- सक़लैन इमाम
- बीबीसी उर्दू, लंदन
बांग्लादेश दक्षिण एशिया का सबसे युवा राज्य है, लेकिन इसकी प्रति व्यक्ति जीडीपी पाकिस्तान से कई फीसदी और अपने से कई गुना बड़े भारत से भी अधिक है.
इस समय बांग्लादेश को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य दक्षिण एशियाई देश के रूप में तेज़ी से विकसित होने वाला देश माना जा रहा है, जिसके कारण इसमें राजनीतिक स्थिरता दिखाई दे रही है.
साल 1971 में स्वतंत्र मुल्क बनने से पहले, बांग्लादेश एक इस्लामी देश पाकिस्तान का हिस्सा था, जहां अब इस्लामीकरण एक ही समय में राष्ट्रीय एकता और समाज के सांप्रदायिक विभाजन की एक बड़ी वजह बन गया है.
हालांकि, जिस देश से ये दोनों देश अलग हुए थे, यानी भारत, लंबे समय तक धर्मनिरपेक्षता के बाद ‘हिंदुत्व’ की ओर बढ़ रहा है. यहां दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रेरित सरकार और समाज फल-फूल रहा है.
ग्लोबल इकोनॉमी नामक रैंकिंग जारी करने वाली एक वेबसाइट के अनुसार, असमान विकास सूचकांक में भारत 61वें स्थान पर है, बांग्लादेश 71वें और पाकिस्तान 82वें स्थान पर है. यह सूचकांक समाज में असमानता को दर्शाता है.
अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन वर्ल्ड जस्टिस फ़ोरम के रूल ऑफ़ लॉ इंडेक्स में पाकिस्तान 130वें स्थान पर है. इसी सूचकांक में बांग्लादेश 124वें स्थान पर है. और भारत 79वें स्थान पर है. भारत की रैंकिंग एक नंबर कम हुई है और बांग्लादेश की रैंकिंग में सुधार हुआ जबकि पाकिस्तान की रैंकिंग में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
विकास सूचकांक में तीनों की स्थिति
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 1971 में 67 अरब डॉलर थी, जबकि 2020 में यह 2622 अरब डॉलर थी (यानी औसत वार्षिक वृद्धि दर 7.7 फीसदी और 49 सालों में इसमें 38 गुना वृद्धि).
साल 2019 में भारत की जीडीपी 2871 अरब डॉलर थी. 2020 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 1900 डॉलर थी.
दूसरी ओर, 1971 में बांग्लादेश की जीडीपी 8.7 अरब डॉलर थी, जो पिछले साल 2020 तक 324 डॉलर हो गयी थी (यानी औसत वार्षिक वृद्धि दर 7.71 फीसदी और 49 सालों में 38.1 गुना वृद्धि).
साल 2019 में बांग्लादेश की जीडीपी 302 अरब डॉलर थी. 2020 में प्रति व्यक्ति आय 1968 डॉलर थी, यानी भारत से ज़्यादा.
वहीं पाकिस्तान की जीडीपी 1971 में 10.6 अरब डॉलर थी, जो पिछले साल तक 263 अरब डॉलर थी (यानी औसत वार्षिक विकास दर 6.68 फीसदी थी और 49 सालों में इसमें 23 गुना वृद्धि हुई).
साल 2019 में पाकिस्तान की जीडीपी 288 अरब डॉलर थी, जो कि 2018 में 314 अरब डॉलर थी. 2020 तक पाकिस्तान में प्रति व्यक्ति आय 1193 डॉलर थी.
राजनीतिक व्यवस्था और स्थिरता
राजनीतिक स्थिरता के मामले में, ग्लोबल इकोनॉमी की वेबसाइट पर भारत 159वें स्थान पर है, बांग्लादेश 161वें और पाकिस्तान 184वें स्थान पर है.
न्यूजीलैंड और स्विट्जरलैंड जैसे देश इस रैंकिंग में शीर्ष पर हैं, जबकि यमन, अफ़ग़ानिस्तान और सीरिया जैसे देश क्रमशः 192, 193 और 194 रैंक पर हैं.
वहीं कमज़ोर देश की रैंकिंग में भारत 63वें, बांग्लादेश 37वें और पाकिस्तान 27वें स्थान पर है. इस रैंकिंग में सबसे ऊपर यमन, सोमालिया और सीरिया जैसे देश आते हैं, और सबसे आख़िर में आइसलैंड, फ़िनलैंड और नॉर्वे हैं.
संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों के एक स्वतंत्र सर्वेक्षण के अनुसार, 2021 की सस्टेनेबल डेवलपमेंट रिपोर्ट में पाकिस्तान 129वें, भारत 120वें और बांग्लादेश 109वें स्थान पर है. इस रिपोर्ट में फ़िनलैंड, स्वीडन और डेनमार्क जैसे देश शीर्ष पर हैं, जबकि सोमालिया, चाड और दक्षिण सूडान जैसे देश सबसे नीचे हैं.
स्टेट सिक्योरिटी थ्रेट (यानी सुरक्षा ख़तरे) की कैटेगरी में पाकिस्तान 27वें, बांग्लादेश 37वें और भारत 52वें स्थान पर है. इस सूची में अफ़ग़ानिस्तान, लीबिया और माली शीर्ष पर हैं, जबकि सिंगापुर, पुर्तगाल और स्लोवेनिया का स्थान सबसे नीचे है.
स्थायी स्थिरता की तुलना
इतिहासकारों, राजनीतिक विशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों के सामने बड़ा सवाल यही है कि तीनों देशों का इतिहास एक जैसा ही है. तीनों एक ही औपनिवेशिक ताकत के अधीन थे, जिससे ये आज़ाद हुए.
द ग्लोबल इकोनॉमी, की वेबसाइट के अनुसार, 200 देशों की राजनीतिक स्थिरता की लिस्ट में भारत 159वें स्थान पर है, इसके बाद बांग्लादेश 161वें और पाकिस्तान 184वें स्थान पर है.
प्यू रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, लोगों के जीवन में धर्म के महत्व के संदर्भ में पाकिस्तान में 94 प्रतिशत लोगों के लिए उनका धर्म बहुत अहम है. इस तरह पाकिस्तान दुनिया के सबसे ज़्यादा धार्मिक देशों में गिना जाता है. जबकि बांग्लादेश में यह दर 81 प्रतिशत और भारत में 80 प्रतिशत है.
क्या सिस्टम बदल चुके हैं?
दक्षिण एशिया के अन्य देशों की तुलना में, बांग्लादेश ने अब तक आर्थिक रूप से बेहतर प्रदर्शन किया है. हालांकि, पाकिस्तान से अलग होने के बावजूद, इसका राजनीतिक अस्थिरता का अपना इतिहास सैन्य हस्तक्षेप के मामले में बहुत अलग नहीं रहा है.
वहीं भारत में लोकतंत्र को बढ़ावा मिला है, लेकिन इसका इसकी अर्थव्यवस्था और ग़रीबी में कमी पर कोई महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है.
दक्षिण एशिया पर कई पुस्तकों के लेखक और पूर्व अमेरिकी राजनयिक और स्कॉलर क्रेग बैक्सटर ने साल 1985 में एक लेख में लिखा था, कि “अक्सर यह कहा जाता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और यह भी कि पाकिस्तान एक मॉडल प्रेटोरियन राज्य है और बांग्लादेश की साख एक ‘आर्थिक टोकरी’ के तौर पर है.”
“यह बात भी अक्सर कही जाती है कि इन तीनों देशों को उदार ब्रिटिश परंपराएं विरासत में मिली हैं. और इन्हें ग़ुलामी के दौर के शासनकाल की मज़बूत केंद्रीय राजशाही व्यवस्था और स्टील फ़्रेम (नौकरशाही) का ढांचा मिला.”
“हालांकि एक महत्वपूर्ण बिंदु को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है- वो ये कि ऊपर लिखी गई इन बातों में कुछ न कुछ सच्चाई है, लेकिन इनमें से कोई भी पूरी तरह से सच नहीं है, और कोई भी बात इन राज्यों की स्थानीय सांस्कृतिक परंपराओं के बारे में कोई स्पष्टीकरण पेश नहीं करती है.”
प्रमुख पाकिस्तानी इतिहासकार और अमेरिका में टफ़्ट्स यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफ़ेसर, डॉक्टर आयशा जलाल ने अपनी किताब, ‘डेमोक्रेसी एंड ऑथोरिटेरियनिज़्म इन साउथ एशिया में लिखा’ है कि “भारत को एक मज़बूत औपनिवेशिक युग की केंद्रीय सरकार और एक औद्योगिक संरचना विरासत में मिली थी, जो अपनी सभी कमज़ोरियों के बावजूद उन क्षेत्रों से बहुत ज़्यादा विकसित था जो पाकिस्तान का हिस्सा बने.”
“इस ऐतिहासिक अंतर के बावजूद, भारत, पाकिस्तान और बाद में बनने वाले देश बांग्लादेश का राजनीतिक इतिहास विकास की कुछ अलग दिशाएं निर्धारित नहीं कर सका.”
भारत के आर्थिक मामलों पर लिखने वाले एक मशहूर पत्रकार मानस चक्रवर्ती बताते हैं कि “हालांकि संयुक्त राष्ट्र अब दक्षिण एशिया के तीनों देशों, यानी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश को ‘मध्यम मानव विकास’ वाले देशों में मानता है. उनकी अर्थव्यवस्थाएं भी अब ज़्यादा अमीर हैं, लेकिन उनके लोग अभी भी स्पष्ट आर्थिक और सामाजिक असमानता और अन्याय और ग़रीबी में जी रहे हैं.”
तीन देश, तीन विशेषज्ञ
इन तीनों देशों के राजनीतिक इतिहास को ध्यान में रखते हुए हमने इन तीनों देशों के स्वतंत्र रूप से शोध करने वाले बुद्धिजीवियों से कुछ सवाल किये, ताकि उनसे दक्षिण एशिया के इन तीनों देशों के विभिन्न दिशाओं में आगे बढ़ने के कारणों को समझा जा सके.
पहले विशेषज्ञ – भारत के आकार पटेल, एमनेस्टी इंटरनेशनल (भारत) के पूर्व प्रमुख, भारत में चरमपंथ पर शोधकर्ता और ‘प्राइस ऑफ़ मोदी इयर्स’ के लेखक.
दूसरे विशेषज्ञ – पाकिस्तान की डॉक्टर आयशा जलाल, जो वर्तमान में अमेरिका की टफ़्ट्स यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफ़ेसर हैं.
तीसरे विशेषज्ञ – बांग्लादेश के प्रोफ़ेसर अली रियाज़, जो अमेरिका की एलिनॉय स्टेट यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर और नॉन रेज़िडेंट सीनियर फ़ेलो हैं.
तीनों देशों का साझा इतिहास
सवाल 1: पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत का न केवल भोगौलिक स्थिति एक है बल्कि तीनों देशों का औपनिवेशिक इतिहास भी एक ही है. तो सात दशकों के बाद भी, इन देशों के विकास की दिशा अलग क्यों दिखाई देती है?
आकार पटेल: मुझे नहीं लगता कि इन तीनों देशों के रास्ते एक-दूसरे से अलग हैं. हाल ही में, बांग्लादेश की जीडीपी में प्रति व्यक्ति आय भारत से बेहतर हो गई है, लेकिन निम्न मध्यम आय वाले देशों में तीनों देशों की हैसियत निचले स्तर की है.
इन देशों में लैंगिक विकास भी समान है. हालांकि, बांग्लादेश में विकास प्रक्रिया में महिलाओं को अन्य देशों की तुलना में बेहतर तरीक़े से भाग लेने का अवसर मिला है. राजनीतिक तौर से भी, इन देशों के रास्ते लगभग एक जैसे हैं, यानी, बहुसंख्यक समूहों की राजनीति और जनहित के ख़िलाफ़ नीतियां.
डॉक्टर आयशा जलाल: जनसंख्या और अर्थव्यवस्था के मामले में इस क्षेत्र में पहले से ही कई अंतर थे. भारत के विभाजन के कारण, इन मतभेदों में उस समय और ज़्यादा अंतर हो गया जब पाकिस्तान ने शीत युद्ध के मद्देनजर अपनी अर्थव्यवस्था को भारत से अलग कर लिया और वैश्विक अर्थव्यवस्था में शामिल हो गया.
पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से के बांग्लादेश बनने के बाद, इस देश ने जनरल ज़िया-उर-रहमान और जनरल हुसैन मोहम्मद इरशाद की सैन्य तानाशाही से पहले संसदीय लोकतंत्र का अनुभव किया, जो पाकिस्तान के राजनीतिक अनुभव के समानांतर था.
प्रोफ़ेसर अली रियाज़: कई मायनों में, इन देशों के रास्ते उनके संस्थानों की अलग व्यवस्था और प्रबंधन के कारण अलग-अलग रहे हैं. पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों को इस तरह के मज़बूत संस्थान कभी विरासत में नहीं मिले हैं और न ही उन्होंने बनाने की कोशिश की जो उनकी सही दिशा तय करते और उन्हें आगे बढ़ने में मदद देते.
सवाल 2: साल 1971 के युद्ध के बाद जब पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बना, तो उसकी आर्थिक स्थिति (पश्चिमी) पाकिस्तान से बेहतर नहीं थी. तो ऐसा क्या हुआ कि आज बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पाकिस्तान से बेहतर हो गई और जीडीपी में प्रति व्यक्ति आय के मामले में अब ये भारत से भी बेहतर हो गई है?
आकार पटेल: बांग्लादेश ने अपनी अर्थव्यवस्था में मैन्युफ़ैक्चरिंग का हिस्सा बढ़ाया है. यह एक अहम बात है क्योंकि इस सेक्टर से बहुत से लोगों को ऐसा रोज़गार मिलता है जिसमें बहुत अधिक कौशल की ज़रुरत नहीं होती. ख़ास तौर से गारमेंट्स मेन्यूफ़ैक्चरिंग सेक्टर में, जिसमें बांग्लादेश एक चैंपियन है. इस सेक्टर में बड़ी संख्या में महिलाऐं काम करती हैं.
दूसरी ओर, भारत का कोई आर्थिक गोल नहीं है और ऐसा ख़ास तौर से 2014 के बाद से हुआ है.
डॉक्टर आयशा जलाल: इस मामले में, पश्चिमी पाकिस्तान की तुलना में पूर्वी पाकिस्तान में भूमि सुधार बेहतर और अधिक प्रभावी थे. पश्चिमी पाकिस्तान में उच्च वर्ग और राज्य के गैर-निर्वाचित संस्थानों (सैन्य और नौकरशाही) के बीच संबंधों ने इस बात को सुनिश्चित किया कि सबसे पहले जूनियर पार्टनर के रूप में उस कंपनी में आर्थिक लाभ बने रहें जो उस समय पाकिस्तान को चला रही थी.
प्रोफ़ेसर अली रियाज़: जीडीपी की विकास दर को आर्थिक विकास को मापने के लिए सर्वोत्तम पैमाना नहीं माना जाना चाहिए. विकास के पैमाने को मानव विकास और मानवाधिकारों के संरक्षण को शामिल करके समझने की ज़रूरत है.
हालांकि, बांग्लादेश ने सामाजिक सूचकांकों और सकल राष्ट्रीय उत्पाद के मामले में महत्वपूर्ण प्रगति की है, जिसकी वजह प्राइवेट सेक्टर और ग़ैर-सरकारी संगठनों का साल 1991 के बाद से मिलकर मेहनत करना है. कुछ मामलों में, सरकार बदलने के बावजूद, नीतियों में बदलाव नहीं आया.
सैन्य और नागरिक नेताओं के बीच सत्ता संघर्ष और अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियों पर उनकी निर्भरता ने अपने देश की नीतियों को बदलने के प्रयासों को नाकाम किया है.
धर्म
सवाल 3: इस समय भारत एक हिंदू राज्य बनता नज़र आ रहा है और इसी तरह पाकिस्तान एक चरमपंथी इस्लामी राज्य बनता नज़र आता है. जबकि, बांग्लादेश ज़ाहिरी तौर पर धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक राजनीति के बीच संतुलन बनाता दिख रहा है. क्या धर्म के तत्व ने इन देशों के विकास को प्रभावित किया है? अगर हां, तो कैसे?
आकार पटेल: बांग्लादेश की धर्मनिरपेक्षता की तरफ़ वापसी हाल के दिनों का एक क़दम है. उम्मीद की जा सकती है कि वो इस दिशा में आगे बढ़ता रहेगा, हालांकि इस बात की भी उम्मीद है कि यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था की जड़ें मज़बूत होंगी और विपक्ष को बर्दाश्त किया जाएगा.
भारत का आर्थिक पतन उसके अपने कर्मों का नतीजा है और यह पतन पिछले कुछ वर्षों की नीतियों के कारण हुआ है. यह गिरावट उन नीतियों और फ़ैसलों के कारण आई है, जिन्होंने अर्थव्यवस्था और लोगों को नुक़सान पहुंचाया है. भारत में बहुसंख्यक आबादी के लिए यहां शासन का तरीक़ा और उसकी सत्तारूढ़ पार्टी लघु, मध्यम और दीर्घावधि के नकारात्मक प्रभाव पैदा कर रही है.
डॉ. आयशा जलाल: धार्मिक राजनीति के मामले में बांग्लादेश की अपनी समस्याएं हैं. इस समय ऐसा लग रहा है कि अवामी लीग सरकार को यह एहसास बहुत देर में हुआ है कि उन सभी समूहों जिन्होंने पाकिस्तानी सेना की कार्रवाइयों का समर्थन किया था, ख़ास तौर से जमात-ए-इस्लामी, उनको सज़ाएं दे कर वो धर्म के राजनीतिकरण की एक अलग तस्वीर पेश करें.
हालांकि, यह सब कुछ बदल सकता है क्योंकि यह कोई बहुत समय पहले की बात नहीं है, जब अवामी लीग और बांग्लादेश नेशनल पार्टी दोनों ही सत्ता में बने रहने के लिए जमात-ए-इस्लामी पर निर्भर थे.
प्रोफ़ेसर अली रियाज़: अक्सर ऐसा होता है कि जो दिखता है हक़ीक़त उससे अलग होती है. इस सवाल में यह कहना कि बांग्लादेश इस मामले में संतुलन बना रहा है, अपने आप में स्पष्टीकरण का विषय है.
हाल के वर्षों में बांग्लादेश में असहिष्णुता बढ़ रही है, और ख़ास तौर से बांग्लादेश सत्तारूढ़ अवामी लीग ने अपने कुशासन को सही ठहराने के लिए धर्म का कार्ड खेलना शुरू कर दिया है.
सवाल 4: पाकिस्तान का सिक्योरिटी इस्टेब्लिशमेंट ज़रुरत से ज़्यादा ताक़तवर हो गया है, यानी वहां सेना का वर्चस्व पैदा हो गया है. लेकिन बांग्लादेश में उसकी आज़ादी के समय शेख़ मुजीब जैसे मज़बूत नागरिक राजनीतिक नेतृत्व के बावजूद, सैन्य वर्चस्व कैसे पैदा हुआ?
आकार पटेल: बांग्लादेश की राजनीति साल 1947 के बाद से लेकर साल 1971 से पहले तक के लंबे समय में पश्चिमी पाकिस्तान के अधीन रहने की वजह से कम विकसित रही. सेना इस राज्य की सबसे विकसित संस्था थी, और जब इसके नेतृत्व ने फ़ैसला किया, तो उसने पूरे राज्य पर क़ब्ज़ा कर लिया.
डॉक्टर आयशा जलाल: इसका एक कारण तो बांग्लादेश की सेना की अपनी प्रकृति है, जिसमें कुछ ऐसे अधिकारी थे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था और कुछ ने नहीं.
जनरल ज़िया-उर-रहमान के क़दम ने बांग्लादेश को उसी रास्ते पर डाल दिया, जो पाकिस्तान की स्थिति से अलग नहीं था. हालांकि, बंगलादेश की इस बात पर तारीफ़ ज़रूर की जानी चाहिए कि उन्होंने एक निर्वाचित सरकार से दूसरी निर्वाचित सरकार को सत्ता हस्तांतरण का सिलसिला बनाये रखा, जो पाकिस्तान में 2013 के चुनावों के बाद पहली बार हुआ.
प्रोफ़ेसर अली रियाज़: नागरिक नेतृत्व की ताक़त सैन्य हस्तक्षेप को रोकने की गारंटी नहीं होती है. असल बात यह होती है कि नेतृत्व और उन संस्थानों की प्रकृति क्या जो सैन्य हस्तक्षेप को रोकने में सक्षम हैं.
नेताओं का सीढ़ी दर सीढ़ी तानाशाही शासन (ऑथेरिटेरियन) की तरफ़ बढ़ने की वजह ने बांग्लादेश में सैन्य हस्तक्षेप की संभावना को जन्म दिया, जो साल 1990 तक चला. दुर्भाग्य से, हम आज फिर से वही स्थिति देख रहे हैं जिसमें एक छोटे से राजनीतिक अभिजात वर्ग और लॉ एंड आर्डर मेंटेन करने वाली एजेंसियों के अधिकारियों पर आधारित एक वर्ग ने एक शासक समूह का रूप धारण कर लिया है.
सवाल 5: भारत अपनी सुरक्षा के लिए चीन को और कुछ हद तक पाकिस्तान से ख़तरा महसूस करता रहा है. तो फिर वहां सैन्य सरकार क्यों नहीं बनी?
आकार पटेल: भारत 1947 से पहले से ही काफ़ी विकसित था और बाद में भी कांग्रेस के कारण राष्ट्रीय विकास में अच्छा प्रदर्शन करता रहा. इसलिए सेना को यहां इतने मौक़े नहीं मिल सके. इसके अलावा, भारत ने जिस तरह की व्यवस्था बनाई, उसमें सेना को नागरिक नौकरशाही के अधीन रखा गया था. पाकिस्तान और फिर बांग्लादेश दोनों ही ऐसी व्यवस्थाएं नहीं बना सके.
डॉक्टर आयशा जलाल: इसके जवाब के लिए आपको मेरी किताब ‘डेमोक्रेसी एंड अथॉरिटेरियनिज़्म इन साउथ एशिया’ को देखना होगा. जैसा कि मैंने कहा है, इसका एक मुख्य कारण तो यह है कि जब कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आई, तो वहां मज़बूत शासन व्यवस्था थी, जबकि पाकिस्तान को इस तरह का ढांचा नए सिरे से बनाना था.
दूसरा कारण यह था कि कांग्रेस की संगठनात्मक मशीनरी मुस्लिम लीग की संगठनात्मक मशीनरी की तुलना में कहीं अधिक मज़बूत और प्रभावी थी. और तीसरा, ये कि शीतयुद्ध के दौरान, भारत और पाकिस्तान ने बिलकुल विपरीत दिशाओं में यात्रा शुरू की, जिसमें पाकिस्तान एक वैश्विक पूंजीवादी व्यवस्था में उलझता चला गया और नेहरू के नेतृत्व में भारत अमेरिका और ब्रिटेन के साथ गठबंधन बनाने से परहेज़ करता रहा.
(अपनी किताब में डॉक्टर आयशा जलाल यह भी कहती हैं कि जिस तरह पाकिस्तान में धर्म के ज़रिये केंद्र सरकार को ताक़तवर बनाया गया था, उसी तरह नेहरू ने समाजवादी सुधारों के माध्यम से भारत को एक केंद्रीय शक्ति वाला देश बनाया).
प्रोफ़ेसर अली रियाज़: अकेले बाहरी ख़तरा कभी भी सैन्य हस्तक्षेप की वजह नहीं बना है. हालांकि, सेना सहित देश की सुरक्षा एजेंसियां एक ख़ास हैसियत हासिल करने के लिए एक औचित्य के तौर पर ज़रूर इसका इस्तेमाल करते हैं जो फिर स्थिति की दिशा निर्धारित करता है. भारत के नागरिक संस्थान और राजनीतिक दल इतने ताक़तवर थे कि उन्होंने सैन्य हस्तक्षेप को सीमित रखा, जबकि पाकिस्तान शुरू से ही सैन्य हस्तक्षेप को रोकने में नाकाम रहा.
राजनीतिक स्थिरता
सवाल 6: वे कौन से मूल तत्व हैं जिनके कारण भारत में एक स्थिर लोकतांत्रिक व्यवस्था, संविधान का शासन और स्थिर राजनीतिक व्यवस्था का विकास हुआ?
आकार पटेल: कांग्रेस के तीन दशकों तक सत्ता में रहने और उसके आंतरिक नेतृत्व की स्थिरता की वजह से भारत में संवैधानिक लोकतंत्र मज़बूत हुआ. हालांकि आर्थिक और अन्य क्षेत्रों के प्रदर्शन पर इसकी आलोचना की जा सकती है, लेकिन राजनीतिक मामले काफ़ी हद तक बेहतर तरीक़े से चलाये गए. ये व्यवस्था स्थिर हो चुकी है, हालांकि हाल के घटनाक्रम चिंताजनक हैं.
डॉक्टर आयशा जलाल: भारत में पहले से ही एक एकजुट और मज़बूत राजनीतिक दल था और उस देश में सैन्य हस्तक्षेप का कोई इतिहास नहीं था लेकिन अगर ऐसा हुआ तो इसे बदलना बहुत मुश्किल होगा.
(अपनी किताब में, डॉक्टर आयशा जलाल कहती हैं कि दावों के बावजूद, न तो लोकतांत्रिक और न ही धर्मनिरपेक्ष भारत और न ही सैन्य वर्चस्व और इस्लामिक पाकिस्तान ने अपने बहु-जातीय और बहुराष्ट्रीय राज्यों की एक राष्ट्रीय पहचान की भावना पैदा करने में कोई महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है. यहां तक कि बांग्लादेश में एक साझी सांस्कृतिक परंपरा भी राष्ट्रीय एकता के लिए ज़्यादा अनुकूल नहीं हो सकी.)
प्रोफ़ेसर अली रियाज़: जैसा कि मैंने पहले कहा है, कि मज़बूत संस्थाएं लोकतंत्र की संरक्षक होती हैं. इस मामले में अब तक भारत काफ़ी कामयाब रहा है. लेकिन साल 2014 के बाद से, भारत में संस्थाएं कमज़ोर हो गई हैं, जिसके नतीजा ये हुआ है कि वहां लोकतंत्र धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है. अब भारत को एक निर्वाचित तानाशाही कहा जा सकता है.
सवाल 7: अगर देखा जाए तो पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था हमेशा ख़तरे में रही है. क्या पाकिस्तान में भारत की तरह स्थिरता आ सकती है, ख़ासकर ऐसे हालात में जब उसे क्षेत्र में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है?
आकार पटेल: पाकिस्तान इस समय एक स्थिर देश है और इस बात की संभावना कम है कि वहां सैन्य शासन का दौर वापस आएगा. इसका एक कारण यह है कि सेना अब मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में गहरी जड़ें जमा चुकी है. यह बहुत संभव है कि सी-पैक की बदौलत सेना पूरे क्षेत्र के एकीकरण से फ़ायदा उठा
डॉक्टर आयशा जलाल: यह संभव तो है, लेकिन पाकिस्तान को क्षेत्र की शक्तियों के प्रति अपनी नीतियों की पूरी तरह नए सिरे से समीक्षा करनी होगी और देश को एक मज़बूत और शक्तिशाली संघ बनाना होगा.
प्रोफ़ेसर अली रियाज़: यह संभव तो है, लेकिन पाकिस्तान को क्षेत्र की शक्तियों के प्रति अपनी नीतियों की पूरी तरह नए सिरे से समीक्षा करनी होगी और देश को एक मज़बूत और शक्तिशाली संघ बनाना होगा.
प्रोफ़ेसर अली रियाज़: पाकिस्तान में लोकतंत्र की कमी में क्षेत्रीय स्थिति की नाममात्र की भूमिका है. इसके मुख्य कारण सेना का असंतुलित, ताक़त और प्रभाव, कमज़ोर संस्थाएं और राजनीतिक दलों की बिना सोचीसमझी नीति से सहमत होना और आभिजात वर्ग को सुरक्षा देने वाली सामाजिक संरचना भी देश में अस्थिरता की बुनियादी वजह है.
भविष्य
सवाल 8: मौजूदा स्थिति को देखते हुए क्या बांग्लादेश में स्थिरता क़ायम रह सकेगी?
आकार पटेल: जब तक विपक्ष के लिए जगह नहीं बनाई जाती तब तक लोकतंत्र अस्थिर रहेगा. इस लिहाज से अगले साल होने वाले चुनाव बहुत अहम होंगे.
डॉक्टर आयशा जलाल: बांग्लादेश में विपक्ष ने पिछले चुनावों का बहिष्कार किया था, इसलिए वहां की स्थिति में पहले से ही अस्थिरता का एक अहम तत्व मौजूद है.
प्रोफ़ेसर अली रियाज़: बांग्लादेश में ज़ाहिरी तौर पर राजनीतिक स्थिरता की भारी क़ीमत चुकानी पड़ी है. यहां का लोकतांत्रिक वातावरण चरमरा गया है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में गिरावट आई है, सार्वजनिक सभा आयोजित करने का अधिकार छीन लिया गया है और विपक्ष लगातार मुक़दमों का सामना कर रहा है.
और सबसे बढ़कर यह कि पूरी चुनावी व्यवस्था को इस हद तक जकड़ दिया गया है, कि सत्ताधारी दल की जीत निश्चित हो जाए. ऐसी स्थितियां कभी भी लंबे समय तक नहीं रहती हैं.
सवाल 9: क्या आपको ऐसी संभावना दिखाई देती हैं, कि पाकिस्तान और भारत अपने विवादों को सुलझा लें और फिर बांग्लादेश के साथ सार्क को एक प्रभावी मंच बना सकें?
आकार पटेल: मुझे लगता है कि इसके अलवा कोई रास्ता नहीं है. जब भारत अपनी अल्पसंख्यकों को नुक़सान पहुंचाने की अपनी इच्छा छोड़ देगा और क्षेत्रीय स्थिति स्थिर हो जाएगी, तो बेहतर संपर्क का सिलसिला बढ़ेगा. सीमाओं के पार माल, सेवाओं और लोगों की स्वतंत्र आवाजाही का समय दूर नहीं है और मेरा अनुमान है कि ऐसा होने में ज़्यादा से ज़्याद दो दशक लगेंगे.
डॉक्टर आयशा जलाल: जी नहीं. यह तब तक संभव नहीं है जब तक मोदी और अमित शाह सत्ता में हैं.
प्रोफ़ेसर अली रियाज़: सार्क अब अपनी मौत ख़ुद मर चुका है, बेहतर है कि इसे हम औपचारिक तौर पर दफ़ना दें. भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध हमेशा तनावपूर्ण रहेंगे क्योंकि तनाव से दोनों देशों की विभिन्न राजनीतिक और सैन्य भूमिकाओं को फ़ायदा होता है.
इस तनाव का एक अपना आर्थिक आयाम है. हालांकि, इसका यह मतलब नहीं है कि इन स्थितियों में सुधार नहीं किया जा सकता है, लेकिन इन पर क्षेत्रीय स्तर पर किसी व्यवस्था के बजाय, हर विवाद को द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से हल करने या स्थिति में सुधार करने की कोशिश की जानी चाहिए.
जहां तक पाकिस्तान और बांग्लादेश के संबंधों का सवाल है, इसके लिए ज़रूरी है कि पाकिस्तान अपनी सेना के हाथों बंगालियों के नरसंहार के लिए माफ़ी मांगे. यह एक ऐसा क़दम है जिसके बिना बात आगे नहीं बढ़ेगी.
सवाल 10: आंकड़े बताते हैं कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में आर्थिक विकास हुआ है, हालांकि इन देशों की बड़ी आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन बिता रही है. क्या इन देशों के ग़रीबों के लिए कोई उम्मीद है, या यह ग़ैर-बराबरी बरक़रार रहेगी?
आकार पटेल: आर्थिक रूप से कोई ज़्यादा उम्मीद नहीं है. ऑटोमेशन और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का मतलब ये होगा कि विकसित देश बनने के पारंपरिक मार्ग या तो बंद हो जायेंगे या बंद होने के क़रीब पहुंच जाएंगे (पारंपरिक मार्ग का मतलब है असेंबली प्लांट और मैन्युफ़ैक्चरिंग).
इन तीनों देशों को यह तय करना होगा कि बड़ी संख्या में अपने लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए वो क्या करें. जिनके पास संसाधन नहीं हैं या उनकी कमी है उनके लिए सरकार को कुछ करना होगा. धन का वितरण बहुत अधिक असंतुलित तरीक़े से होगा जिसमें बहुत कम लोगों के पास अपार धन होगा.
भारत में ये स्थिति हो चुकी है जहां छह किलो मुफ़्त चावल, गेहूं या दाल पाने के लिए हर महीने 80 करोड़ लोगों को लाइन में लगना पड़ता है और इसके साथ ही इसी देश में एशिया के सबसे अमीर लोग भी रहते हैं.
डॉक्टर आयशा जलाल: उम्मीद तो हमेशा रहती है. लेकिन विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग अपने विशेषाधिकारों को कभी नहीं छोड़ेगा, उसे सड़कों और गलियों में संघर्ष के ज़रिये विशेषाधिकारों को छोड़ने पर मजबूर होना पड़ेगा.
प्रोफ़ेसर अली रियाज़: बढ़ती असमानता निश्चित नहीं थी, लेकिन यह उन आर्थिक नीतियों का नतीजा है, जो इन देशों की सरकारों ने बनाई. इन देशों की वर्तमान नीतियां ग़रीबों के ख़िलाफ़ हैं, जिन्होंने कमज़ोर वर्गों को पिछड़ेपन की ओर धकेल दिया है.
इन नीतियों को बदलने के लिए बड़ी राजनीतिक इच्छाशक्ति की ज़रुरत है, दुर्भाग्य से इसका अभाव है. इसके अलावा, वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में, कोई भी ऐसा राजनीतिक आंदोलन या ताक़त दिखाई नहीं दे रही है जो वर्तमान आर्थिक व्यवस्था को चुनौती देने या इसे सुधारने की कोशिश करने का साहस रखती हो.
सवाल 11: इन तीनों देशों के समाजों में नस्लीय और सांप्रदायिक दरारों का भविष्य क्या है?
आकार पटेल: मुझे इन तीनों समाजों में निकट भविष्य में धर्मनिरपेक्षता और बहुलवाद का भविष्य दिखाई दे रहा है. मुझे लगता है कि अगले दो या ढाई दशकों में ऐसा समय आ सकता है.
डॉक्टर आयशा जलाल: दक्षिण एशिया के ये राज्य भविष्य बनाने के लिए बदलते रहे हैं और बदलते रहेंगे.
प्रोफ़ेसर अली रियाज़: काश मुझे इसकी उम्मीद होती, लेकिन मुझे नहीं है. इस तरह का विभाजन जानबूझकर किया गया है और इसे राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया गया है. दक्षिण एशिया के राज्य अपने अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में बुरी तरह विफल रहे हैं.
जब तक उनकी राजनीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आता है, तब तक स्थिति और ख़राब होती जाएगी. असहिष्णुता तेज़ी से बढ़ती जा रही है. फ़िलहाल उम्मीद की किरण यह है कि इनमें से ज़्यादातर अल्पसंख्यक लोग असहिष्णुता के ख़िलाफ़ हैं.