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मार्च 2026 में कोई भी प्रतियोगी चयन परीक्षा आयोजित नहीं हो- राजस्थान प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षक संघ 1 अप्रैल 2026 से नया शिक्षा सत्र 2026-27 प्रारंभ किया जाना लगभग निश्चित है। मार्च 2026 में सभी कक्षाओं की वार्षिक परीक्षाएं आयोजित होगी। मार्च में शिक्षक परीक्षा करवाने तथा उत्तर पुस्तिका मूल्यांकन कर परिणाम तैयार करने में व्यस्त रहेंगे। राजस्थान प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विपिन प्रकाश शर्मा का कहना है कि मार्च 2026 में आयोग द्वारा किसी भी विभाग की प्रतियोगी चयन परीक्षा आयोजन नहीं करवाया जाना चाहिए। संगठन मुख्य महामंत्री महेंद्र पाण्डे ने बताया कि इस सम्बन्ध में संगठन द्वारा शासन सचिव सहित आरपीएससी एवं कर्मचारी चयन बोर्ड को पत्र लिखा गया है।
पांच साल की बच्ची की तीन अंगुलियां उड़ीं, पाइप बम से बच्चे की आंख झुलसी; विशेषज्ञ बोले — लापरवाही और जिज्ञासा सबसे बड़ा खतरा जयपुर। रोशनी और उल्लास के त्योहार दिवाली की रात जयपुर में कई परिवारों के लिए दर्द और डर की रात बन गई। पटाखों से खेलने की लापरवाही ने न सिर्फ बच्चों को घायल किया बल्कि कई घरों की खुशियां भी छीन लीं।सवाई मानसिंह (SMS) अस्पताल में सोमवार रात तक पटाखों से घायल 24 मरीजों को भर्ती किया गया, जिनमें छोटे बच्चे भी शामिल हैं। पटाखा हाथ में फटा — पांच साल की बच्ची की तीन उंगलियां गईं जयपुर के महेश नगर इलाके में पांच साल की एक बच्ची के हाथ में पटाखा जलाने के दौरान विस्फोट हो गया। धमाका इतना तेज था कि उसकी तीन अंगुलियां पूरी तरह अलग हो गईं और हाथ गंभीर रूप से झुलस गया।परिजन तुरंत उसे SMS अस्पताल लेकर पहुंचे जहां प्लास्टिक सर्जरी विभाग में उसका उपचार चल रहा है। डॉक्टरों के अनुसार, हाथ का एक हिस्सा दोबारा जोड़ने की कोशिश की जा रही है, लेकिन स्थिति नाजुक बनी हुई है। पाइप बम से 14 वर्षीय बच्चे की आंख झुलसी दूसरा बड़ा हादसा झोटवाड़ा इलाके में हुआ, जहां 14 वर्षीय बालक ने पाइप बम जैसी अवैध पटाखे की सामग्री में बारूद भरते समय आग पकड़ ली। धमाके से उसकी एक आंख बुरी तरह झुलस गई, जबकि आसपास मौजूद एक युवक की भी आंख में बारूद के कण चले गए। दोनों को SMS अस्पताल के नेत्र विभाग में भर्ती कराया गया है। अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सकों का कहना है कि इस तरह के पाइप बम और प्रयोगात्मक पटाखे अत्यधिक खतरनाक होते हैं, जिनसे अक्सर स्थायी चोटें या अंग-भंग की स्थिति बन जाती है। SMS में पटाखों से घायल 24 मरीज भर्ती अस्पताल प्रशासन के अनुसार, दिवाली के 24 घंटे के भीतर 24 से अधिक लोग पटाखों की चपेट में आए, जिनमें कई बच्चों के साथ महिलाएं भी शामिल हैं।घायलों में हाथ और चेहरा झुलसने के कई मामले सामने आए हैं। अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड और बर्न यूनिट में अतिरिक्त स्टाफ तैनात किया गया। डॉक्टरों का कहना है कि हर साल दिवाली पर ऐसे हादसे बढ़ जाते हैं क्योंकि लोग सुरक्षा नियमों की अनदेखी करते हैं और उत्साह में बच्चों को बिना निगरानी के पटाखे चलाने देते हैं। डॉक्टरों की अपील — बच्चों को अकेला न छोड़ें अस्पताल के विशेषज्ञों ने लोगों से अपील की है कि पटाखे हमेशा खुले स्थान पर और वयस्कों की देखरेख में ही चलाएं।डॉक्टरों का कहना है कि हाथ में पकड़े पटाखे, बमनुमा पटाखे या बारूद से भरे प्रयोग बच्चों के लिए बेहद खतरनाक हैं।उन्होंने बताया कि SMS में भर्ती कई मरीजों की चोटें ऐसी हैं जिनमें स्थायी विकलांगता का खतरा है। हर साल दोहराई जा रही वही गलती दिवाली से पहले प्रशासन और डॉक्टर लगातार सावधानी बरतने की अपील करते हैं, लेकिन हादसों के आंकड़े बताते हैं कि जागरूकता के बावजूद लोग लापरवाही नहीं छोड़ते।जयपुर में पिछले साल भी दिवाली के मौके पर 27 लोग पटाखों से घायल हुए थे, जिनमें से दो की आंखों की रोशनी चली गई थी। त्योहार की सीख — सुरक्षा भी है सबसे बड़ा उत्सव त्योहारों का मकसद खुशियां बांटना है, लेकिन एक छोटी सी गलती पूरी जिंदगी का दर्द दे सकती है।जयपुर की यह दिवाली फिर एक बार यह सबक दे गई कि रोशनी के साथ सुरक्षा की लौ जलाना भी उतना ही जरूरी है।
हर मोहल्ले में महकता है नया अन्न, लोक और राजसी संस्कृति का जीवंत उत्सवजयपुर। दीपावली की जगमगाहट थमते ही जब गुलाबी नगरी की हवाओं में हल्की ठंडक घुलने लगती है, तब पूरा शहर अन्नकूट की सुगंध से महक उठता है। यह दिन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं, बल्कि जयपुर की राजसी परंपरा और लोकभक्ति का अनोखा उत्सव है — जहां नया अन्न, श्रद्धा, और शाही शान का सुंदर संगम देखने को मिलता है।अन्नकूट का पर्व जयपुर में आमेर रियासत के दौर से प्रचलित है। इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत बताते हैं कि जब दीपावली के बाद नया अनाज बाजार में आता था, तो उसकी खुशी में ब्रज क्षेत्र की परंपरा के अनुसार अन्नकूट मनाया जाता था। भरतपुर और जयपुर के बीच घनिष्ठ संबंधों के चलते यह लोक परंपरा गोवर्धन की 84 कोस परिक्रमा वाले क्षेत्र से आमेर होते हुए जयपुर तक आ गई।लोग अपने आंगनों में गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाकर पूजा करते हैं। जयपुर की स्थापना के साथ यह ब्रज परंपरा यहां के गौड़ीय वैष्णव मंदिरों—गोविंददेव, गोपीनाथ, राधा माधव—के माध्यम से शहर की संस्कृति का हिस्सा बन गई।सवाई जयसिंह ने दिया राजसी स्वरूपसवाई जयसिंह ने इस लोक-उत्सव को राजसी मान्यता दी। उन्होंने अन्नकूट महोत्सव को न केवल प्रोत्साहित किया, बल्कि मंदिरों और मोहल्लों में नए अन्न से बने व्यंजनों के आयोजन के लिए अनुदान भी दिया।हर मोहल्ले की अपनी अन्नकूट पहचान बनी—कहीं गट्टे की सब्जी प्रसिद्ध हुई तो कहीं कढ़ी-बाजरा या बाजरे की रोटी के साथ मीठा गुड़। उस दौर में जयपुर के 18 प्रमुख मोहल्लों में विशेष प्रसाद बनता था और ‘नगर प्रसाद’ की व्यवस्था राजपरिवार की देखरेख में होती थी।राजराजेश्वर महादेव मंदिर की अद्भुत परंपरासवाई रामसिंह द्वारा बनवाए गए राजराजेश्वर महादेव मंदिर का अन्नकूट आज भी प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान शिव को राजसी वैभव से सजाया जाता था और पूरे शहर के लोग दर्शन के लिए उमड़ते थे।यह एकमात्र अवसर था जब आमजन को मंदिर में प्रवेश मिलता था। भगवान को नए अन्न से बने विविध व्यंजन अर्पित किए जाते थे और अन्नदान की परंपरा निभाई जाती थी, जो राजसी भक्ति की झलक दिखाती है।बांदरवाल दरवाजे से निकलती थी शाही सवारीअन्नकूट के दिन महाराज माधो सिंह स्वयं गौ पूजन करते और फिर ‘मार्गपाली’ की सवारी पर निकलते थे। यह शाही जुलूस सिटी पैलेस की ग्वालेरा डेयरी से आरंभ होकर सिरह ड्योढ़ी, माणक चौक और त्रिपोलिया गेट तक जाता था।सिरह ड्योढ़ी पर अशोक पत्तों की ‘बांदरवाल’ (बंदनवार) लगाई जाती थी—इसी वजह से इस द्वार को आज भी ‘बांदरवाल का दरवाजा’ कहा जाता है। जुलूस की शुरुआत और समापन दोनों स्थानों पर भगवान गणेश के दर्शन कर शुभारंभ किया जाता था।हर मोहल्ले में नगर-प्रसाद का आयोजनजयपुर के प्रत्येक मोहल्ले में अन्नकूट के दिन प्रसाद वितरण की परंपरा रही है। राजपरिवार द्वारा नियुक्त ‘नगर प्रसाद अधिकारी’ इस आयोजन की जिम्मेदारी संभालते थे। सवाई माधोसिंह के काल में यह आयोजन और भी व्यापक हो गया। वे निंबार्क संप्रदाय से जुड़े थे और अन्नदान व दान-दक्षिणा के लिए प्रसिद्ध रहे।शहर में उस समय शाम के ज्योणार (सांझ भोज) और प्रसादी का सिलसिला देर रात तक चलता रहता था।आज भी जीवित है परंपरा की लौसमय भले बदल गया हो, पर जयपुर की यह राजसी परंपरा आज भी जीवित है। गोवर्धन पूजा के दिन गोविंददेव, गोपीनाथ, और राधा माधव मंदिरों में वही पुरानी रौनक लौट आती है। राजराजेश्वर महादेव मंदिर में आज भी प्रसाद वितरण और अन्नदान का आयोजन होता है।अब देवस्थान विभाग भी इन आयोजनों का हिस्सा बन चुका है, जिससे परंपरा को नई ऊर्जा मिल रही है। जयपुर आज भी हर गोवर्धन पूजा पर उस पुरानी महक से भर उठता है — जहां हर मोहल्ला, हर रसोई और हर दिल में ‘नए अन्न की खुशबू’ बस जाती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज गुरु चरण यात्रा के अवसर पर लोगों को हार्दिक शुभकामनाएं दीं और श्री गुरु गोबिंद सिंह जी और माता साहिब कौर जी की शाश्वत शिक्षाओं और आध्यात्मिक विरासत का स्मरण किया। उन्होंने सब से, विशेषकर यात्रा मार्ग के लोगों से इस आध्यात्मिक आयोजन में भाग लेने और पवित्र 'जोरे साहिब' के दर्शन करने का आह्वान किया। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म-एक्स पर किए पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए मोदी ने कहा: मैं कामना करता हूं कि गुरु चरण यात्रा श्री गुरु गोबिंद सिंह जी और माता साहिब कौर जी के महान आदर्शों के साथ हमारे जुड़ाव को और गहरा बनाएं। मैं यात्रा मार्ग के लोगों से आग्रह करता हूं कि वे पवित्र 'जोर साहिब' के दर्शन करने अवश्य आएं।" “मेरी कामना है कि गुरु चरन यात्रा के साथ श्री गुरु गोबिंद सिंह जी और माता साहिब कौर जी के महान आदर्शों से हमारा जुड़ाव और गहरा हो। यह यात्रा जहां-जहां से गुजरेगी, वहां के लोगों से मेरा आग्रह है कि वे पवित्र 'जोड़े साहिब' के दर्शन करने अवश्य आएं।”
प्रमोशन पिरामिड युक्ति युक्त बनाने के लिए उप प्रधानाचार्य पदों में बढ़ोतरी की जाएं राज्य सरकार के विभागों में अधिक पदों में से कम पदों पर पदोन्नतियां करने का प्रावधान है। शिक्षा विभाग में व्याख्याता से उप प्रधानाचार्य तथा इससे प्रधानाचार्य पदों पर पदोन्नतियां होती है। लेकिन प्रधानाचार्य पदों की संख्या अधिक एवं उप प्रधानाचार्य पदों की संख्या कम होने से पदोन्नति का पिरामिड युक्ति युक्त नहीं है। विभाग में 3 अतिरिक्त निदेशक 18 संयुक्त निदेशक 67 उपनिदेशक 534 जिला शिक्षा अधिकारी 19252 प्रधानाचार्य 12404 उप प्रधानाचार्य 57194 व्याख्याता 126496 वरिष्ठ अध्यापक 275320 अध्यापक के पद हैं। राजस्थान प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश मुख्य महामंत्री महेंद्र पाण्डे ने बताया की बीकानेर निदेशालय, संयुक्त निदेशक, मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी, मुख्य ब्लाक शिक्षा अधिकारी, एससीईआरटी उदयपुर, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर, स्टेट ओपन सकूल जयपुर, स्कूल शिक्षा परिषद जयपुर, समग्र शिक्षा, आरपीएससी अजमेर, कर्मचारी चयन बोर्ड जयपुर, उच्च अध्ययन शिक्षा संस्थान, डाइट में विविध नाम से व्याख्याता के पद आवंटित हैं। राजस्थान प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विपिन प्रकाश शर्मा कहा कि सभी उच्च माध्यमिक विद्यालय में उप प्रधानाचार्य का एक पद स्वीकृत तथा सभी कार्यालयों व संस्थानों में स्वीकृत व्याख्याता पदों को उप प्रधानाचार्य पदों में अपग्रेड किया जाना समीचीन रहेगा ताकि पदोन्नति का पिरामिड युक्ति युक्त हो सके।
जयपुर। जगद्गुरु शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती बुधवार को मोती डूंगरी स्थित प्रसिद्ध गणेश मंदिर पहुंचे। उन्होंने भगवान गणपति की विशेष पूजा-अर्चना कर देशवासियों के कल्याण की कामना की। मंदिर पहुंचने पर महंत कैलाश शर्मा और अन्य पुजारियों ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ उनका स्वागत किया। जगद्गुरु ने कहा कि मोती डूंगरी गणेश मंदिर आस्था का केंद्र है और यहां आकर आत्मिक शांति की अनुभूति होती है। उन्होंने मंदिर परिसर में दर्शन के बाद संक्षिप्त प्रवचन भी दिया, जिसमें धर्म, संस्कार और भक्ति के महत्व पर प्रकाश डाला। महंत कैलाश शर्मा ने मंदिर की पारंपरिक रीति से पूजा-अर्चना करवाई और उन्हें स्मृति चिन्ह भी भेंट किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे, जिन्होंने गुरुदेव के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। मंदिर परिसर भक्तिमय वातावरण से गूंज उठा।
कोटा. आखिकार बीते 20 दिनों के लम्बे इंतज़ार के पश्चात मेडिकल काउंसलिंग कमेटी (एमसीसी) ने मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट यूजी 2025 की रैंक्स द्वारा आल इंडिया कोटे की तृतीय राउंड काउंसलिंग का प्रोविजनल सीट अलाॅटमेंट बुधवार दोपहर को जारी कर दिया। एमसीसी द्वारा प्रमुख संस्थान जैसे एम्स, जिपमेर ,सेन्ट्रल यूनिवर्सिटीज तथा ईएसआईसी मेडिकल काॅलेज ,अन्य अखिल भारतीय मेडिकल तथा डेंटल काॅलेज एवं चुनिंदा केंद्रीय नर्सिंग संस्थानों मे प्रवेश हेतु काउंसलिंग संपन्न की गई।ऑल इंडिया 15 प्रतिशत कोटे में एमबीबीएस कोर्स के लिए जनरल कैटेगरी मे 26178, ईडब्ल्यूएस कैटेगरी में 29997 ,ओबीसी कैटेगरी में 26231 ,एससी में 136392 ,एसटी में 162975 क्लोजिंग रैंक रही।इसी प्रकार अन्य एम्स संस्थानों में जनरल कैटेगरी मे 7143 ,ईडब्ल्यूएस मे 12057,ओबीसी मे 8617,एससी मे 51471,एवं एसटी कैटेगरी में 70969 क्लोजिंग रैंक रही। एक्सपर्ट पारिजात मिश्रा ने बताया कि इसी प्रकार एक अन्य केंद्रीय संस्थान, जिप्मेर पांडिचेरी तथा कराईकल मे जनरल कैटेगरी मे 5731,ईडब्ल्यूएस मे 8126,ओबीसी मे 7700,एससी मे 46346 ,एवं एसटी कैटेगरी में 71488 क्लोजिंग रैंक रही। इसी प्रकार 15 प्रतिशत ऑल इंडिया कोटे की बीडीएस सीटों में जनरल कैटेगरी मे 49462, ईडब्ल्यूएस मे 60380, ओबीसी मे 51192, एससी मे 187809 एवं एसटी कैटेगरी में 241599 क्लोजिंग रैंक रही। डीम्ड यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध मेडिकल कॉलेज की 903723 क्लोजिंग रैंक तथा डेंटल कॉलेज की 766013 क्लोजिंग रैंक रही राजस्थान राज्य - पहली बार आल इंडिया काउंसलिंग प्रक्रिया मे शामिल राजस्थान का ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज जयपुर को भी कैंडिडेट्स ने प्रमुखता दी तथा इसकी आल इंडिया कोटे मे क्लोजिंग रैंक जनरल कैटेगरी मे 6481 ओबीसी मे 8056, एवं एससी मे 71773 क्लोजिंग रैंक रही। कॉलेज रिपोर्टिंग हेतु कैंडिडेट की उपस्थिति अनिवार्य रहेगी मिश्रा ने बताया कॉलेज अलाॅटेड कैंडिडेट्स को अपना व्यक्तिगत अलॉटमेंट लेटर एमसीसी की वेबसाइट से डाउनलोड करना होगा जोकि कैंडिडेट पोर्टल पर उपलब्ध होगा । इसके बाद उन्हें एमसीसी द्वारा जारी रिवाइज्ड जोइनिंग शेड्यूल के अनुसार अपने अलाॅटेड कॉलेज पर आॅरिजनल डाक्यूमेंट्स एवं फीस के साथ स्वयं उपस्थित होकर रिपोर्ट करना होगा। चूंकि यह एमसीसी का तृतीय राउंड काउंसलिंग है ,ऐसे कैंडिडेट्स जिन्हे प्रथम बार इस काउन्सलिंग से कॉलेज अलॉट हुआ है और वे अपने अलॉटेड कॉलेज से संतुष्ट नहीं है और वे उसे फाइनली ज्वाइन नहीं करना चाहते है तो वे एग्जिट विथ फॉरफिटर ऑफ़ सिक्योरिटी डिपाजिट के विकल्प का उपयोग कर सकते है , ऐसे मे उनके द्वारा जमा की गयी सिक्योरिटी डिपाजिट जब्त हो जाएगी , साथ ही मे ऐसे कैंडिडेट अब आल इंडिया काउन्सलिंग की पात्रता से भी बाहर हो जायेंगे ।मिश्रा ने बताया कि ऐसे कैंडिडेट जो अपने तृतीय राउंड काउन्सलिंग द्वारा अलॉटेड कॉलेज से सतुष्ट है वे उस कॉलेज मे जाकर अपनी एडमिशन प्रक्रिया को पूर्ण कर सकते है इस हेतु उन्हें अपने सब ओरिजिनल डाक्यूमेंट्स ,यथोचित कॉलेज फीस भी डिपाजिट करनी होगी साथ ही मे ऐसे कैंडिडेट जिन्होंने तृतीय राउंड से अलॉटेड कॉलेज मे एक बार एडमिशन ले लिया है वे अब अग्रिम किसी भी आल इंडिया तथा स्टेट कोटे काउंसलिंग राउंड्स मे सम्मिलित होने की पात्रता नहीं रख पाएंगे ।
— आंगनवाड़ी केंद्रों की सह-स्थापना को लेकर शिक्षा मंत्रालय की बैठकजयपुर। समग्र शिक्षा के अंतर्गत बाल्यावस्था शिक्षा और औपचारिक स्कूली शिक्षा को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग तथा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया। बैठक का एजेंडा विद्यालयों के साथ आंगनवाड़ी केंद्रों की सह-स्थापना के दिशा-निर्देशों के प्रभावी कार्यान्वयन एवं इस दिशा में उठाए जाने वाले आवश्यक कदमों पर केंद्रित रहा।वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से आयोजित इस बैठक में राजस्थान शिक्षा विभाग की ओर से शासन सचिव स्कूल शिक्षा कृष्ण कुणाल और अतिरिक्त राज्य परियोजना निदेशक (प्रथम) श्रीमती सीमा शर्मा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया। बैठक में प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा (ECE) को औपचारिक स्कूली शिक्षा के साथ एकीकृत करने पर विस्तृत चर्चा की गई। इस दौरान आंगनवाड़ी केंद्रों को विद्यालय परिसर में भौतिक रूप से सह-स्थापित करने पर विशेष जोर दिया गया, ताकि प्री-स्कूल से ग्रेड 1 तक के बच्चों को एक सुगम, समग्र और निरंतर शिक्षण वातावरण उपलब्ध कराया जा सके। वीसी के दौरान कुणाल ने बताया कि आंगनवाड़ी में जारी हॉलेस्टिक कार्ड के डेटा के उपयोग से विद्यालयों में नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि आंगनवाड़ी लिविंग सर्टिफिकेट की उपलब्धता के कारण विद्यालय में प्रवेश के लिए किसी अन्य दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होती, जिससे इस वर्ष प्री-कक्षाओं में नामांकन पिछले वर्ष की तुलना में 98 हजार से 1 लाख बच्चों तक बढ़ा है। राजस्थान की इस पहल की भारत सरकार के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के सचिव संजय कुमार और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव अनिल मलिक ने विशेष सराहना की। बैठक के बाद कुणाल ने इस दिशा में कार्य को और सशक्त बनाने के लिए संबंधित अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान किए।
जयपुर। सीकर रोड स्थित भवानी निकेतन परिसर में दीपावली स्नेह मिलन समारोह को आयोजन किया गया। स्नेह मिलन समारोह में सभी ने एक-दूसरे को दीपावली की बधाई देते हुए अपना-अपना परिचय दिया और किसी प्रकार की जाने-अनजाने में गलती या किसी का दिल दुखाया हो तो उसके लिए क्षमा याचना की गई।सुदर्शन सिंह सुरपुरा, सचिव ने बताया कि इस दौरान महाराजा ब्रिगेडियर भवानी सिंह जी (महावीर चक्र) की जयन्ती के अवसर पर स्नेह मिलन में उपस्थित सभी महानुभावों द्वारा उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। स्नेह मिलन में उपस्थित सरदारों द्वारा भवानीसिंह जी के कृतित्व व व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने कहा कि भवानीसिंह जी एक मात्र ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने भारतीय सेना में सेवाभाव से नौकरी करते हुए मात्र एक रुपये मासिक तनख्वा पर अपनी अमूल्य सेवाएं देश को प्रदान की। उनको सेवानिवृत्ति के पश्चात् श्रीलंका युद्ध अभियान में विशेष सेवाओं के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी द्वारा बुलाया गया और सेवानिवृत्ति पश्चात् ब्रिगेडियर की उपाधि से सम्माननीत किया गया। उनके कुशल नेतृत्व में 1971 की जंग में पाकिस्तान लड़ा गया छाछरो का युद्ध इतिहास में प्रसिद्ध है।स्नेह मिलन समारोह में राजपूत सभा से रामसिंह चन्दलाई, अध्यक्ष, धीरसिंह शेखावत, महासचिव, प्रतापसिंह राणावत, उपाध्यक्ष, भवानी निकेतन से जालिमसिंह आसपुरा, संरक्षक, शिवपालसिंह नांगल, नगेन्द्रसिंह बगड़, अध्यक्ष, महेन्द्रसिंह जैसलाण, उपाध्यक्ष, जालिमसिंह हुडि़ल, संयुक्त सचिव, श्यामसिंह मण्ढ़ा, कोषाध्यक्ष, दिलीपसिंह छापोली, गुलाबसिंह मेड़तिया, सम्पतसिंह धमोरा, दहेज विरोधी संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष गणपतसिंह राठौड़ सहित बड़ी संख्या में गणमान्य महानुभावों ने भाग लिया।
10,000+ कारीगरों की मदद के लिए पश्मीना, नमदा गलीचे और लकड़ी से बनी शिल्प कलाकृतियों पर 5 प्रतिशत जीएसटी जीएसटी कम होने से डेयरी और जैविक खेती में बेहतर आय और प्रतिस्पर्धात्मकता देखी जा रही है; खुबानी की खेती में लगे 6,000+ किसान परिवारों को लाभ होगा यात्रा को अधिक किफायती बनाने और 25,000+ लोगों की आजीविका को बनाए रखने के लिए होटल टैरिफ पर 5 प्रतिशत जीएसटी ≤ 7,500 रुपये निर्धारित लद्दाख में स्वावलंबन को बढ़ावा देने के लिए याक डेयरी, ऊन उत्पादकों और जैविक खेती को समर्थन देने के लिए जीएसटी में कटौती लद्दाख की अर्थव्यवस्था अपने अद्वितीय भूगोल, संस्कृति और शिल्प कौशल में गहराई से निहित है। यहां पारंपरिक आजीविका उभरते पर्यावरण के अनुकूल उद्योगों के साथ जुड़ी हुई है। उच्च गुणवत्ता वाले पश्मीना ऊन और खुबानी के बागों से लेकर जटिल थांगका पेंटिंग और टिकाऊ पर्यटन तक, प्रत्येक क्षेत्र क्षेत्र के कौशल और विरासत को दर्शाता है। उत्पादों और सेवाओं की विस्तृत विविधता की श्रेणी में हाल ही में जीएसटी में कटौती से लद्दाख की समृद्ध अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा और इससे कारीगरों, किसानों और छोटे उद्यमों को राहत मिलेगी। साथ ही ये सुधार आजीविका सृजन, सांस्कृतिक संरक्षण और लद्दाख की अर्थव्यवस्था के सतत विकास का समर्थन करेंगे। हथकरघा पश्मीना ऊन और उत्पाद लद्दाख के सबसे मूल्यवान पारंपरिक शिल्पों में से एक, पश्मीना ऊन का उत्पादन लेह के चांगथांग क्षेत्र में किया जाता है। इससे 10,000 से अधिक खानाबदोश चरवाहों का जीवन यापन होता है। पश्मीना अपनी गर्मी, कोमलता और सुंदरता के लिए जानी जाती है, और इसका उपयोग प्रीमियम शॉल, स्टोल और अन्य वस्त्रों के लिए किया जाता है। जीएसटी को 12 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत करने से आयातित या मशीन से बने विकल्पों की तुलना में प्रामाणिक लद्दाखी पश्मीना की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। इससे स्थानीय चरवाहों और कारीगरों के लिए आय स्थिरता में सुधार करने और निर्यात वृद्धि की संभावना बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। हाथ से बुने हुए ऊनी और नमदा गलीचे लेह और कारगिल के हाथ से बुने हुए ऊनी और नमदा गलीचे लद्दाख की ऊन शिल्प कौशल की समृद्ध परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं। याक और भेड़ की ऊन का उपयोग रंगे और विशिष्ट वस्त्र बनाने के लिए किया जाता है। जीएसटी को 12 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत करने से उत्पादन लागत कम करने में मदद मिलती है और पारंपरिक हस्तशिल्प तौर-तरीकों में सुधार को प्रोत्साहित किया जाता है। इससे ऊन प्रसंस्करण और गलीचा बनाने में लगे स्थानीय कारीगरों और सहकारी समितियों को महत्वपूर्ण लाभ मिलने की उम्मीद है। ऊनी फेल्ट उत्पाद और ऊनी सहायक उपकरण लेह और चांगथांग के ऊन महसूस किए गए उत्पाद और ऊनी सामान, जैसे कि फेल्ट जूते, टोपी और दस्ताने, लद्दाख की पारंपरिक शिल्प संस्कृति को बढ़ाते हैं। इन वस्तुओं का उपयोग स्थानीय रूप से किया जाता है और और ये पर्यटकों के बीच भी खरीददारी के लिए लोकप्रिय हैं। जीएसटी को 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत करने से ऊन प्रसंस्करण और उत्पाद निर्माण में लगे छोटे पैमाने पर, मौसमी कुटीर उद्योगों को सहायता मिलती है । इससे कारीगरों की आय में वृद्धि के साथ लद्दाख की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की भी उम्मीद है। हस्तशिल्प पारंपरिक लद्दाखी बढ़ईगीरी लेह और कारगिल की पारंपरिक लद्दाखी बढ़ईगीरी में जटिल नक्काशीदार लकड़ी की वेदी, खिड़की के फ्रेम और फर्नीचर हैं। जीएसटी को 12 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत करने से इन दस्तकारी वस्तुओं को अधिक किफायती और बाजार-प्रतिस्पर्धी बनाने की उम्मीद है। इससे कई हाशिए पर रहने वाले समुदायों सहित पारंपरिक शिल्पकारों को सहयोग तो मिलेगा ही साथ ही लद्दाख की सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत के संरक्षण को प्रोत्साहित भी मिलेगा। लद्दाखी थांगका पेंटिंग पारंपरिक बौद्ध स्क्रॉल कला लद्दाखी थांगका पेंटिंग, अक्सर लेह, अलची और हेमिस के मठों में तैयार की जाती हैं। इनका उपयोग ध्यान और सजावट के लिए किया जाता है। जीएसटी को 12प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत करने से इन जटिल चित्रों को अधिक सुलभ और आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाया जा सकता है, इससे लद्दाख की सांस्कृतिक विरासत के एक महत्वपूर्ण हिस्से को संरक्षित करने में मदद मिलती है। स्थानीय पर्यटन और होमस्टे लेह, नुब्रा, पैंगोंग और कारगिल में स्थानीय पर्यटन और होमस्टे लद्दाख की सेवा अर्थव्यवस्था का समर्थन करते हैं, इससे सीधे तौर पर 25,000 से अधिक लोगों को रोजगार मिलता है। खासकर व्यस्त पर्यटन सीजन के दौरान, प्रति रात 7,500 रुपये
एआई तत्परता के लिए कौशल विकास (एसओएआर) का लक्ष्य कक्षा 6 से कक्षा 12 तक के स्कूली छात्रों और शिक्षकों को एआई में सक्षम बनाना है, ताकि इस तेज़ी से डिजिटल होती दुनिया में भविष्य के लिए तैयार भारत का निर्माण हो सके। एसओएआर में छात्रों के लिए 15 घंटे के तीन लक्षित मॉड्यूल और शिक्षकों के लिए 45 घंटे का एक स्वतंत्र मॉड्यूल शामिल है, जिनमें एआई के नैतिक उपयोग और मशीन लर्निंग की मौलिक अवधारणा जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। केंद्रीय बजट 2025-26 में शिक्षा के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने के लिए ₹500 करोड़ आवंटित किए गए हैं, जिसका उद्देश्य एआई-संचालित शिक्षा और नवाचार को बढ़ावा देना है। जून 2025 तक, एनएपीएस-2 के अंतर्गत एआई डेटा इंजीनियर और मशीन लर्निंग इंजीनियर जैसी एआई से संबंधित भूमिकाओं के लिए वित्त वर्ष 2022-23 से वित्त वर्ष 2025-2026 के बीच 1,480 प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षित किया जा चुका है। एआई, मशीन लर्निंग, डेटा विज्ञान और स्वचालन (ऑटोमेशन) में प्रगति के कारण वैश्विक कार्यबल एक गहन परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। जैसे-जैसे एआई स्वास्थ्य सेवा, वित्त, शिक्षा, विनिर्माण और सार्वजनिक सेवाओं जैसे उद्योगों में अंतर्निहित होता जा रहा है, व्यापक एआई साक्षरता और विशिष्ट प्रतिभा की तत्काल आवश्यकता है। कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई) का एआई तत्परता के लिए कौशल विकास (एसओएआर) कार्यक्रमएक रणनीतिक पहल है, जिसका उद्देश्य भारत की शैक्षिक व्यवस्था में कृत्रिम बुद्धिमत्ता दक्षताओं को एकीकृत करना है। यह सरकार के वैश्विक तकनीकी प्रगति में अग्रणी होने के लक्ष्य के अनुरूप है। स्किल इंडिया मिशन के 10 साल पूरे होने के अवसर पर, जुलाई 2025 में इस कार्यक्रम की शुरुआत की गयी है। स्किल इंडिया मिशन ने 2015 से विभिन्न कौशल योजनाओं के जरिये लोगों को सशक्त बनाया है, जिसमें प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) 4.0 के तहत एआई जैसे उभरते क्षेत्र भी शामिल किये गये हैं। एसओएआर का मिशन: भविष्य को सशक्त बनाना तकनीक-संचालित भारत का निर्माण: एसओएआर का दीर्घकालिक दृष्टिकोण भारत को एआई के क्षेत्र में एक वैश्विक अग्रणी देश के रूप में स्थापित करना है और इसके लिए युवाओं को एआई -संचालित करियर और उद्यमशीलता के लिए तैयार करना है। एआई -साक्षर छात्रों और शिक्षकों के एक मज़बूत इकोसिस्टम को बढ़ावा देकर, इस पहल का उद्देश्य एआई विकास, डेटा विश्लेषण और तकनीकी नवाचार में विभिन्न भूमिकाओं के लिए कुशल पेशेवरों का एक समूह तैयार करना है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता: भारत के शिक्षा परिदृश्य में बदलाव कृत्रिम बुद्धिमत्ता; नवाचार को बढ़ावा देकर, डिजिटल साक्षरता को बढ़ाकर और छात्रों को प्रौद्योगिकी-संचालित भविष्य के लिए तैयार करके भारत के शिक्षा क्षेत्र में क्रांति ला रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 की सिफारिशों के अनुरूप, एआई को कक्षाओं और कौशल विकास रूपरेखाओं में सहजता से एकीकृत किया जा रहा है। इस परिवर्तन को गति देने वाले कुछ प्रमुख विकास कार्यक्रम इस प्रकार हैं: स्कूली पाठ्यक्रम में कृत्रिम बुद्धिमत्ता: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020, छात्रों में नवाचार और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए, उचित चरणों में, स्कूली पाठ्यक्रम में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) जैसे समकालीन विषयों को शामिल करने पर ज़ोर देती है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) पहले ही संबद्ध स्कूलों में एआई को एक विषय के रूप में लागू कर चुका है। 2019-2020 शैक्षणिक सत्र से कक्षा 9 में शुरू किया गया और 2020-2021 सत्र से कक्षा 11 तक विस्तारित किया गया, यह विषय कौशल विकास और व्यक्तिगत शिक्षण उपकरणों जैसे व्यावहारिक अनुप्रयोगों पर केंद्रित है। एआई में उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना: भारत सरकार शिक्षा में एआई को अपनाने को बढ़ावा देने की एक प्रमुख पहल के रूप में एआई उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना कर रही है। इसका उद्देश्य भारतीय भाषाओं के लिए एआई का लाभ उठाना, कक्षाओं में आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देना और पारंपरिक शिक्षण विधियों के स्थान पर "चॉकबोर्ड से चिपसेट तक" जैसे तकनीक-संचालित दृष्टिकोणों की ओर आगे बढ़ना है। यह केंद्र एआई अवसंरचना और मानव संसाधन निर्माण के व्यापक राष्ट्रीय प्रयासों का समर्थन करेगा। इसमें अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) द्वारा अनुमोदित संस्थानों को विभिन्न शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में एआई को एक वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल करने की सिफ़ारिशें भी शामिल हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) उन्नत एआई-संबंधित पाठ्यक्रम, जैसे डीप लर्निंग, मशीन लर्निंग और प्रेडिक्टिव डेटा एनालिटिक्स, प्रदान करके इसे पूरक बनाता है। स्किल इंडिया मिशन (एसआईएम) में एआई और डिजिटल लर्निंग का एकीकरण: भारत सरकार भविष्य के लिए प्रशिक्षित कार्यबल तैयार करने हेतु स्किल इंडिया मिशन (एसआईएम) में एआई और डिजिटल लर्निंग कार्यक्रमों को सक्रिय रूप से शामिल कर रही है। इसके लिए प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) 4.0, राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्धन योजना (एनएपीएस), औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) और राष्ट्रीय कौशल प्रशिक्षण संस्थान (एनएसटीआई) तथा स्किल इंडिया डिजिटल हब (एसआईडीएच) प्लेटफ़ॉर्म के अंतर्गत लक्षित पहलें की जा रही हैं। पीएमकेवीवाई 4.0: 2015 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम अल्पकालिक प्रशिक्षण, कौशल उन्नयन और पूर्व-शिक्षण की मान्यता पर केंद्रित है, जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) जैसे भविष्य के कौशल को प्राथमिकता दी जाती है। एनएपीएस: राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्धन योजना (एनएपीएस-2), जो वर्तमान में अपने दूसरे चरण में है, अगस्त 2016 से, न्यूनतम निर्धारित राशि के 25% तक, अधिकतम ₹1,500 प्रति माह वजीफा प्रदान करके प्रशिक्षुता का समर्थन करती है। यह राशि प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के माध्यम से प्रदान की जाती है। एआई से संबंधित व्यवसायों के अंतर्गत, वित्त वर्ष 2022-23 से वित्त वर्ष 2025-26 (जून 2025 तक) तक देश भर में 1,480 प्रशिक्षुओं को जोड़ा गया है, जिनमें एआई डेटा इंजीनियर, मशीन लर्निंग इंजीनियर और पायथन एआई प्रशिक्षु जैसी भूमिकाएँ शामिल हैं। मार्च 2025 तक, लगभग 60 निजी प्रतिष्ठान वर्तमान में एनएपीएस के तहत एआई से संबंधित पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं। एसआईडीएच प्लेटफॉर्म: कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के तहत कौशल विकास का एक व्यापक डिजिटल प्लेटफॉर्म है, जो भारतीय युवाओं को सशक्त बनाने के लिए विभिन्न विशेषज्ञता स्तरों पर एआई/एमएल और डिजिटल प्रौद्योगिकियों में उद्योग-प्रासंगिक पाठ्यक्रमों के साथ-साथ नौकरी और उद्यमिता के अवसर प्रदान करता है। एसओएआर: प्रासंगिकता और अपेक्षित परिणाम स्किल इंडिया मिशन के साथ रणनीतिक समन्वय: एसओएआर छात्रों के लिए लक्षित मॉड्यूल प्रदान करके स्किल इंडिया मिशन का समर्थन करता है, ताकि युवाओं को एआई-संचालित क्षेत्रों में रोज़गार क्षमता और उत्पादकता बढ़ाने के लिए आवश्यक डिजिटल कौशल प्रदान किया जा सके। विकसित भारत विज़न में योगदान: यह कार्यक्रम "सभी के लिए एआई" पहल के माध्यम से 2047 तक भारत के विकसित राष्ट्र विज़न को आगे बढ़ाता है। यह एक तकनीक-कुशल कार्यबल को बढ़ावा देता है जो नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए एआई का लाभ उठाता है, जैसा कि राष्ट्रीय कौशल विकास रणनीतियों में बल दिया गया है। डिजिटल समावेश को बढ़ावा: एसओएआर, स्किल इंडिया डिजिटल हब जैसे सुलभ प्लेटफ़ॉर्म में एआई प्रशिक्षण को एकीकृत करके शहरी-ग्रामीण डिजिटल विभाजन को कम करता है। यह सरकारी और निजी स्कूलों में डिजिटल कौशल तक समान पहुँच सुनिश्चित करता है, जिससे वंचित समुदाय सशक्त बनते हैं। एआई-जागरूक छात्र और प्रशिक्षित शिक्षक: एसओएआर का उद्देश्य एआई-जागरूक छात्रों को तैयार करना है, जो नैतिक एआई अनुप्रयोग में सक्षम हों और सरकारी और निजी स्कूलों के शिक्षकों को शिक्षण पद्धतियों को बेहतर बनाने और कक्षाओं में एआई को व्यापक रूप से अपनाने को सुनिश्चित करने के लिए प्रशिक्षित करें। एआई करियर में रुचि बढ़ाना और कौशल अंतराल कम करना: एसओएआर कार्यक्रम का उद्देश्य व्यावहारिक कौशल के माध्यम से एआई करियर में युवाओं की रुचि बढ़ाना है। यह समावेशी प्रशिक्षण प्रदान करके और उच्च-मांग वाले तकनीकी कौशल तक पहुँच को सक्षम बनाकर डिजिटल दक्षताओं में शहरी-ग्रामीण अंतर को भी कम करता है। एआई तत्परता के लिए कौशल विकास (एसओएआर) कार्यक्रम भारत को एआई-संचालित शिक्षा और कार्यबल विकास में एक वैश्विक देश के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। स्कूली पाठ्यक्रम और व्यावसायिक प्रशिक्षण में एआई साक्षरता को शामिल करके, एसओएआर न केवल छात्रों और शिक्षकों को अत्याधुनिक कौशल से लैस करता है, बल्कि नवाचार और प्रौद्योगिकी के नैतिक उपयोग की संस्कृति को भी बढ़ावा देता है। रणनीतिक साझेदारियों और स्किल इंडिया डिजिटल हब जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से, यह कार्यक्रम विविध सामाजिक-आर्थिक समूहों में पहुँच सुनिश्चित करता है, ताकि भारतीय युवा तकनीकी और आर्थिक प्रगति को गति प्रदान कर सकें। विकसित भारत @ 2047 विजन की आधारशिला के रूप में, एसओएआर एक डिजिटल रूप से समावेशी, प्रतिस्पर्धी और आत्मनिर्भर भारत की नींव रखता है, जो वैश्विक नवाचार के भविष्य को आकार देने के लिए तैयार है। एआई जागरूकता को बढ़ावा देना: एसओएआर पहल स्कूली छात्रों और शिक्षकों के बीच एआई साक्षरता को बढ़ावा देने को प्राथमिकता देती है। मशीन लर्निंग (एमएल) की मूल बातें और एआई के नैतिक उपयोग जैसी मूलभूत एआई अवधारणाओं को प्रस्तुत करके, इस कार्यक्रम का उद्देश्य युवा शिक्षार्थियों में जिज्ञासा और आकांक्षा जगाना और उन्हें तकनीक-संचालित भविष्य के लिए तैयार करना है। शिक्षकों के लिए, एसओएआर मौजूदा पाठ्यक्रम में एआई मॉड्यूल को शामिल करने के लिए विशेष प्रशिक्षण प्रदान करता है, जिससे प्रभावी सेवा अदायगी और उद्योग की आवश्यकताओं के साथ समन्वय सुनिश्चित होता है।आर्थिक आत्मनिर्भरता का समर्थन: एसओएआर युवाओं को आईटी, डिजिटल नवाचार और एआई -संचालित उद्योगों जैसे उच्च-मांग वाले क्षेत्रों के लिए कौशल से लैस करके भारत के आर्थिक आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत) विज़न का रणनीतिक रूप से समर्थन करता है। यह पहल पीएमकेवीवाई 4.0 जैसी प्रमुख योजनाओं के अंतर्गत राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप है, जो रोज़गार क्षमता और उद्यमिता को बढ़ाने के लिए उभरती तकनीकों के कौशल विकास पर केंद्रित है।
एमएनआरई ने स्थिर, विश्वसनीय और सतत नवीकरणीय विकास सुनिश्चित करते हुए भारत के तीव्र विस्तार से लेकर प्रणालीगत एकीकरण तक के परिवर्तन को रेखांकित किया भारत के 2030 स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को कार्यनीतिक स्थायित्व के साथ आगे बढ़ाने के लिए ग्रिड, वित्तीय प्रणालियों और बाजार डिजाइन के साथ नवीकरणीय ऊर्जा का समन्वयन किया हाइब्रिड और आरटीसी परियोजनाओं, अपतटीय पवन, भंडारण, पीएम कुसुम और पीएमएसजीवाई के तहत वितरित सौर, ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर के साथ आकार ले रहा है भारत के नवीकरणीय विकास का अगला चरण भारत का नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र एक नए रूपान्तरकारी चरण में प्रवेश कर रहा है, जो न केवल क्षमता वृद्धि की गति से बल्कि इसकी प्रणालियों की मजबूती, स्थिरता और गहनता से भी परिभाषित होगा। एक दशक के रिकॉर्ड विस्तार के बाद, अब फोकस मज़बूत, वितरण योग्य और लचीली स्वच्छ ऊर्जा संरचना के निर्माण पर केंद्रित है जो 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म क्षमता प्राप्त करने के देश के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक हो सके। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने रेखांकित किया है कि भारत की नवीकरणीय विकास की गाथा विश्व में सबसे तेज और सबसे अग्रगामी बनी हुई है, जो गति से लेकर प्रणाली की मजबूती, मात्रा से लेकर गुणवत्ता और विस्तार से लेकर स्थायी एकीकरण तक विकसित हो रही है। मात्रा से गुणवत्ता की ओर बदलाव पिछले दशक में भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता पांच गुना से भी अधिक बढ़ी है, जो 2014 में 35 गीगावाट से कम थी और आज 197 गीगावाट (बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को छोड़कर) से भी अधिक हो गई है। यह असीम वृद्धि अनिवार्य रूप से एक ऐसे बिंदु पर पहुंचती है, जहां अगले कदम के लिए न केवल अधिक मेगावाट की आवश्यकता होगी, बल्कि गहन प्रणाली सुधारों की भी जरूरत होगी। यह सेक्टर उस चरण में प्रवेश कर चुका है, जहां फोकस क्षमता विस्तार से हटकर क्षमता अवशोषण पर केंद्रित हो रहा है। अब हम ग्रिड एकीकरण, ऊर्जा भंडारण, संकरण और बाज़ार सुधारों पर काम कर रहे हैं, जो 500 गीगावाट से अधिक के गैर-जीवाश्म भविष्य की वास्तविक नींव हैं। इस अर्थ में क्षमता वृद्धि में हाल में आई नरमी एक पुनर्संतुलन है, एक आवश्यक विराम है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भविष्य का विकास स्थिर, प्रेषण योग्य और लचीला हो। भारत की नवीकरणीय ऊर्जा वृद्धि विश्व में सबसे तेज बनी हुई है, जो बहु-मार्गीय विस्तार से प्रेरित है 40 गीगावाट से अधिक की नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं वर्तमान में पीपीए, पीएसए या ट्रांसमिशन कनेक्टिविटी अर्जित करने के उन्नत चरणों में हैं - जो इस क्षेत्र में प्रतिबद्ध निवेश की मजबूत पाइपलाइन का स्पष्ट प्रतिबिंब है। वास्तविकता यह है कि भारत का नवीकरणीय ऊर्जा बाजार अपने ग्रिड और संविदात्मक संस्थानों की गति से आगे निकल गया है, जो व्यापक स्तर पर ऊर्जा परिवर्तन से गुजर रहे सभी देशों के लिए एक समान चुनौती है। इस संदर्भ में, नवीकरणीय ऊर्जा के लिए व्यापक पर बोलियां लगाने से पहले राज्यों/डिस्कॉम द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा खरीद दायित्व को लागू करना, बिजली की निकासी के लिए ट्रांसमिशन लाइनों को उन्नत करना और ग्रिड एकीकरण के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना शीर्ष प्राथमिकताएं बनी हुई हैं। चालू वर्ष में केंद्रीय नवीकरणीय ऊर्जा कार्यान्वयन एजेंसियों (आरईआईए) ने 5.6 गीगावाट के लिए बोलियां लगाई हैं, जबकि राज्य एजेंसियों ने 3.5 मेगावाट के लिए बोलियां लगाई हैं। इसके अतिरिक्त, वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं द्वारा कैलेंडर वर्ष 2025 में लगभग 6 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता जोड़ने की संभावना है। इस प्रकार, नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता वृद्धि न केवल आरईआईए द्वारा संचालित बोलियों के माध्यम से, बल्कि कई माध्यमों से हो रही है। वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों ने भी इसमें भूमिका निभाई है: आपूर्ति-श्रृंखला में व्यवधान, मॉड्यूल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और कठिन वित्तीय परिस्थितियों ने कमीशनिंग की समय-सीमा को धीमा कर दिया है। फिर भी, भारत वार्षिक रूप से 15-25 गीगावाट नई नवीकरणीय क्षमता जोड़ना जारी रखे हुए है, जो विश्व में सबसे तेज़ दरों में से एक है। एक सुविचारित नीतिगत धुरी पिछले दो वर्षों में नीतिगत ध्यान सुविचारित विशुद्ध क्षमता वृद्धि से हटकर प्रणाली डिज़ाइन की ओर स्थानांतरित हो गया है। ऊर्जा भंडारण या अधिकतम विद्युत आपूर्ति वाली नवीकरणीय ऊर्जा (आरईपी) के लिए निविदाएं अब नीलामी में प्रमुखता से शामिल हैं, जो दृढ़ और प्रेषण योग्य हरित ऊर्जा की ओर एक कदम का संकेत है। बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (बीईएसएस) को ग्रिड और परियोजना दोनों स्तरों पर एकीकृत किया जा रहा है, जो एक नए बाज़ार के उद्भव का संकेत है। उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना, घरेलू सामग्री आवश्यकता, शुल्क अधिरोपण, एएलएमएम के कार्यान्वयन और पूंजीगत उपकरणों के लिए शुल्क छूट के माध्यम से प्रोत्साहित घरेलू विनिर्माण, आयात निर्भरता को कम कर रहा है और औद्योगिक गहराई सृजित कर रहा है। इसके अतिरिक्त, जीएसटी संरचनाओं और एएलएमएम प्रावधानों का पुनर्निर्धारण एक कार्यनीतिक समेकन चरण का प्रतिनिधित्व करता है, जो राजकोषीय नीति को घरेलू मूल्य श्रृंखला की गहराई और प्रौद्योगिकी आश्वासन के दोहरे उद्देश्यों के साथ संयोजित करता है। पारंपरिक होने के बजाय, ये समायोजन लागतों को स्थिर करने, मॉड्यूल विश्वसनीयता बढ़ाने और भारत के परिपक्व होते सौर विनिर्माण इकोसिस्टम में परिमाण की दक्षता को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। इसके साथ ही, बैटरी भंडारण परिनियोजन का मार्ग व्यवहार्यता अंतर-वित्त पोषित परियोजनाओं, संप्रभु निविदाओं और उभरते भंडारण दायित्वों के माध्यम से आगे बढ़ रहा है, जो दृढ़, प्रेषण योग्य नवीकरणीय क्षमता की नींव स्थापित कर रहा है। ये उपाय विस्तार-आधारित विकास से एक अधिक लचीले, गुणवत्ता-संचालित और प्रणाली-एकीकृत नवीकरणीय ऊर्जा ढांचे की ओर बदलाव का संकेत देते हैं। ऐसे परिवर्तनों से दृष्टिगोचर क्षमता आंकड़े प्राप्त करने में समय लगता है, लेकिन वे स्थायी संरचनात्मक प्रगति का प्रतिनिधित्व करते हैं – यह प्रगति एक मजबूत ऊर्जा भविष्य का आधार बनती है। ट्रांसमिशन सुधारों से 200 गीगावाट से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का विकास होगा ट्रांसमिशन एक नए मोर्च के रूप में उभरा है। भारत के ग्रिड को 500 गीगावाट के लिए 2.4 लाख करोड़ रुपये की ट्रांसमिशन योजना के माध्यम से पुनर्परिकल्पित किया जा रहा है, जो नवीकरणीय ऊर्जा-समृद्ध राज्यों को मांग केंद्रों से जोड़ेगा। सरकार हरित ऊर्जा गलियारों और राजस्थान, गुजरात और लद्दाख से नई उच्च क्षमता वाली ट्रांसमिशन लाइनों के माध्यम से ट्रांसमिशन बुनियादी ढांचे में निवेश को प्राथमिकता दे रही है। हालांकि ये परियोजनाएं बहु-वर्षीय प्रयास हैं, लेकिन एक बार चालू होने पर ये 200 गीगावाट से अधिक नई नवीकरणीय क्षमता प्रस्तुत करेगी। इस प्रकार वर्तमान चरण अस्थायी है - एक संक्रमणकालीन अंतराल है, न कि एक संरचनात्मक सीमा है। सरकार ने पहले ही एचवीडीसी कॉरिडोर बनाने और अंतर-क्षेत्रीय ट्रांसमिशन क्षमता को वर्तमान 120 गीगावाट से बढ़ाकर 2027 तक 143 गीगावाट तथा 2032 तक 168 गीगावाट करने की योजना बना ली है। इसके अतिरिक्त, सीईआरसी जनरल नेटवर्क एक्सेस (जीएनए) विनियमन, 2025 में हाल ही में किए गए संशोधनों ने ट्रांसमिशन तत्परता के दृष्टिकोण में उल्लेखनीय सुधार किया है। समय-विभाजित एक्सेस - 'सौर-घंटे' और 'गैर-सौर-घंटे' - की शुरुआत से सौर, पवन और भंडारण परियोजनाओं के बीच गलियारों का गतिशील साझाकरण संभव हो गया है, जिससे निरुपयोगी क्षमता का दोहन हो रहा है और नवीकरणीय ऊर्जा समृद्ध राज्यों में भीड़भाड़ कम हो रही है। स्रोत लचीलेपन, सख्त कनेक्टिविटी मानदंडों और सबस्टेशन-स्तरीय पारदर्शिता के प्रावधान ग्रिड एक्सेस को और अधिक सुव्यवस्थित बनाते हैं और कल्पित आवंटन पर अंकुश लगाते हैं। ये सुधार ट्रांसमिशन उपयोग को अनुकूलित करने और अटकी हुई नवीकरणीय परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने की दिशा में एक निर्णायक कदम हैं, जो इस सेक्टर की प्रमुख कार्यान्वयन चुनौतियों में से एक का प्रत्यक्ष समाधान करते हैं। भारत स्वच्छ ऊर्जा पूंजी के लिए लगातार आकर्षण का केंद्र बना हुआ है अल्पकालिक विलंब के बाद, भारत स्वच्छ ऊर्जा पूंजी के लिए एक आकर्षण बना हुआ है। नवीकरणीय ऊर्जा शुल्क वैश्विक स्तर पर सबसे कम दरों में से एक बने हुए हैं, जिससे दीर्घकालिक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित होती है। भारत स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में निवेश के लिए सबसे आकर्षक गंतव्यों में से एक बना हुआ है और अंतर्राष्ट्रीय रुचि उच्च बनी हुई है। वैश्विक निवेशक भारत से बाहर नहीं जा रहे हैं; वे एकीकृत और भंडारण-समर्थित पोर्टफोलियो की ओर रुख कर रहे हैं। इस क्षेत्र के मूल तत्व - मजबूत मांग वृद्धि, नीतिगत निरंतरता और लागत प्रतिस्पर्धात्मकता - मजबूती से बरकरार हैं। वास्तविक आर.ई. कहानी: विस्तार से एकीकरण तक वास्तविक कहानी क्षरण की नहीं, विकास की है। भारत का स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन एक ऐसे चरण में प्रवेश कर रहा है जहां मुख्य चुनौतियां एकीकरण, विश्वसनीयता और परिमाण की दक्षता से संबंधित हैं। इस संदर्भ में परियोजनाओं की पाइपलाइन का अस्थायी रूप से स्थिर होना परिपक्वता का प्रतीक है। यह सेक्टर अब - नवीकरणीय ऊर्जा को ग्रिड अवसंरचना, वित्तीय अनुशासन और दीर्घकालिक बाजार डिजाइन के साथ समन्वयित करने का कठिन काम कर रहा है। वास्तविक ग्रिड विस्तार के पूरक के रूप में वर्चुअल पावर परचेज एग्रीमेंट (वीपीपीए) और अन्य बाजार-आधारित उपकरण नवीकरणीय ऊर्जा परिनियोजन में तेजी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वीपीपीए कॉर्पोरेट और संस्थागत खरीदारों को खरीद को वास्तविक वितरण से अलग करते हुए अक्षय ऊर्जा का आभासी रूप से अनुबंध करने की अनुमति देते हैं। इससे मांग में वृद्धि होती है, डेवलपर्स को मूल्य निश्चितता मिलती है और ग्रिड कनेक्टिविटी की प्रतीक्षा कर रही परियोजनाओं में निजी निवेश को प्रोत्साहन मिलता है। ग्रीन एट्रिब्यूट ट्रेडिंग, बाजार-आधारित सहायक सेवाओं और डे-अहेड तथा रियल-टाइम बाजार एकीकरण के साथ, ये इंस्ट्रूमेंट लचीले, मांग-संचालित नवीकरणीय विकास के लिए एक मजबूत इकोसिस्टम का निर्माण करेंगे। कॉर्पोरेट खरीद, ग्रिड लचीलेपन और राष्ट्रीय डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों को संयोजित करने के लिए, एमएनआरई और विद्युत मंत्रालय से सक्षम नीतिगत समर्थन के साथ, ऐसे तंत्र विद्युत (संशोधन) विधेयक के तहत या सीईआरसी बाजार विनियमों के माध्यम से रणनीतिक रूप से शामिल किए जाने की प्रक्रिया में हैं। भविष्य की रूपरेखा विकास का अगला चरण पहले से ही आकार ले रहा है : राजस्थान, गुजरात और कर्नाटक में बड़ी हाइब्रिड और आरटीसी परियोजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं। अपतटीय पवन और पम्पयुक्त जल भंडारण में तेजी आ रही है। पीएम सूर्याघर और पीएम कुसुम के अंतर्गत वितरित सौर और कृषिवोल्टीय पहल ग्रामीण भागीदारी को बढ़ा रही हैं। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन नवीकरणीय ऊर्जा को औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन से जोड़ रहा है। हरित ऊर्जा कॉरिडोर चरण III के सुदृढ़ीकरण के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण ये वे कारक हैं जो भारत को केवल गति से नहीं, बल्कि कार्यनीतिक स्थिरता से उसके 2030 के लक्ष्यों की ओर अग्रसर करेंगे। विकसित भारत: नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन का विकास भारत का स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन तिमाही आंकड़ों से नहीं, बल्कि संस्थागत स्थायित्व और स्थिरता से परिभाषित होता है। एक दशक की भागदौड़ के बाद, यह सेक्टर ग्रिड की मज़बूती, स्थानीय विनिर्माण और वित्तीय स्थिरता के साथ क्षमता का समन्वय करके आगे बढ़ना सीख रहा है। भारत की नवीकरणीय ऊर्जा यात्रा समेकन के दौर से गुज़र रही है - जो यह सुनिश्चित करती है कि जब अगली गतिवृद्धि होगी, तो यह अधिक तेज और कहीं अधिक टिकाऊ होगी। भारत की नवीकरणीय ऊर्जा गाथा ने गति नहीं खोई है। इसने परिपक्वता अर्जित की है।