- ज़ुबैर अहमद
- बीबीसी संवाददाता, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ से लौट कर
फरवरी महीने में छत्तीसगढ़ के आदिवासी गांव ब्रिम्डेगा में लगभग दो दर्जन लोगों की एक रंगा-रंग धार्मिक समारोह में हिन्दू धर्म में वापसी कराई गयी. समारोह का आयोजन करने वाले इस प्रक्रिया को ‘घर वापसी’ कहते हैं.
इसका मतलब है हाल के सालों में हिन्दू से ईसाई बनाए जाने वालों की हिन्दू धर्म में फिर से वापसी.
हिन्दू धर्म में ‘वापस’ होने वाले एक युवक परमेश्वर एक्का ने मुझसे कहा कि उसने कई महीनों तक अपने गुरु से विचार-विमर्श के बाद हिन्दू धर्म में फिर से वापिस लौटने का फ़ैसला किया, “हम लोग हिन्दू ही हैं शुरू से. अनजाने में ईसाई धर्म में साल-दो साल के लिए चले गए थे. उसमें विनती प्रार्थना करवाते थे कि ये प्रार्थना करो तो तुम्हारा दुःख, तकलीफ दूर हो जायेगा. साल भर गए लेकिन कुछ नहीं हुआ. फिर गुरु के द्वारा हमारा आज धर्म परिवर्तन हो गया. पैर धोकर हिन्दू धर्म में वापसी किए.”
ब्रिम्डेगा छत्तीसगढ़ के जशपुर ज़िले में है जो झारखण्ड और ओडिशा से सटा हुआ है. ये एक बड़ी आदिवासी बेल्ट है. इस पूरे क्षेत्र में सालों से लोगों को हिन्दू धर्म में वापस लाने का एक बड़ा अभियान चलाया जा रहा है जिसमें आर्य समाज, बीजेपी, आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और संघ परिवार के कई दूसरे संगठन शामिल हैं.
जनगणना के अनुसार 1991 के बाद से छत्तीसगढ़, झारखण्ड और ओडिशा के आदिवासी क्षेत्र में ईसाई आबादी बढ़ी है. इस क्षेत्र में इस अभियान का नेतृत्व बीजेपी के जाने-माने नेता प्रबल प्रताप सिंह जूदेव के हाथ में है जिनके पिता दिलीप सिंह जूदेव ने ये काम 1985-86 में शुरू किया था.
वो प्रधानमंत्री वाजपेयी के मंत्रिमंडल के सदस्य थे और इस अभियान को आगे बढ़ाने में उनकी अहम भूमिका रही थी. अपने पिता की मृत्यु के बाद प्रबल प्रताप सिंह ने 2013 में ये काम शुरू किया था.
वो कहते हैं, “मैंने अब तक 15000 लोगों की ‘घर वापसी’ कराई है.”
आदिवासियों की ‘घर वापसी’
16 फ़रवरी के दिन जब मैं ब्रिम्डेगा पहुंचा तो माहौल उत्साहपूर्ण था. आदिवासी सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन था.
मिट्टी के एक बड़े घर में कई धर्मगुरु यज्ञ कर रहे थे और मन्त्र पढ़े जा रहे थे. साथ में बैठे गांव के लोग छोटे समूहों में बारी-बारी से इसमें शामिल हो रहे थे. आखिर में वो 22 लोग शामिल हुए जिनकी ‘घर वापसी’ के लिए इस समारोह का आयोजन किया गया था.
प्रबल प्रताप सिंह गंगा जल से एक-एक करके उनके पैर धो रहे थे. “ये अनोखी परंपरा मेरे पिता जी ने शुरू की थी. वो गंगा जल से पैर धोकर जनजाति परिवारों की घर वापसी कराते थे.”
शांत तबियत और ऊंचे क़द के जूदेव का कहना है कि वो इस अभियान का नेतृत्व ज़रूर कर रहे हैं लेकिन इसको आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी सभी हिन्दुओं की है.
वे कहते हैं, “ये किसी एक ख़ास पार्टी या संगठन का एजेंडा नहीं होना चाहिए. ये एक वास्तविकता है कि हिन्दू समुदाय एक क्राइसिस से डील कर रहा है, कन्वर्जन हो रहे हैं. भारत एक ही हिन्दू राष्ट्र बचा है, नेपाल को छोड़ कर. सवाल ये उठता है कि अगर हम सक्रिय नहीं होंगे अपनी प्राचीन संस्कृति को बचाने के लिए तो हमारा हिन्दू राष्ट्र बचेगा नहीं, सब कन्वर्ट हो जायेंगे, तो इसलिए ये सभी हिन्दुओं की ज़िम्मेदारी है.”
यहाँ ये बताना ज़रूरी है कि धर्मांतरण के मामलों और आरोपों के बावजूद भारत में आज़ादी के बाद से हिन्दुओं की आबादी अब तक लगभग 80 प्रतिशत रही है. और ईसाईयों की 2.30 प्रतिशत.
लेकिन हिन्दू समाज में एक वर्ग ऐसा है जो ख़ुद को असुरक्षित महसूस करता है. ब्रिम्डेगा में तीन घंटे तक चलने वाले इस समारोह में शामिल कई लोगों ने मुझसे कहा कि “घर वापसी’, ‘लव जिहाद’ की तरह हिन्दू जागरण का नतीजा है और हिन्दू राष्ट्र के निर्माण का एक महत्वपूर्ण कार्य.”
धर्मांतरण का गढ़
ये आदिवासी बेल्ट अगर ‘घर वापसी’ का केंद्र बिंदु है तो ये धर्मांतरण का एक गढ़ भी माना जाता है.
प्रबल प्रताप सिंह कहते हैं, “जशपुर में बहुत धर्मांतरण हो रहे हैं. जशपुर धर्मांतरण का एक गढ़ है. जशपुर एक ट्राइबल एरिया है, पिछड़ा एरिया है. यहाँ ज़्यादा षड्यंत्रकारी शक्तियां काम करती हैं. बाक़ी बॉर्डर पर झारखण्ड है. वहां भी बहुत धर्म परिवर्तन हुए हैं. काफ़ी हिन्दू कन्वर्ट हुए हैं”.
ईसाई धर्म को अपनाने वालों और इसके प्रचार करने वालों पर अत्याचार की ख़बरें भी यहीं से सबसे अधिक आ रही हैं. लेकिन ये अकेला ऐसा क्षेत्र नहीं है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी ईसाई कहते हैं कि दक्षिण पंथी हिन्दू संस्थाएं उनकी प्रार्थना सभाओं को हिंसा के बल पर रोकने की कोशिश करती हैं लेकिन इसके बावजूद पुलिस ईसाइयों को ही गिरफ़्तार करती है.
ईसाई प्रार्थना सभाओं में हमले इतने बढ़ गए हैं कि अब ये सभाएं खुले में या गिरजाघरों में कम होती हैं. प्रार्थना सभाएं अब अधिकतर घरों के अंदर आयोजित की जा रही हैं. देश भर के लिए कोई एक धर्मांतरण विरोधी कानून नहीं है. लेकिन आठ राज्यों ने अपने-अपने कानून बनाए हैं जो जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए बनाए गए हैं. बीजेपी ने ऐसे एक राष्ट्रीय कानून की ज़रूरत की बात ज़रूर की है.
पिछले साल उत्तर प्रदेश ने धर्मांतरण विरोधी कानून पारित किया और मध्य प्रदेश ने अपने 1968 के कानून में संशोधन किया. कर्नाटक का धर्मांतरण विरोधी विधेयक विधान सभा द्वारा पारित कर दिया गया है लेकिन इसे विधान परिषद द्वारा पारित किया जाना बाकी है.
धर्म का प्रचार प्रसार
बनारस शहर के एक मोहल्ले में ईसाई धर्म को मानने वालों की आबादी अच्छी ख़ासी है. हमें वहां एक घर के अंदर चल रही प्रार्थना सभा में शामिल होने का मौक़ा मिला. वहां मौजूद सभी लोग ईसाई थे.
पास्टर अब्राहम और उनकी पत्नी पास्टर प्रतिभा वहां मौजूद मर्द, औरतों और बच्चों के साथ ज़ोर से गाने के अंदाज़ में प्रार्थना कर रहे थे. बाद में उन्होंने बाइबिल का पाठ भी पढ़ा.
पास्टर अब्राहम और उनकी पत्नी को देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि वो हाल में ही जेल से रिहा होकर लौटे थे. पिछले साल नवंबर में उन्होंने मऊ में अपने निवास पर एक प्रार्थना सभा का आयोजन किया था जिसके दौरान, पास्टर प्रतिभा के मुताबिक़, “मसीही विरोधी लोग 2020 के बाद दूसरी बार हमारे यहाँ आये. हमने अपने लोगों से कहा प्रार्थना करते रहो.”
वो कहती हैं, “वो लोग मोबाइल से हमारा वीडियो ले रहे थे और वो लोग कह रहे थे यहाँ धर्म परिवर्तन का रैकेट चल रहा है. कोतवाली में हम सबको ले गए. पुलिस हमें थाने ले गई और बाद में हम सात लोगों को जेल भेज दिया.”
ज़मानत पर रिहा होने के बाद से वो सतर्क हैं और सभाएं घरों के अंदर कर रहे हैं.
यहाँ लोग ईसाई धर्म क्यों अपना रहे हैं?
बनारस के ही राजेश कुमार अपने कई मसीही साथियों के साथ एक प्रार्थना सभा में शामिल थे.
उन्होंने कहा, “कुछ स्थानीय हिन्दू लड़के पुलिस के साथ आये और कहा आप ज़बरदस्ती धर्मांतरण कर रहे हो”.
पुलिस फिर उन्हें थाने ले गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया. “15-16 लड़कों ने हमारे ख़िलाफ़ शिकायत की थी कि हम धर्मांतरण के लिए प्रार्थना सभा करते हैं. हम सताये भी जाएंगे लेकिन प्रभु का प्रचार करना नहीं छोड़ेंगे”
राजेश एक समय हिन्दू थे लेकिन कई साल पहले वो ईसाई धर्म में शामिल हो गए. उनका कहना है कि उनका जीवन उस समय बदल गया जब 16 साल से बिस्तर पर पड़ी उनकी ब्लड कैंसर से पीड़ित बहन उनके बाइबिल पढ़ने के बाद उठकर चलने लगी. उनका कहना है इस चमत्कार ने उन्हें ईसाई बनाया.
मैं कई ईसाइयों से मिला जिन्होंने हाल के वर्षों में चमत्कार से चंगई हासिल करने के दावे के बाद अपना धर्म परिवर्तन कर लिया.
शिवसेना के एक स्थानीय युवा नेता प्रमोद सोनकर के शब्दों में पहले वो ईसाईयों की प्रार्थना सभाओं को भंग किया करते थे और उन्हें मारा-पीटा करते थे लेकिन 2014 वो ख़ुद ईसाई हो गए.
उनका विश्वास है कि जब वो एक अस्पताल के आईसीयू में दो घंटे के लिए मर गए थे तो ईसाई धर्म ने उसे दोबारा जीवन दान दिया.
वो कहते हैं, “मेरे दोनों गुर्दों में पत्थर थे. मेरे बचने की उम्मीद नहीं थी. मेरी बहन ने कहा ईसाई प्रार्थना सभा में जाओ और अगर चंगाई न मिले तो वापस हिन्दू धर्म चले जाओ.”
प्रमोद कहते हैं उनका ऑपरेशन हुआ तो वो आईसीयू में मुर्दा घोषित कर दिए गए. दो घंटे तक उसी हाल में पड़े रहे लेकिन उनके शिव सेना के साथी और ईसाई दोस्त उनके लिए लगातार प्रार्थना कर रहे थे. आखिर वो खड़े हुए और बिलकुल ठीक हो गए. अब वो एक पास्टर हैं और अपने ईसाई धर्म को ज़ोर-शोर से फैलाते हैं.
दुनिया भर में दैवीय हस्तक्षेप से रोगों के उपचार होने के जुड़े दावे किए जाते रहे हैं लेकिन अब तक इसे लेकर कोई वैज्ञानिक आधार नहीं मिला है.
निर्भय सिंह का कहना है कि ईसाई प्रचारक ऐसे ही ख़तरनाक अंधविश्वास का इस्तेमाल भोले-भाले हिंदुओं को ईसाई बनाने के लिए करते हैं
वे कहते हैं, “सीधे-साधे हिन्दुओं को कभी पैसे और नौकरी का लालच देकर और कभी कभी ना ठीक होने वाली बीमारी की चंगाई का झूठा क़िस्सा गढ़कर ये उन्हें ईसाई धर्म में ले जाते हैं” ईसाई मिशनरी इन आरोपों को गलत बताती है.
मंदिरों के शहर में धर्मांतरण
बनारस मंदिरों का शहर है और हिन्दुओं का एक प्राचीन तीर्थ स्थान भी. यहाँ और पूर्वी उत्तरप्रदेश के दूसरे शहरों में भी ईसाई धर्म के प्रचारक काफ़ी सक्रिय हैं.
पिछले दो सालों में मैंने इस क्षेत्र के कई ग्रामीण इलाक़ों का दौरा किया है जहाँ ईसाई धर्म का प्रभाव बढ़ा है.
अपनी शादी के बाद सालों पहले पास्टर प्रतिभा रांची से मऊ आकर बस गयीं. उनका केवल एक ही उद्देश्य था: अपने धर्म का प्रचार करना.
वो कहती हैं, “कोई नहीं जानता था ईसा मसीह का नाम. लेकिन आज मऊ में इतना प्रभु का अनुग्रह हुआ कि आज बहुत सारे लोग मसीह में पाए जाते हैं.”
धर्मांतरण का हिंसक विरोध
धर्मांतरण को रोकने के लिए दक्षिणपंथी हिन्दू संस्थाएं ज़ोर-शोर से विरोध करती हैं. अक्सर ये विरोध हिंसक भी होते हैं. बनारस में हिन्दू युवा शक्ति ऐसी ही एक संस्था है जिसका उद्देश्य धर्मांतरण को रोकना और सभी देशों के हिन्दुओं की एकता पर काम करना है.
लाख से ऊपर की सदस्यता वाली हिन्दू युवा शक्ति के अध्यक्ष ऊंचे क़द के निर्भय सिंह कहते हैं कि वो धर्मांतरण को रोकने की कोशिश में “पचासों बार” जेल जा चुके हैं.
वो कहते हैं कि अगर लोग अपनी मर्ज़ी से हिन्दू धर्म को छोड़कर जाते हैं उन्हें दुःख ज़रूर होता है, मगर उन्हें इसमें कोई आपत्ति नहीं होती है.
वो कहते हैं कि ईसाई प्रचारक नौकरी और पैसे का प्रलोभन देकर ‘सीधे-साधे’ हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करते हैं. उनके अनुसार वो धर्म परिवर्तन के लिए हिन्दू रोगियों के रोग को ठीक करने का “झूठे चमत्कार” का दावा भी करते हैं.
ये भी पढ़ें –
वो स्वीकार करते हैं कि वो और उनके साथी ईसाई प्रचारकों के ख़िलाफ़ बल का प्रयोग भी करते हैं
अपने कार्यालय की एक दीवार पर लगे ‘अखंड भारत’ के एक मैप के सामने बैठे निर्भय सिंह एक लंबी सांस लेकर कहते हैं, “पहले उनको (ईसाई प्रचारकों को) समझाने की कोशिश करते हैं. अगर वो नहीं समझते हैं तो कोई दो राय नहीं वो जिस तरह से समझते हैं हम उस तरह से समझायेंगे.
पहले हाथ जोड़कर समझायेंगे, ज़रुरत पड़ी तो हाथ खोल कर समझायेंगे. ये तो हमारा काम है. हमारे लिए हमारे धर्म से बड़ा कुछ भी नहीं हो सकता”.
हाल में एक चर्च पर हमले का हवाला देते हुए वो कहते हैं, “वहां ना जाने कितने लोग आते हैं और उनको पैसे का लालच दिया जाता है तो फिर उस चर्च को हम लोगों ने तोड़ने की कोशिश की. वहां की प्रार्थना सभा को भंग करने की कोशिश की और इसमें हमलोगों को कोई खेद नहीं है.”
हालांकि, हिंदू संगठनों के इन आरोपों का ज़्यादातर वक्त कोई सबूत नहीं मिलता है और ईसाई मिशनरियों का कहना है कि हिंदू संगठन स्वेच्छा से धर्मपरिवर्तन को भी जबरन धर्मपरिवर्तन का इल्ज़ाम लगाते हैं.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा स्थापित हिन्दू युवा वाहिनी भी धर्मांतरण के विरोध में राज्य भर में काम कर रही है.
ये भी पढ़ें –
कांग्रेस सरकार में भी ईसाइयों पर बढ़े हमले
उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में सरकारें बीजेपी की है जहाँ ईसाईयों पर हमले बढ़े हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ में सरकार कांग्रेस पार्टी की है. राज्य की ईसाई संस्थाएं सरकार के ख़िलाफ़ झूठे आरोपों में ईसाईयों की गिरफ़्तारी का इलज़ाम लगातार लगाती आयी हैं.
अरुण पन्नालाल, छत्तीसगढ़ क्रिस्चियन फ़ोरम के अध्यक्ष हैं. वो कहते हैं, “पुलिस झूठे इलज़ाम लगाती है और जेल भेज देती है. सब से अधिक यहीं अत्याचार के केसेज़ हैं हमारी चिंता सरकारी मशीनरी की नाकामी है.”
दोनों पार्टियों की सरकारें और राज्य की पुलिस इन आरोपों को बेबुनियाद बताती हैं.
यूनाइटेड क्रिश्चियन फ़ोरम ईसाई समाज और इसके पूजा स्थलों पर हुए हमलों का डेटाबेस रखने के अलावा पीड़ितों के लिए एक हेल्पलाइन चलाता है. इसकी एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ 2021 में देश भर में ईसाईयों और उनके गिरजाघरों पर हिंसात्मक घटनाओं की संख्या 486 थी जो 2020 की तुलना में 74 प्रतिशत अधिक है.
बल या प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन की रोकथाम के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों की बीजेपी सरकारों ने धर्मांतरण विरोधी क़ानून लागू किये हैं और कर्नाटक में इस पर एक अधिनियम लाया गया है.
इन क़ानूनों के अंतर्गत दोषी को साल की सज़ा मिल सकती है लेकिन इसकी आड़ में ईसाईयो को प्रताड़ित करने के सबूत और इलज़ाम भी लगे हैं.
इस क़ानून का प्रचार ‘लव जिहाद’ को रोकने वाला क़ानून कह कर किया गया है. लेकिन ज़मीनी हकीकत ये है कि इसका इस्तेमाल स्वेछा से धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए भी किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश में इस नए क़ानून को पिछले साल सितम्बर में लागू किया था जिसके अंतर्गत अब तक 35 से अधिक ईसाई प्रचारकों को गिरफ़्तार किया जा चुका है.
एलायंस डिफेंडिंग फ्रीडम या एडीएफ इंटरनेशनल एक आस्था आधारित क़ानूनी वकालत करने वाला संगठन है. इसकी भारत शाखा के वकील मुनीश कुमार चंद्र के मुताबिक़, उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण से सम्बंधित नए क़ानून के अंतर्गत उनके पास लगभग 40 कैसेज़ हैं.
वो कहते हैं, “40 से 45 ऐसे कैसेज़ हैं जिनमे एफ़आईआर दर्ज हैं, चार्जशीट या तो आनी या मुक़दमा शुरू हो चुका है. कुछ लोग अब भी जेलों में हैं”.
एडीएफ़ इंडिया का कहना है कि नए क़ानून के तहत पुलिस ईसाई प्रचारकों पर सामूहिक रूप से धर्म परिवर्तन का मुक़दमा दर्ज कर रही है जिसमें ज़मानत मिलना मुश्किल होता है.
ये भी पढ़ें –
नए धर्मांतरण विरोधी क़ानून को चुनौती
इस नए क़ानून को इलाहबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी है. मध्यप्रदेश में भी पिछले साल इसी तरह का क़ानून पारित किया गया था जिसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया है. इन दोनों मामलों में वकील हैं इलाहाबाद के शाश्वत आनंद.
वो कहते हैं, “एक सभ्य देश में ऐसा नहीं हो सकता. ये जो हमारा आर्टिकल 25 है जिसके अंतर्गत धर्म को मानने, इस पर चलने और इसका प्रचार करने का अधिकार शामिल है या आर्टिकल 21 है जिसके तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार शामिल है. आर्टिकल 19 में बोलने की आज़ादी और आर्टिकल 14 जिसमें अधिकारों की समानता और समान सुरक्षा का प्रावधान है, ये सारे ही अधिकार ख़त्म हो गए इस नए क़ानून के तहत.”
धर्मांतरण के क़ानून बनाने का सिलसिला कांग्रेस के दौर में शुरू हुआ था. विशेष रूप से बड़ी जनजातीय आबादी वाले कई राज्यों ने धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ कानून पारित किए थे. साल 1967 में ओडिशा धार्मिक परिवर्तन के ख़िलाफ़ कानून पारित करने वाला पहला राज्य था. मध्यप्रदेश ने 1968 में धर्मांतरण विरोधी क़ानून पारित किया था. अरुणाचल प्रदेश ने 1978 में इसी तरह का क़ानून बनाया. इसके बाद 2002 में, तमिलनाडु ने जबरन धर्म को बदलने के ख़िलाफ़ क़ानून पास किया था.
धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ क़ानून बनाने का नया दौर प्रधानमंत्री मोदी के दौर में शुरू हुआ. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश दोनों ने अपने नए क़ानून में ‘विवाह’ शब्द जोड़ा और कहा कि भले ही धर्म परिवर्तन शादी के लिए किया गया हो, इसे अधिसूचित किया जाना अनिवार्य है.
उत्तराखंड में, कानून ने धर्मांतरित होने वाले व्यक्ति के माता-पिता और भाई-बहनों को अधिकार दिया है कि यदि उन्हें लगता है कि नियमित प्रक्रिया का पालन किए बिना धर्मांतरण हो रहा है तो वे जिला मजिस्ट्रेट से शिकायत कर सकते हैं.
उत्तर प्रदेश में पारित क़ानून में कहा गया है कि जबरन धर्म परिवर्तन एक संगीन और ग़ैर-ज़मानती अपराध है. सज़ा भी पहले की तुलना में बहुत अधिक है.
ये भी पढ़ें –
धर्मांतरण विरोधी क़ानून के अंतर्गत कन्विक्शन रेट
क़ानूनी विशेषज्ञ कहते हैं कि पुराने दौर वाले धर्मांतरण को रोकने वाले क़ानून के तहत शायद ही किसी को दोषी ठहराया गया हो या जेल की सज़ा हुई हो. नए क़ानून के तहत कुछ ही मुक़दमे इस समय ट्रायल स्टेज पर आये हैं. शाश्वत आनंद को पूरा विश्वास है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में उत्तर प्रदेश के नए क़ानून पर रोक लगा दी जायेगी.
धर्म परिवर्तन रोकने के कानून की आड़ में कई बार स्वेच्छा से अपने मजहब को बदलने वाले भी निशाने पर आ रहे हैं. यूँ तो धर्मांतरण के ख़िलाफ़ नए क़ानून के अंतर्गत धर्म परिवर्तन करने वालों को 60 दिन पहले प्रशासन को नोटिस देना पड़ता है.
लेकिन ईसाई धर्म अपनाने वालों को नोटिस भेजने की ज़रुरत नहीं क्योंकि धर्म के प्रचारकों के मुताबिक़ वो धर्म परिवर्तन के बजाय ह्रदय परिवर्तन पर ज़ोर देते हैं. यानी वो दस्तावेज़ पर हिन्दू ही रहते हैं. वो अपना नाम नहीं बदलते. ये अपने समाज से नहीं कटते. लेकिन धीरे-धीरे वो ईसा मसीह के भक्त हो जाते हैं. इस तरह क़ानूनी तौर पर उन्हें धर्म परिवर्तन की घोषणा करने की ज़रुरत ही नहीं पड़ती.
इसके बावजूद उन्हें जबरन धर्म फैलाने के इलज़ाम में गिरफ़्तार भी किया जाता है. इसमें कोई शक नहीं कि नए क़ानून से ईसाई प्रचारकों की मुसीबतें बढ़ी हैं. लेकिन धर्म प्रचार और धर्म परिवर्तन भी तेज़ी से बढ़ रहा है. पास्टर प्रतिभा ने जेल में धर्म प्रचार करना शुरू कर दिया था.
नवंबर में जेल में गुज़ारे कुछ दिनों को याद करते हुए वो कहती हैं, “जेल में जाना परमेश्वर का एक उद्देश्य था क्योंकि प्रभु चाहता था कि हम जेल में भी जाकर प्रचार करें ताकि जेल के लोगों का भी उद्धार हो.”
दो प्रकार के ईसाई हैं जिन पर हमले हो रहे हैं – एक वे जो रोमन कैथोलिक या प्रोटेस्टेंट जैसे स्थापित चर्च का हिस्सा हैं. ये लोग धर्मांतरण में अधिक सक्रिय नहीं हैं. दूसरे वो लोग जो फुल-टाइम उपदेशक हैं और जिनका किसी चर्च से जुड़ा होना ज़रूरी नहीं हैं. वे समाज में जाकर मसीह का संदेश फैलाते हैं. इन्हें इवैंजेलिकल ईसाई भी कहते हैं.
इवैंजेलिकल मसीही कहते हैं कि ईसा मसीह के पैग़ाम को फैलाने से उन्हें दुनिया की कोई शक्ति रोक नहीं सकती. वो धरती पर धर्म प्रचार के लिए ही भेजे गए हैं. मार खाना, जेल जाना या सताया जाना उनके काम में बाधा नहीं डाल सकता.
धर्म परिवर्तन हमेशा से विवादित मुद्दा रहा है और पेचीदा भी. अब ये एक राजनैतिक मुद्दा भी बन चुका है. ये जरूरी होगा ध्यान देना कि आने वाले दिनों में धर्मांतरण कानून का निशाना गैर कानूनी धर्मांतरण होता है या ये कानून स्वेच्छा से हिंदू धर्म छोड़ कोई और धर्म अपनाने की सांवैधानिक आज़ादी को छीन लेता है.
ये भी पढ़ें –