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    प्रौद्योगिकी के ज़रिए भारत के भाषाई भविष्य के खुलते द्वार

    3 hours ago

    22 भाषाएँ, डिजिटल रूप से पुनर्कल्पित

    "भाषा महज़ संचार का माध्यम नहीं हैयह किसी सभ्यता की आत्मा हैइसकी संस्कृति हैइसकी विरासत है।"

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

     

     

    मुख्य बिंदु

    • भाषिणी और भारतजेन जैसे एआई मंचों के ज़रिए सभी 22 अनुसूचित भाषाओं को समर्थन।

    • एसपीपीईएल (लुप्तप्राय भाषाओं का संरक्षण और संरक्षण योजना) और संचिका से प्राप्त डिजिटल भाषा डेटा, बहुभाषी समाधानों के लिए एआई मॉडल प्रशिक्षण को बेहतर बनाता है।

    • तकनीक-संचालित पहलों ने भारत को बहुभाषी डिजिटल बदलाव के क्षेत्र में एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित किया है।

     

    भारत का भाषाई परिदृश्य दुनिया भर में सबसे विविध हैजहाँ 22 अनुसूचित भाषाएँ और सैकड़ों जनजातीय तथा क्षेत्रीय बोलियाँ इसके विशाल भौगोलिक क्षेत्रों में बोली जाती हैं। जैसे-जैसे डिजिटल बदलाव तेज़ हो रहा हैइस भाषाई विविधता को डिजिटल बुनियादी ढाँचे में समाहित करना बेहद ज़रुरी हो गया है। तकनीक अब केवल संचार का माध्यम नहीं रह गई है, यह आज समावेशन की रीढ़ है।

    भारत सरकार कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई)प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी)मशीन लर्निंग और वाक् पहचान जैसी उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करके बुद्धिमान और मापयोग्य भाषा समाधान विकसित कर रही है। इन पहलों का मकसद निर्बाध संचाररीयल-टाइम अनुवादध्वनि-सक्षम इंटरफेस और स्थानीयकृत सामग्री वितरण को सक्षम करके डिजिटल सेवाओं तक पहुँच को लोकतांत्रिक बनाना है। भाषाई विविधता का सम्मान करने वाले एक मज़बूत तकनीकी व्यवस्था तंत्र का निर्माण करकेभारत एक समावेशी डिजिटल भविष्य की नींव रख रहा है, जहाँ हर नागरिकअपनी मातृभाषा के सहयोग सेडिजिटल अर्थव्यवस्था और शासन का हिस्सा बन सकेगा।

    भाषाई समावेशन को बढ़ावा देने वाले प्रमुख मंच

    एआई-संचालित भाषा प्लेटफ़ॉर्म और विस्तृत डिजिटल रिपॉज़िटरी मौजूदा वक्त में भारतीय भाषाओं के संरक्षणउपयोग और विकास के तरीके को नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं। भाषिणी और भारतजेन जैसे प्लेटफ़ॉर्म शासनस्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में बहुभाषी समर्थन प्रदान करते हैं। आदि-वाणी जैसी पहल आदिवासी भाषाओं को भी डिजिटल दायरे में लाती है। इस एकीकरण का मकसद यह देखना है कि भारत की भाषाई विरासत न केवल संरक्षित रहेबल्कि डिजिटल युग में कार्यात्मक और गतिशील भी बनी रहे।

    पिछले एक दशक मेंकृत्रिम बुद्धिमत्ताप्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण और डिजिटल बुनियादी ढाँचे में हुई प्रगति ने भारत की भाषाई विविधता को दस्तावेजों में समेटनेडिजिटलीकृत और पुनर्जीवित करने की कोशिशों को रफ्तार दी है। इन तकनीकों ने सैकड़ों भाषाओं और बोलियों में बड़े पैमाने पर भाषा डेटा संग्रहस्वचालित अनुवाद और वाक् पहचान को मुमकिन बनाया हैजिनमें से कई भाषाओं और बोलियों को पहले अपर्याप्त स्थान हासिल था। इस तकनीकी गति ने संचार के बाच के अंतराल को पाटनेसमावेशी शासन को बढ़ावा देने और डिजिटल सामग्री को उनकी मूल भाषाओं में सुलभ बनाकर समुदायों को सशक्त बनाने में मदद की है।

    आदि-वाणी: जनजातीय भाषाओं के समावेशन हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता

    2024 में स्थापितआदि-वाणी भारत का पहला कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित प्लेटफ़ॉर्म है, जो जनजातीय भाषाओं के रीयल-टाइम अनुवाद और संरक्षण के लिए समर्पित है। अत्याधुनिक भाषा प्रौद्योगिकियों के ज़रिए संचार में क्रांति लाने के लिए डिज़ाइन किया गयाआदि-वाणी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता की सटीकता को मानवीय भाषाई विशेषज्ञता के साथ जोड़कर सहज बहुभाषी अनुभव प्रदान करता है।

    मूलतःआदि-वाणी उन्नत वाक् पहचान और प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) का उपयोग करके संथालीभीलीमुंडारी और गोंडी जैसी भाषाओं का समर्थन करती है, जिनमें से कई पारंपरिक रूप से मौखिक संचार पर निर्भर रही हैं और जिनमें पर्याप्त डिजिटल प्रतिनिधित्व का अभाव रहा है। जनजातीय भाषाओं और प्रमुख भारतीय भाषाओं के बीच रीयल-टाइम अनुवाद को सक्षम करकेयह प्लेटफ़ॉर्म न केवल इन समृद्ध भाषाई परंपराओं को संरक्षित करता हैबल्कि उन्हें शिक्षाशासन और सांस्कृतिक दस्तावेज़ीकरण के लिए भी सुलभ बनाता है।

     

    लुप्तप्राय भाषाओं का संरक्षण एवं परिरक्षण योजना (एसपीपीईएल)

    शिक्षा मंत्रालय द्वारा 2013 में शुरू की गई और केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल)मैसूर  द्वारा कार्यान्वितलुप्तप्राय भाषाओं का संरक्षण एवं परिरक्षण योजना (एसपीपीईएल) का मकसद लुप्तप्राय भारतीय भाषाओं, खासकर 10,000 से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं का दस्तावेजीकरण और डिजिटल संग्रह करना है।

    यह समृद्ध लिखित रुपऑडियो और वीडियो डेटासेट तैयार करता है, जो संरक्षण और नवाचार दोनों में मदद करते हैं और एआई और प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) प्रणालियों के लिए महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान करते हैं। सीआईआईएल का डिजिटल संग्रहसंचिका जैसे मंचएआई मॉडल प्रशिक्षण, मशीन अनुवाद और सांस्कृतिक रूप से निहित भाषा प्रौद्योगिकियों के विकास पर ज़ोर देते हैं।

    संचिका: भारतीय भाषाओं का डिजिटल संग्रह

    केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान द्वारा प्रबंधितसंचिका अनुसूचित और जनजातीय भाषाओं के लिए शब्दकोशोंप्राइमरोंकहानी-पुस्तकों और मल्टीमीडिया संसाधनों को एकत्रित करता है। यह केंद्रीकृत डिजिटल संग्रह, भाषा मॉडलों के प्रशिक्षणअनुवाद प्रणालियों के विकास और सांस्कृतिक आख्यानों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण डेटा स्रोत है।

    यह मंच पाठ्यश्रव्य और दृश्य सामग्री सहित भाषाई रूप से वर्गीकृत डिजिटल संसाधन प्रदान करता है, जो शैक्षणिक अनुसंधानभाषा शिक्षा और सांस्कृतिक दस्तावेज़ीकरण में सहायता करते हैं। ये समृद्ध और विविध संग्रह उभरते कृत्रिम बुद्धिमत्ता और प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण अनुप्रयोगों के लिए आधारभूत डेटासेट प्रदान करते हैंजिससे कम संसाधन वाली जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के लिए अधिक समावेशी और प्रभावी डिजिटल उपकरण संभव हो पाते हैं।

    भारतजेन: भारतीय भाषाओं के लिए एआई मॉडल

    भारतजेन सभी 22 अनुसूचित भाषाओं के लिए उन्नत टेक्स्ट-टू-टेक्स्ट और टेक्स्ट-टू-स्पीच अनुवाद मॉडल विकसित करता है। यह एसपीपीईएल और संचिका के डेटा का उपयोग बहुभाषी एआई सिस्टम बनाने के लिए करता है, जो शासनशिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में अनुप्रयोगों को सशक्त बनाते हैं, ताकि डिजिटल सामग्री हर प्रमुख भारतीय भाषा में सुलभ हो सके।

    भारतजेन के बहुभाषी एआई सिस्टम शासनशिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में डिजिटल पहुँच और समावेशिता को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैंजिससे भारत के विविध भाषाई परिदृश्य में निर्बाध संचार और सामग्री वितरण संभव हो सके।

    जजेईएम और जीईएमएआईसरकारी ई-मार्केटप्लेस के लिए एआई-संचालित बहुभाषी सहायक

    सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जेमभारत का सार्वजनिक खरीद के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म हैजिसे वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा 9 अगस्त 2016 को लॉन्च किया गया था। जेम सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं के लिए खरीद प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करता हैपारदर्शिता और दक्षता सुनिश्चित करता है।

    उपयोगकर्ताओ की पहुँच और समावेशिता को बढ़ाने के लिएजेम ने जीईएमएआईएक एआई-संचालित बहुभाषी सहायकको एकीकृत किया है। जीईएमएआई कई भारतीय भाषाओं में ध्वनि और पाठ-आधारित समर्थन प्रदान करने के लिए उन्नत प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपीऔर मशीन लर्निंग का लाभ उठाते हुए काम करता है। यह उपयोगकर्ताओं को विभिन्न मंचों पर खोजनेविगेट और लेनदेन को अधिक आसानी से पूरा करने में सक्षम बनाता हैजिससे सरकारी खरीद में भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने में मदद मिलती है।

    भाषिणी: समावेशी भारत के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई)-संचालित बहुभाषी अनुवाद

    राष्ट्रीय भाषा अनुवाद मिशन (एनएलटीएम) के तहत भाषिणी, एक अग्रणी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) प्लेटफ़ॉर्म है, जो 22 अनुसूचित भाषाओं और जनजातीय भाषाओं के लिए रीयल-टाइम अनुवाद को सक्षम बनाता है। यह सरकारी सेवाओं और डिजिटल सामग्री तक पहुँच को आसान बनाता है और मशीनी अनुवादवाक् पहचान और प्राकृतिक भाषा समझ के ज़रिए डिजिटल समावेशन को बढ़ावा देता है।

    प्रमुख उपलब्धियाँ:

    • स्थानीय भाषा में बातचीत के लिए त्रिपुरा सीएम हेल्पलाइनई-विधानकिसान सहायता ऐप के साथ एकीकरण।

    • मिज़ोरम की मिज़ोहमारचकमा भाषाओं के लिए जनजातीय भाषा मॉडल।

    • महाकुंभ 2025 में रीयल-टाइम बहुभाषी घोषणाएँ।

    • एआई-संचालित संसदीय बहस अनुवाद और नागरिक सहभागिता के लिए संसद भाषिणी।

     

    जनजातीय अनुसंधानसूचनाशिक्षासंचार और कार्यक्रम (ट्राई-ईसीईयोजना

    जनजातीय कार्य मंत्रालय के अंतर्गत जनजातीय अनुसंधानसूचनाशिक्षासंचार और कार्यक्रम (ट्राई-ईसीईयोजनाजनजातीय भाषाओं और संस्कृतियों के संरक्षण के लिए नवीन अनुसंधान और प्रलेखन परियोजनाओं को समर्थन प्रदान करती है। इस पहल के तहतमंत्रालय ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई)-आधारित भाषा अनुवाद उपकरणों के विकास को समर्थन दिया है, जो अंग्रेजी/हिंदी लेखन और भाषण को जनजातीय भाषाओं में और इसके विपरीत रूपांतरित करने में सक्षम हैं।

    ये उपकरण मशीन लर्निंगवाक् पहचान और प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) को एकीकृत करते हैं, ताकि लुप्तप्राय जनजातीय भाषाओं के वास्तविक समय अनुवाद और डिजिटल संरक्षण में मदद मिल सके। यह परियोजना जनजातीय अनुसंधान संस्थानों और भाषा विशेषज्ञों की मदद से सामुदायिक भागीदारी पर भी ज़ोर देती हैजिससे भाषाई सटीकता और सांस्कृतिक संवेदनशीलता सुनिश्चित होती है।

    डिजिटल अभिलेखागार और शैक्षणिक प्रयास

    केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल) और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) जैसे संस्थान, प्राचीन पांडुलिपियोंलोक साहित्य और मौखिक परंपराओं का डिजिटलीकरण करके भाषिणी के साथ सहयोग करते हैं। ये डिजिटल अभिलेखागार एआई और प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) प्रणालियों को समृद्ध करते हैंसंरक्षण और अत्याधुनिक अनुवाद समाधानोंदोनों पर फोकस करते हैं और सांस्कृतिक विरासत और आधुनिक तकनीक के बीच संबंध को मज़बूत करते हैं।

    एआई-संचालित बहुभाषी प्लेटफार्मों के ज़रिए शिक्षा को सशक्त बनाना

    कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), सीखने की क्षमता को अधिक समावेशीसुलभ और भाषाई रूप से विविध बनाकर भारत के शिक्षा परिदृश्य को बदल रही है। एआई-आधारित भाषा प्रौद्योगिकियों का एकीकरण, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के दृष्टिकोण को आगे बढ़ा रहा हैजो शिक्षार्थी की घर में बोली जाने वाली भाषामातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा पर ज़ोर देती है, कम से कम कक्षा 5 तक और विशेषकर कक्षा 8 और उसके बाद तक।

    संस्थागत स्तर परएआईसीटीई का अनुवादिनी ऐपएक स्वदेशी एआई-आधारित बहुभाषी अनुवाद उपकरण हैजो इंजीनियरिंगचिकित्साविधिस्नातकस्नातकोत्तर और कौशल-विकास संबंधी पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में त्वरित अनुवाद संभव बनाता है। अनुवादित सामग्री ई-कुंभ पोर्टल पर उपलब्ध हैजिससे देशी भाषाओं में तकनीकी ज्ञान तक पहुँच का विस्तार होता है।

    ई-कुंभ पोर्टल क्या है?

     

    ई-कुंभ पोर्टल एक एआईसीटीई मंच है, जो विभिन्न भारतीय भाषाओं में तकनीकी पुस्तकों और अध्ययन सामग्री तक निशुल्क पहुँच प्रदान करता हैजो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के मातृभाषा में शिक्षा के नज़रिए का समर्थन करता है।

     

     

    इन एआई-संचालित पहलों के पूरक के रूप में राष्ट्रीय अनुवाद मिशन (एनटीएम) जैसे दीर्घकालिक राष्ट्रीय प्रयास हैं, जो ज्ञानवर्धक ग्रंथों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद सरल बनाता है और राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (एनएमएम), जो भारत के प्राचीन विद्वानों के कार्यों का संरक्षण और डिजिटलीकरण करता है। ये सभी मिलकर भारत की भाषाई विरासत और भविष्य के लिए तैयारएआई-सक्षम शिक्षा व्यवस्था के बीच एक निरंतरता का निर्माण करते हैं।

    इस बीचस्वयंम जैसे मंच बहुभाषी सामग्री वितरण के लिए डिजिटल आधार प्रदान करते हैं। 2025 के मध्य तकस्वयंम पर 5 करोड़ से ज़्यादा शिक्षार्थी नामांकित हो चुके हैंजबकि सरकार ने निर्देश दिया है कि अगले तीन सालों में सभी स्कूली और उच्च शिक्षा की पाठ्यपुस्तकें और अध्ययन सामग्री भारतीय भाषाओं में डिजिटल रूप से उपलब्ध कराई जाएँ।

    भाषा-एआई प्लेटफ़ॉर्म जैसे भाषिणी के साथये पहल स्कूलोंएड-टेक फर्मों और उच्च शिक्षा संस्थानों को स्थानीयकृत शिक्षण सामग्रीइंटरैक्टिव टूल और शिक्षक-सहायताएँ मूल भाषाओं में प्रदान करने में सक्षम बनाती हैं, भाषाई विभाजन को खत्म करती हैंशिक्षार्थियों की समझ में सुधार करती हैंऔर प्रत्येक शिक्षार्थी को अपनी मातृभाषा में डिजिटल शिक्षा प्राप्त करने के लिए सशक्त बनाती हैं।

    यह लगातार विकसित होता बहुभाषी डिजिटल शिक्षा ढाँचा, न केवल शैक्षिक समावेशन को मज़बूत कर रहा हैबल्कि भारत की भाषाई विविधता को भी सुदृढ़ करता है, ताकि देश की कई भाषाएँ महज़ सांस्कृतिक अवशेष न होकरशिक्षाज्ञान और नवाचार का जीवंतकार्यात्मक माध्यम बनी रहें।

    परिवर्तन के पीछे की तकनीक

    भारत का बहुभाषी डिजिटल व्यवस्था तंत्र, उन्नत कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और कम्प्यूटेशनल भाषाविज्ञान तकनीकों द्वारा संचालित हैजिन्हें खासकर इसकी भाषाई विविधता के लिए डिज़ाइन किया गया है। अत्याधुनिक नवाचारों का उपयोग करकेये तकनीकें न केवल भाषाई विरासत को संरक्षित करती हैंबल्कि विविध भाषाओं में निर्बाधवास्तविक समय संचार को भी सक्षम बनाती हैंजिससे बड़े पैमाने पर डिजिटल समावेशन को बढ़ावा मिलता है।

    इस व्यवस्था के प्रमुख घटकों में शामिल हैं:

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