वित्त वर्ष 2022-23 का आम बजट 01 फरवरी को पेश होने वाला है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इसको पेश करेंगी. क्या आपने कभी सोचा है कि देश का पहला बजट किसने पेश किया था? आजादी की घोषणा के ऐन बाद ये वित्त बजट पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने पेश किया था. उस समय वह भारत की अंतरिम सरकार के वित्त मंत्री थे. ये बजट कई मायनों में खास था.
पहला बजट लियाकत अली ने पेश किया
देश का पहला स्ट्रक्चर्ड बजट ब्रितानी हुकूमत ने फरवरी 1860 में पेश किया था, जिसे पेश करने वाले अंग्रेज वित्त विशेषज्ञ जेम्स विल्सन थे. बाद में आजादी के एलान के बाद देश का पहला बजट लियाकत अली खान लेकर आए. मोहम्मद अली जिन्ना के बेहद खास माने जाने वाले लियाकत अली खान को खुद जिन्ना की सिफारिश पर अंतरिम सरकार में वित्त मंत्रालय मिला था. ये देश से बंटवारे से पहले की बात है.
लियाकत अली खान, मोहम्मद अली जिन्ना के बेहद खास माने जाते थे
बजट का होने लगा विरोध
लियाकत ने देश के पहले बजट के बारे में कई बातें कहीं थी, जैसे उनका मानना था कि ये सोशलिस्ट बजट है जो आजाद देश में बराबरी की ओर पहला कदम होगा. हालांकि देश के नामी-गिरामी कारोबारी उनके बजट के विरोध में थे. यहां तक कि लियाकत के बारे में कहा गया कि वे जान-बूझकर कुछ खास हिंदू व्यापारियों के नुकसान के लिए ऐसा बजट लेकर आए.
हिंदू कारोबारियों ने लगाया आरोप
दरअसल बजट में उन्होंने कारोबारियों के 1 लाख के मुनाफे पर 25% टैक्स लगाने की पेशकश की. इससे व्यापारियों का बड़ा तबका नाराज हो गया, जिसका मानना था कि लियाकत अली जानते हुए हिंदू-विरोधी पेशकश कर रहे हैं. इनमें घनश्याम दास बिड़ला और जमनालाल बजाज जैसे बड़े नाम थे.
बता दें तब व्यापार में हिंदू कारोबारियों का ही वर्चस्व था. दो-एक बड़े व्यापारी गैर-हिंदू थे लेकिन बाकी सारे हिंदू थे. ऐसे में वे खुद को ही बजट का टारगेट मानने लगे. लेकिन इससे लियाकत अली के पद या प्रतिष्ठा पर कोई फर्क नहीं पड़ा, बल्कि वे अंतरिम सरकार में उतने ही ताकतवर रहे.
कोशिश हिंदू उद्योगपतियों पर प्रहार की
अगर लियाकत ने उस बजट में प्रस्तावित करों द्वारा तूफान खड़ा किया तो इससे भी ज्यादा आपत्ति उनके इस प्रस्ताव पर हुई कि 150 बड़े पूंजीपतियों द्वारा करवंचन की जांच के लिए एक कमीशन नियुक्त किया जाए. दुर्गादास की किताब “कर्जन टू नेहरू” में इस बजट का जिक्र करते हुए लिखा, लियाकत अली के अनुसार यह एक समाजवादी बजट था लेकिन इसका वास्तविक उद्देश्य स्पष्ट था. इस प्रस्तावों के द्वारा हिंदू उद्योगपतियों पर प्रहार करने की कोशिश की जा रही थी, क्योंकि वो कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली समर्थक थे और दबे रूप से देश विभाजन की योजना को भी आगे बढ़ाया जा रहा था.
लियाकत के इस बजट से कांग्रेस परेशान थी
इस प्रस्तावों को पेश किए जाने के बाद मंत्रिमंडल का कांग्रेस पक्ष परेशान हो गया. नेहरू ने डॉ. मथाई से कहा कि वो अर्थ मत्री के बजट भाषण का निरीक्षण कर लें लेकिन मथाई को भाषण में कोई अनुचित बात नहीं दिखाई दी. जो कुछ अनुचित था वो कर प्रस्तावों में ही था. मंत्रिमंडल में कुछ लोगों की राय थी कि इन प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया जाए. लेकिन ऐसा करने के लिए समय बीत चुका था. वायसराय भी इसे जल्दबाजी में संशोधित करने के पक्ष में नहीं थे, उन्होंने नेहरू से कहा, वह लियाकत अली को जैसा चाहें वैसा करने दें, क्योंकि इसको संशोधित करने के लिए बाद में काफी अवसर मिलेंगे.
कट्टरता के भी लगे आरोप
इसी दौरान लियाकत अली पर ये भी आरोप लगे कि वे वित्त पद पर होने का फायदा लेते हैं. अपनी कट्टरता हिंदू मंत्रियों पर दिखाते हैं. कथित तौर पर वे गैर-मुस्लिम मंत्रियों के लिए खर्चों पर आसानी से राजी नहीं होते थे. बीबीसी में भी लियाकत अली खान को लेकर ऐसी रिपोर्ट का जिक्र है.
लियाकत की बेगम राना का संबंध हिंदू परिवार से था, जो बाद मे ईसाई हो गया था
पत्नी हिंद मूल की थीं
एक ओर तो लियाकत को हिंदू-विरोधी कहा जाता था, वहीं दूसरी ओर उनके समर्थन में भी कई तर्क थे. लियाकत की पत्नी गुल-ए-राना का संबंध हिंदू परिवार से था. हालांकि बाद में वे ईसाई हो गए थे. इसके बाद ही लियाकत और गुल-ए-राना का विवाह हुआ.
जिन्ना के करीबी माने जाते थे
लियाकत अली का जन्म साल 1895 में करनाल में हुआ था. प्रभावशाली परिवार की संतान लियाकत अली मुस्लिम यूनिवर्सिटी से होते हुए ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी चले गए. साल 1923 में देश लौटने के बाद वे तुरंत राजनीति में प्रवेश कर गए. वे जिन्ना के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के सबसे बड़े नेता माने जाते थे. यही वजह है कि वे लीग के नुमाइंदे की तरह अंतरिम सरकार में पहुंच और वित्त मंत्री बने.
बाद में बने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री
इसी दौरान उन्होंने विवादास्पद बजट पेश किया था. ये 2 फरवरी 1946 की घटना है. वैसे आजाद भारत का पहला बजट वित्त मंत्री आरके शनमुखम चेट्टी ने पेश किया था. वहीं लियाकत अली खान देश विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए और वहां के पहले प्रधानमंत्री की तरह 14 अगस्त 1947 से 15 अक्टूबर 1951 तक काम किया. 16 अक्टूबर को रावलपिंडी के कंपनी बाग में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई.
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Tags: Budget, Finance minister Nirmala Sitharaman, India and Pakistan
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