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    भारत के व्यापार का परिमाण के लिहाज से लगभग 95 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से तकरीबन 70 प्रतिशत हिस्सा समुद्री मार्गों के जरिए

    5 hours ago

    समुद्री भारत-विजन 2030 से अमृतकाल 2047 तक

     

    • भारत के व्यापार का परिमाण के लिहाज से लगभग 95 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से तकरीबन 70 प्रतिशत हिस्सा समुद्री मार्गों के जरिए होता है। इससे भारत की अर्थव्यवस्था और प्रतिस्पर्धिता में इस क्षेत्र की केंद्रीय भूमिका का पता चलता है।
    • मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 में 3-3.5 लाख करोड़ रुपए के अनुमानित निवेश से 150 से ज्यादा पहलकदमियों को शामिल किया गया है। इसके अलावा जलपोत निर्माण के लिए हाल ही में 69725 करोड़ रुपए का पैकेज दिया गया है।
    • वित्त वर्ष 2024-25 में प्रमुख बंदरगाहों के जरिए 85.5 करोड़ टन माल की ढुलाई हुई जिससे समुद्री व्यापार और बंदरगाह कार्यकुशलता में ठोस वृद्धि का संकेत मिलता है।

      भारत की आर्थिक शक्ति का प्रवाह समंदरों से होता है। भारत के व्यापार का परिमाण के लिहाज से लगभग 95 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से तकरीबन 70 प्रतिशत हिस्सा समुद्री मार्गों के जरिए होता है। वास्तव में समुद्र भारत के वाणिज्य की प्राणशक्ति है। कच्चे तेल और कोयले से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्सकपड़ा और कृषि उत्पादों तक देश के आयात और निर्यात का बड़ा हिस्सा व्यस्त बंदरगाहों से होकर गुजरता है। ये बंदरगाह भारत को विश्व भर के बाजारों से जोड़ते हैं।1 वैश्वीकरण से आपूर्ति श्रृंखला की अंतरनिर्भरता गहरी होने और भारत के प्रमुख मैनुफैक्चरिंग और ऊर्जा केंद्र के रूप में उभरने के साथ ही बंदरगाहों और जहाजरानी की कार्यकुशलता राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धिता को सीधे तौर पर प्रभावित करती है।

      भारत ने खुद को वैश्विक समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से साहसिक कदम उठाते हुए मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 (एमआईवी 2030) की शुरुआत की।2 वर्ष 2021 में शुरू किए गए इस परिवर्तनकारी रोडमैप में 150 से ज्यादा रणनीतिक पहलकदमियों को शामिल किया गया है।3 इस विजन का उद्देश्य संवहनीयता और कौशल विकास को केंद्र में रखते हुए बंदरगाहों का आधुनिकीकरणजहाजरानी क्षमता का विस्तार और अंतर्देशीय जलमार्गों का सुदृढ़ीकरण है। एमआईवी 2030 सिर्फ माल ढुलाई का खाका होने के बजाय व्यापारनिवेश और रोजगार का उत्प्रेरक भी है। यह भारत के आर्थिक विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धिता के मार्ग को प्रशस्त करता है।

      एमआईवी 2030 की केंद्रीय विषयवस्तु

      मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 उन 10 प्रमुख विषयों की पहचान करता है जो वैश्विक समुद्री शक्ति और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में अग्रणी बनने की ओर भारत की यात्रा को आकार देंगे।

       इंडिया मैरीटाइम वीक 2025: आगे बढ़ती समुद्री महत्वाकांक्षा

      इंडिया मैरीटाइम वीक 2025 (आईएमडब्ल्यू 2025) वैश्विक समुद्री कैलेंडर की एक प्रमुख घटना है। इसका आयोजन 27 से 31 अक्टूबर तक मुंबई के नेस्को प्रदर्शनी केंद्र में किया जा रहा है।5 इसमें जहाजरानीबंदरगाह और परिवहन समुदायों से जुड़े प्रमुख हितधारक हिस्सा लेंगे। आईएमडब्ल्यू 2025 विचार-विमर्शसहयोग और व्यवसाय विकास का एक रणनीतिक मंच होगा। इसमें 100 से ज्यादा देशों के लाख से अधिक प्रतिनिधियोंबंदरगाह संचालकोंनिवेशकोंनवोन्मेषकों और नीति निर्माताओं के भाग लेने की संभावना है।6 इस 5 दिवसीय कार्यक्रम में 500 प्रदर्शकविषय से संबंधित पैविलियनप्रौद्योगिकी प्रदर्शन तथा बंदरगाह आधारित विकासजलपोत निर्माण समूह और डिजिटल कॉरिडोर से संबंधित सत्र होंगे।7

       

      समुद्री परिवर्तन का एक दशक: 2014 से 2025

      भारत का समुद्री क्षेत्र आर्थिक विकास के एक नए मार्ग पर चलते हुए बंदरगाहों, तटीय जहाजरानी और अंतर्देशीय जलमार्गों में रिकॉर्ड प्रदर्शन के साथ तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस क्षेत्र की प्रगति राष्ट्र को मजबूत करने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है।

      भारतीय बंदरगाहों ने स्थापित किए नए मानदंड

      • भारत के बंदरगाह क्षेत्र ने जबर्दस्त परिवर्तनकारी छलांग लगाई है। बंदरगाहों की कुल क्षमता 140 करोड़ मीट्रिक टन से दोगुना होकर 276.2 करोड़ मीट्रिक टन हो गई है। क्षमता में यह वृद्धि आधुनिकीकरण और अवसंरचना विकास में बड़े निवेश को प्रतिबिंबित करती है।8
      • माल ढुलाई का परिमाण भी प्रभावशाली ढंग से बढ़ते हुए 97.2 करोड़ मीट्रिक टन से बढ़ कर 159.4 करोड़ मीट्रिक टन हो गया है।9 इससे समुद्री व्यापार और बंदरगाहों की कार्यकुशलता में जबर्दस्त वृद्धि का संकेत मिलता है। वर्ष 2024-25 में प्रमुख बंदरगाहों के जरिए 85.5 करोड़ टन माल की ढुलाई हुई। वर्ष 2023-24 में इन बंदरगाहों के जरिए सिर्फ 81.9 करोड़ टन माल की ढुलाई हुई थी।10
      • संचालन में काफी सुधार होने के परिणामस्वरूप जलपोतों के फेरों का औसत समय 93 घंटे से घट कर सिर्फ 48 घंटे रह गया है। इससे समग्र उत्पादकता और वैश्विक प्रतिस्पर्धिता में बढ़ोतरी हुई है।11
      • इस क्षेत्र की वित्तीय सुदृढ़ता में भी उछाल आया है। क्षेत्र का शुद्ध वार्षिक सरप्लस 1026 करोड़ रुपए से तेजी से बढ़ते हुए 9352 करोड़ रुपए हो गया जिससे राजस्व अर्जन और व्यय प्रबंधन में सुधार का पता चलता है।12
      • कार्यकुशलता के संकेतक भी मजबूत हुए हैं। संचालन अनुपात 73 प्रतिशत से सुधर कर 43 प्रतिशत हो जाना संवहनीय और लाभकारी बंदरगाह संचालनों की ओर एक बड़ा कदम है।13

      भारतीय जहाजरानी में बेड़े, क्षमता और कार्यबल का विस्तार

      • भारत का जहाजरानी क्षेत्र लगातार विकास के मार्ग पर अग्रसर है। भारतीय ध्वज वाले जलपोतों की संख्या 1205 से बढ़ कर 1549 हो गई जो राष्ट्र की विस्तृत होती समुद्री उपस्थिति का परिचायक है।
      • भारतीय बेड़े की कुल टनधारिता भी 1 करोड़ सकल टन से बढ़ कर 1.35 करोड़ सकल टन हो गई है। इससे ज्यादा मजबूत और सक्षम जहाजरानी क्षमता का पता चलता है।
      • तटीय जहाजरानी में भी काफी गति दिखाई दी है। इसके जरिए माल ढुलाई 8.7 करोड़ मीट्रिक टन से बढ़ कर 16.5 करोड़ मीट्रिक टन हो गई है। इससे परिवहन के कार्यकुशलकिफायती और पर्यावरण के अनुकूल तरीकों की ओर झुकाव को बल मिलता है।14

      भारत के अंतर्देशीय जलमार्गों का विकास

      • भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) ने 2025 में रिकॉर्ड 14.6 करोड़ मीट्रिक टन माल ढुलाई की जानकारी दी। यह अंतर्देशीय जल परिवहन क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक घटना है।15 यह वृद्धि 2014 के 1.8 करोड़ मीट्रिक टन की तुलना में 710 प्रतिशत अधिक है।16
      • मौजूदा समय में चालू जलमार्गों की संख्या से बढ़ कर 29 हो गई है। इससे भारत के अंतर्देशीय परिवहन नेटवर्क में बड़ी वृद्धि का पता चलता है।17
      • आईडब्ल्यूएआई ने हल्दिया मल्टीमोडल टर्मिनल (एमएमटी) को आईआरसी नेचुरल रिसोर्सेस के हाथों सौंप दिया है। यह सरकार और निजी क्षेत्र की साझीदारी से अंतर्देशीय जलमार्ग अवसंरचना के उन्नयन और बहुविध परिवहन को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। विश्व बैंक की सहायता से निर्मित पश्चिम बंगाल के इस टर्मिनल की क्षमता वार्षिक 0.30 करोड़ मीट्रिक टन है।18
      • यात्री जलयान और रो-पैक्स (सवारी और वाहन ढोने वाले जहाज) की लोकप्रियता में भी काफी इजाफा हुआ है। इनके जरिए 2024-25 में 7.5 करोड़ से ज्यादा सवारियों ने यात्रा की। इससे पता चलता है कि सुरक्षित और कार्यकुशल यात्रा के लिए लोग जल आधारित परिवहन को तेजी से अपना रहे हैं।19

      महज एक दशक में भारत में "समुद्री कामगारों की संख्या 1.25 लाख से बढ़कर 3 लाख से अधिक हो गई  हैजो अब वैश्विक समुद्री कामगारों का 12% है।20 अब देश प्रशिक्षित नाविकों के मामले में दुनिया के शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ताओं में से एक बन गया है और देश तथा विदेश में नौवहनजहाज संचालनरसद और संबद्ध समुद्री उद्योगों में व्यापक अवसर पैदा हो रहे हैं।21

      समुद्री परिवहन विकास के लिए वित्तपोषण: समर्थन और नवोन्मेष

      एम्आईवी 2030 में बंदरगाहोंनौवहन और अंतर्देशीय जलमार्गों में कुल 3-3.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश का अनुमान है।22 जहाज निर्माण को बढ़ावा देने और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए हाल ही में घोषित 69,725 करोड़ रुपये के ऐतिहासिक पैकेज के साथभारत वैश्विक समुद्री मानचित्र पर खुद को मजबूती से स्थापित करने के लिए अपनी विशाल तटरेखा का लाभ उठाने का एक रणनीतिक मार्ग तैयार कर रहा है।23 लक्षित आवंटन और रणनीतिक पहल समग्र दृष्टिकोण के साथ सहजता से जोड़े गए हैं, जिससे प्रस्तावित निवेश को कार्यान्वित करने के उपाए किये जा रहे हैं ।

      25,000 करोड़ रूपए की राशि के साथसमुद्री विकास कोष (एमडीएफ) भारत की नौवहन क्षमता और जहाज निर्माण क्षमता के विस्तार के लिए दीर्घकालिक वित्तपोषण प्रदान करेगा। इसके अतिरिक्त, 24,736 करोड़ रूपए24 के परिव्यय वाली संशोधित जहाज निर्माण वित्तीय सहायता योजना (एसबीएफएएस) घरेलू लागत संबंधी नुकसानों से निपटने और जहाज़-तोड़ने को बढ़ावा देने के लिए हैजबकि 19,989 करोड़ रूपए के परिव्यय के साथ जहाज निर्माण विकास योजना (एसबीडीएस) ग्रीनफील्ड क्लस्टरयार्ड के विस्तार और जोखिम कवरेज को प्रोत्साहित करती है।25 इसके अलावाविशाखापत्तनम में 305 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित भारतीय जहाज प्रौद्योगिकी केंद्र (आईएसटीसी) जहाज डिजाइनअनुसंधान एवं विकासइंजीनियरिंग और कौशल विकास के लिए एक राष्ट्रीय केंद्र के रूप में उभरेगा।26

       

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