े राज्यों के श्रेष्ठ प्रदर्शन और सर्वाधिक सुधार वाले यानी दोनों ही श्रेणियों में चौथे पायदान पर है.
इसी तरह, सिक्किम छोटे राज्यों की दोनों श्रेणियों में तीसरे पायदान पर है. छोटे राज्यों में ही मिजोरम सर्वाधिक सुधार वाली श्रेणी में दूसरे पायदान पर है, पर श्रेष्ठ प्रदर्शन वाली श्रेणी में भी इसने कोई बुरा प्रदर्शन नहीं किया और चौथे पायदान पर है.
हमारे सर्वेक्षण का यह 19वां संस्करण राज्यों के लिए यह आंकने का एक और मौका है कि उन्होंने विभिन्न मापदंडों पर दूसरे राज्यों के मुकाबले कैसा प्रदर्शन किया. अपनी रैंकिंग में सुधार लाने वाले राज्यों को शीर्ष पर पहुंचने की प्रेरणा और प्रोत्साहन मिलेगा, तो पहले ही शीर्ष पर विराजमान राज्य अपने को और बेहतर बनाने पर जोर देंगे. आत्मसंतोष की कोई गुंजाइश न होगी. साथ ही इसका अंतिम लाभ बेशक भारत के नागरिकों को ही मिलेगा.
तमिलनाडु
श्रेष्ठ प्रदर्शन वाले बड़े राज्यों में शीर्ष पर है लेकिन सर्वाधिक सुधार वाली श्रेणी में वह 16वें पायदान पर लटक रहा है
बिहार
ने सर्वाधिक सुधार करने वाले बड़े राज्यों की श्रेणी में सबसे ऊंची छलांग लगाई लेकिन बड़े राज्यों की श्रेष्ठ प्रदर्शन वाली सूची में वह 20वें यानी सबसे निचले पायदान पर खड़ा है
पुद्दुचेरी
श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले छोटे राज्यों की श्रेणी में नंबर 1 पर रहा लेकिन सर्वाधिक सुधार वाले 10 छोटे राज्यों की श्रेणी में यह 18वें स्थान पर रहा
मणिपुर
सर्वाधिक सुधार वाले छोटे राज्यों की कैटेगरी में शीर्ष पर रहा पर श्रेष्ठ प्रदर्शन वाले 10 छोटे राज्यों की सूची में यह 9वें स्थान पर रहा
गुजरात
ने बड़े राज्यों की श्रेणी में पूर्व में भी और अब भी उम्दा प्रदर्शन करते हुए श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले और सर्वाधिक सुधार वाले, दोनों ही वर्गों में चौथी रैंक हासिल की है
सिक्किम
के पुराने और नए प्रदर्शन में स्थिरता देखने को मिली और यह श्रेष्ठ प्रदर्शन तथा सर्वाधिक सुधार वाली दोनों ही श्रेणियों में तीसरे स्थान पर कायम रहा
हिमाचल प्रदेश ने बड़े राज्यों में श्रेष्ठ प्रदर्शन वाली श्रेणी में सबसे ऊंची छलांग लगाते हुए 2018 में सातवें पायदान से इस साल सीधे दूसरे पायदान पर जगह बनाई
महाराष्ट्र
बड़े राज्यों में सर्वाधिक सुधार वाली श्रेणी में बड़ा बदलाव करते हुए 2018 में 18वें पायदान से इस साल आठवें पायदान पर आ पहुंचा
सर्वे की पद्धति राज्यों की रैंकिंग कुछ इस तरह की गई
इंडिया टुडे राज्यों की दशा-दिशा 2021 की यह पूरी स्टडी दिल्ली की अव्वल रिसर्च एजेंसी मार्केटिंग ऐंड डेवलपमेंट रिसर्च एसोसिएट्स (एमडीआरए) ने किया. सर्वाधिक प्रासंगिक और विस्तृत डेटा के आधार पर राज्यों की रैंकिंग निर्धारित करने के लिए सुदृढ़ कार्यपद्धति तैयार की गई. इसमें अंतर-राज्य प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और भारत के संघीय ढांचे की सच्ची भावना को कायम रखने के लिए अहम पहलू समाहित किए गए. राज्यों को दो विस्तृत समूहों में रैंकिंग दी गई:
श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य
एक श्रेणी में राज्यों के नवीनतम प्रदर्शन के आधार पर
कई मानदंडों के सबसे हाल के डेटा के आधार पर
सर्वाधिक सुधार करने वाले राज्य
बीते 5 सालों में राज्य में आए सुधार की नाप-तौल करके
बीते 5 सालों के सकारात्मक बदलावों (परिणाम आधारित) के आधार पर
भौगोलिक क्षेत्र और आबादी के हिसाब से राज्यों को बड़े और छोटे में विभाजित किया गया. छोटे राज्यों के मुकाबले बड़े राज्यों के अपने फायदे और नुक्सान हैं. 35,000 वर्ग किमी से ज्यादा क्षेत्र और 50 लाख से अधिक आबादी वाले राज्यों को बड़े राज्यों में और बाकी को छोटे राज्यों में रखा गया. दर्जा बदलने के कारण जम्मू-कश्मीर पर विचार नहीं किया गया. तुलना के लिए 12 श्रेणियां तय की गईं और एक नई श्रेणी—खुशी का सूचकांक—जोड़ी गई.
हर श्रेणी में कई मानदंड तय किए. विशेषज्ञों यानी अध्येताओं, नीति निर्माताओं, नीति आयोग के प्रतिनिधियों, थिंक-टैंकों, नीतिगत अनुसंधान संगठनों, समाजशास्त्रियों और अर्थशास्त्रियों से मिली जानकारी के आधार पर श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्यों के मूल्यांकन के लिए 123 और सर्वाधिक सुधार करने वाले राज्यों के मूल्यांकन के लिए 88 मानदंडों को अंतिम रूप दिया गया. मानदंडों को परस्पर वेटेज विशेषज्ञों, इंडिया टुडे के संपादकों और एमडीएमआर टीम से सलाह करके अंतिम रूप दिया गया.
यह पक्का करने के लिए कि किसी राज्य को अनुचित फायदा न मिले या किसी राज्य को अनुचित नुक्सान न हो, जहां जैसी जरूरत थी, आबादी और आकार के आधार पर डेटा को सामान्यीकृत किया गया. हर पहलू के लिए निर्धारित वेटेज के आधार पर हर क्षेत्र की रैंकिंग निकाली गई. पैरामीटर लेवल के वेटेज का इस्तेमाल करके समग्र रूप से श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले और सर्वाधिक सुधार करने वाले राज्य निर्धारित किए गए.
एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अभिषेक अग्रवाल की अगुआई में एमडीएमआर के प्रोजेक्ट डायरेक्टर अवनीश झा, असिस्टेंट रिसर्च मैनेजर राजन चौहान और एग्जीक्यूटिव -ईडीपी मनवीर सिंह की टीम ने कई स्टेटिस्टीशियन तथा इकॉनोमेट्रिशियन की सहायता से इस प्रोजेक्ट पर जुलाई से नवंबर 2021 तक काम किया.
राज्यों की दशा-दिशा सर्वे के मानदंड
अर्थव्यवस्था: प्रति व्यक्ति आय, गरीबी की रेखा से ऊपर के लोगों का प्रतिशत, आबादी और पूंजीगत व्यय का अनुपात, सेवा क्षेत्र/जनसंख्या का जीएसवीए (ग्रॉस स्टेट वैल्यू ऐडेड), विनिर्माण क्षेत्र/जनसंख्या का जीएसवीए, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, बेरोजगारी दर, प्रति लाख व्यक्ति बैंकों की संख्या, प्रति लाख व्यक्ति व्यावसायिक बैंक कर्ज का अनुपात, श्रम बल की भागीदारी (15-59 वर्ष) शहरी (प्रति 1,000), एफडीआइ आवक, वास्तविक निवेश/वास्तविक आइईएम, भारत के कुल एफडीआइ में राज्य के एफडीआइ प्रवाह का अनुपात, बकाया देनदारियां, जनसंख्या के प्रति सकल पूंजी निर्माण
बुनियादी ढांचा: कुल क्षेत्र के साथ (पक्की+कच्ची) सड़कों की लंबाई का अनुपात, कुल जनसंख्या के अनुपात में नेशनल हाइवे और राज्य राजमार्गों की लंबाई, वाहनों और सड़कों की लंबाई का अनुपात, ग्रामीण क्षेत्रों में दिन के बिजली आपूर्ति के औसत घंटे, पेयजल/नल के जल की सुलभता वाले घर, प्रति लाख आबादी पर रेलमार्ग की लंबाई, हवाई अड्डों/उड़ानों की संख्या/जनसंख्या/क्षेत्र, स्टेडियम, सार्वजनिक सभागार, जेएनएनयूआरएम से जुड़े परिवर्तनशील घटक (कुल स्वीकृत परियोजनाओं की संख्या में पूर्ण परियोजनाओं का हिस्सा), पोस्ट ऑफिस, मोबाइल ग्राहकों की संख्या, टेलीफोन कनेक्शन की संख्या (लैंडलाइन), राज्यवार प्रति व्यक्ति बिजली उपलब्धता, इंटरनेट ग्राहक, स्मार्ट सिटी की संख्या
कृषि: कृषि क्षेत्र और खेती में लगी आबादी की तुलना में पिछले बजट में कृषि पर खर्च रकम, जीडीपी में कृषि का योगदान, कृषि जीएसडीपी/ग्रामीण जनसंख्या, कुल खेतिहर भूमि में सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत, उत्पादकता—उत्पादित फसल बनाम इसमें शामिल भूमि और जनसंख्या, जोतने वाले परिवारों को कर्ज, नकदी फसलों के बुआई क्षेत्र का प्रतिशत
स्वास्थ्य: स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति खर्च, शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर, प्रति लाख पंजीकृत डॉक्टर, प्रति लाख व्यक्ति सरकारी अस्पतालों की कुल संख्या, प्रति सरकारी अस्पताल इलाज पाने वाले औसत मरीज, प्रति सरकारी अस्पताल बिस्तरों की संख्या, लाइफ एक्सपेक्टेंसी, कोविड प्रबंधन
शिक्षा: शिक्षा विभाग का कुल खर्च/जनसंख्या (6-14 वर्ष की जनसंख्या), साक्षरता दर (%), प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में नामांकित लड़कों के साथ लड़कियों का अनुपात (%), छात्र-शिक्षक अनुपात—सभी संस्थाएं, ड्रॉपआउट दर, कॉलेज की संख्या/आबादी (15-19 वर्ष आयु समूह), स्कूलों की संख्या/जनसंख्या (10-14 वर्ष आयु समूह), राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों की संख्या, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और नेशनल लॉ युनिवर्सिटी की संख्या, उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या/जनसंख्या
कानून और व्यवस्था: पुलिसकर्मियों की संख्या, कुल मामले (आइपीसी में), हत्या, अपहरण, बलात्कार, छेड़छाड़, दंगों की वारदात की संख्या, लंबित मामले/जनसंख्या
राजकाज : विधायकों का आपराधिक रिकॉर्ड, पंचायतों में महिला प्रतिनिधियों का प्रतिशत, पंचायत हस्तांतरण सूचकांक, नागरिक भागीदारी के लिए राज्य सरकार की ई-सेवाओं की संख्या, कॉमन सर्विस सेंटर और ई-सेवा दे रही पंचायतों की संख्या, कारोबारी सहूलियत सूचकांक (डीआइपीपी और विश्व बैंक), डिजिटल इंडिया कार्यक्रम में प्रगति
समावेशी विकास: बीपीएल आबादी का त्न, गरीबी उन्मूलन में प्रगति, खोले गए खाते (प्रधानमंत्री धन योजना), कुल घरों में एलपीजी उपभोक्ताओं का अनुपात, मनरेगा लाभार्थियों की संख्या, प्रधानमंत्री आवास योजना में प्रगति, स्वास्थ्य योजना के दायरे में शामिल किसी भी सामान्य सदस्य वाले घरों का %, पीडीएस से सामान लेने का %, प्रति परिवार दिए काम के औसत दिन, 18 साल से पहले विवाहित 20-24 वर्ष की आयु की महिलाएं (%), श्रम में लगे बच्चों का % (जनगणना)
उद्यमिता: व्यवसाय करने में आसानी (ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस) सूचकांक (%), स्टार्ट-अप इंडिया की प्रगति, स्किल इंडिया की प्रगति, मुद्रा बैंक कर्ज निधि की प्रगति—वितरित धनराशि, राज्य में स्टार्ट-अप (नई पंजीकृत कंपनियों) की कुल संख्या
पर्यटन: घरेलू पर्यटकों और विदेशी पर्यटकों की संख्या, पर्यटन के प्रचार पर खर्च रकम, हवाई अड्डों की संख्या, रेलवे स्टेशनों की संख्या, पर्यटकों के विरुद्ध अपराध, ठहरने के पंजीकृत स्थानों की संख्या/पर्यटकों की संख्या, फाइव स्टार होटलों की संख्या, सड़कों की लंबाई/कुल पर्यटक संख्या, भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (सांस्कृतिक + प्राकृतिक + मिश्रित)/कुल पर्यटक संख्या, राष्ट्रीय पार्क/कुल पर्यटक संख्या, वन्यजीव अभयारण्य/कुल पर्यटक संख्या, पर्यटन से राजस्व (लाख रुपए में)/कुल पर्यटक संख्या, अंतर्देशीय जलमार्ग/पर्यटक संख्या
पर्यावरण: SO2 सल्फर डायऑक्साइड की मात्रा (आवासीय + औद्योगिक), NO2 नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा (आवासीय + औद्योगिक), पीएम 10 की मात्रा (आवासीय + औद्योगिक), कुल क्षेत्र में वृक्ष आच्छादन, पीएम 2.5 की मात्रा (आवासीय + औद्योगिक), कुल क्षेत्र में वन आच्छादन
स्वच्छता: साफ-सफाई की सुविधा में सुधार वाले घरों का %, लड़कियों के लिए अलग शौचालय वाले स्कूलों का %, पेयजल के बेहतर स्रोत का इस्तेमाल कर रहे घरों का %, खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल कर रहे घरों का %, पूर्ण स्थापित क्षमता में नवीकरणीय ऊर्जा का %, शहरी ठोस कचरा शोधन का %
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