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    प्रौद्योगिकी के ज़रिए भारत के भाषाई भविष्य के खुलते द्वार

    22 भाषाएँ, डिजिटल रूप से पुनर्कल्पित "भाषा महज़ संचार का माध्यम नहीं है, यह किसी सभ्यता की आत्मा है, इसकी संस्कृति है, इसकी विरासत है।" प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी     मुख्य बिंदु • भाषिणी और भारतजेन जैसे एआई मंचों के ज़रिए सभी 22 अनुसूचित भाषाओं को समर्थन। • एसपीपीईएल (लुप्तप्राय भाषाओं का संरक्षण और संरक्षण योजना) और संचिका से प्राप्त डिजिटल भाषा डेटा, बहुभाषी समाधानों के लिए एआई मॉडल प्रशिक्षण को बेहतर बनाता है। • तकनीक-संचालित पहलों ने भारत को बहुभाषी डिजिटल बदलाव के क्षेत्र में एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित किया है।   भारत का भाषाई परिदृश्य दुनिया भर में सबसे विविध है, जहाँ 22 अनुसूचित भाषाएँ और सैकड़ों जनजातीय तथा क्षेत्रीय बोलियाँ इसके विशाल भौगोलिक क्षेत्रों में बोली जाती हैं। जैसे-जैसे डिजिटल बदलाव तेज़ हो रहा है, इस भाषाई विविधता को डिजिटल बुनियादी ढाँचे में समाहित करना बेहद ज़रुरी हो गया है। तकनीक अब केवल संचार का माध्यम नहीं रह गई है, यह आज समावेशन की रीढ़ है। भारत सरकार कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी), मशीन लर्निंग और वाक् पहचान जैसी उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करके बुद्धिमान और मापयोग्य भाषा समाधान विकसित कर रही है। इन पहलों का मकसद निर्बाध संचार, रीयल-टाइम अनुवाद, ध्वनि-सक्षम इंटरफेस और स्थानीयकृत सामग्री वितरण को सक्षम करके डिजिटल सेवाओं तक पहुँच को लोकतांत्रिक बनाना है। भाषाई विविधता का सम्मान करने वाले एक मज़बूत तकनीकी व्यवस्था तंत्र का निर्माण करके, भारत एक समावेशी डिजिटल भविष्य की नींव रख रहा है, जहाँ हर नागरिक, अपनी मातृभाषा के सहयोग से, डिजिटल अर्थव्यवस्था और शासन का हिस्सा बन सकेगा। भाषाई समावेशन को बढ़ावा देने वाले प्रमुख मंच एआई-संचालित भाषा प्लेटफ़ॉर्म और विस्तृत डिजिटल रिपॉज़िटरी मौजूदा वक्त में भारतीय भाषाओं के संरक्षण, उपयोग और विकास के तरीके को नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं। भाषिणी और भारतजेन जैसे प्लेटफ़ॉर्म शासन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में बहुभाषी समर्थन प्रदान करते हैं। आदि-वाणी जैसी पहल आदिवासी भाषाओं को भी डिजिटल दायरे में लाती है। इस एकीकरण का मकसद यह देखना है कि भारत की भाषाई विरासत न केवल संरक्षित रहे, बल्कि डिजिटल युग में कार्यात्मक और गतिशील भी बनी रहे। पिछले एक दशक में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण और डिजिटल बुनियादी ढाँचे में हुई प्रगति ने भारत की भाषाई विविधता को दस्तावेजों में समेटने, डिजिटलीकृत और पुनर्जीवित करने की कोशिशों को रफ्तार दी है। इन तकनीकों ने सैकड़ों भाषाओं और बोलियों में बड़े पैमाने पर भाषा डेटा संग्रह, स्वचालित अनुवाद और वाक् पहचान को मुमकिन बनाया है, जिनमें से कई भाषाओं और बोलियों को पहले अपर्याप्त स्थान हासिल था। इस तकनीकी गति ने संचार के बाच के अंतराल को पाटने, समावेशी शासन को बढ़ावा देने और डिजिटल सामग्री को उनकी मूल भाषाओं में सुलभ बनाकर समुदायों को सशक्त बनाने में मदद की है। आदि-वाणी: जनजातीय भाषाओं के समावेशन हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता 2024 में स्थापित, आदि-वाणी भारत का पहला कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित प्लेटफ़ॉर्म है, जो जनजातीय भाषाओं के रीयल-टाइम अनुवाद और संरक्षण के लिए समर्पित है। अत्याधुनिक भाषा प्रौद्योगिकियों के ज़रिए संचार में क्रांति लाने के लिए डिज़ाइन किया गया, आदि-वाणी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता की सटीकता को मानवीय भाषाई विशेषज्ञता के साथ जोड़कर सहज बहुभाषी अनुभव प्रदान करता है। मूलतः, आदि-वाणी उन्नत वाक् पहचान और प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) का उपयोग करके संथाली, भीली, मुंडारी और गोंडी जैसी भाषाओं का समर्थन करती है, जिनमें से कई पारंपरिक रूप से मौखिक संचार पर निर्भर रही हैं और जिनमें पर्याप्त डिजिटल प्रतिनिधित्व का अभाव रहा है। जनजातीय भाषाओं और प्रमुख भारतीय भाषाओं के बीच रीयल-टाइम अनुवाद को सक्षम करके, यह प्लेटफ़ॉर्म न केवल इन समृद्ध भाषाई परंपराओं को संरक्षित करता है, बल्कि उन्हें शिक्षा, शासन और सांस्कृतिक दस्तावेज़ीकरण के लिए भी सुलभ बनाता है।   लुप्तप्राय भाषाओं का संरक्षण एवं परिरक्षण योजना (एसपीपीईएल) शिक्षा मंत्रालय द्वारा 2013 में शुरू की गई और केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल), मैसूर  द्वारा कार्यान्वित, लुप्तप्राय भाषाओं का संरक्षण एवं परिरक्षण योजना (एसपीपीईएल) का मकसद लुप्तप्राय भारतीय भाषाओं, खासकर 10,000 से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं का दस्तावेजीकरण और डिजिटल संग्रह करना है। यह समृद्ध लिखित रुप, ऑडियो और वीडियो डेटासेट तैयार करता है, जो संरक्षण और नवाचार दोनों में मदद करते हैं और एआई और प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) प्रणालियों के लिए महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान करते हैं। सीआईआईएल का डिजिटल संग्रह, संचिका जैसे मंच, एआई मॉडल प्रशिक्षण, मशीन अनुवाद और सांस्कृतिक रूप से निहित भाषा प्रौद्योगिकियों के विकास पर ज़ोर देते हैं। संचिका: भारतीय भाषाओं का डिजिटल संग्रह केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान द्वारा प्रबंधित, संचिका अनुसूचित और जनजातीय भाषाओं के लिए शब्दकोशों, प्राइमरों, कहानी-पुस्तकों और मल्टीमीडिया संसाधनों को एकत्रित करता है। यह केंद्रीकृत डिजिटल संग्रह, भाषा मॉडलों के प्रशिक्षण, अनुवाद प्रणालियों के विकास और सांस्कृतिक आख्यानों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण डेटा स्रोत है। यह मंच पाठ्य, श्रव्य और दृश्य सामग्री सहित भाषाई रूप से वर्गीकृत डिजिटल संसाधन प्रदान करता है, जो शैक्षणिक अनुसंधान, भाषा शिक्षा और सांस्कृतिक दस्तावेज़ीकरण में सहायता करते हैं। ये समृद्ध और विविध संग्रह उभरते कृत्रिम बुद्धिमत्ता और प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण अनुप्रयोगों के लिए आधारभूत डेटासेट प्रदान करते हैं, जिससे कम संसाधन वाली जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के लिए अधिक समावेशी और प्रभावी डिजिटल उपकरण संभव हो पाते हैं। भारतजेन: भारतीय भाषाओं के लिए एआई मॉडल भारतजेन सभी 22 अनुसूचित भाषाओं के लिए उन्नत टेक्स्ट-टू-टेक्स्ट और टेक्स्ट-टू-स्पीच अनुवाद मॉडल विकसित करता है। यह एसपीपीईएल और संचिका के डेटा का उपयोग बहुभाषी एआई सिस्टम बनाने के लिए करता है, जो शासन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में अनुप्रयोगों को सशक्त बनाते हैं, ताकि डिजिटल सामग्री हर प्रमुख भारतीय भाषा में सुलभ हो सके। भारतजेन के बहुभाषी एआई सिस्टम शासन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में डिजिटल पहुँच और समावेशिता को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, जिससे भारत के विविध भाषाई परिदृश्य में निर्बाध संचार और सामग्री वितरण संभव हो सके। जजेईएम और जीईएमएआई: सरकारी ई-मार्केटप्लेस के लिए एआई-संचालित बहुभाषी सहायक सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जेम) भारत का सार्वजनिक खरीद के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म है, जिसे वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा 9 अगस्त 2016 को लॉन्च किया गया था। जेम सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं के लिए खरीद प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करता है, पारदर्शिता और दक्षता सुनिश्चित करता है। उपयोगकर्ताओ की पहुँच और समावेशिता को बढ़ाने के लिए, जेम ने जीईएमएआई, एक एआई-संचालित बहुभाषी सहायक, को एकीकृत किया है। जीईएमएआई कई भारतीय भाषाओं में ध्वनि और पाठ-आधारित समर्थन प्रदान करने के लिए उन्नत प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) और मशीन लर्निंग का लाभ उठाते हुए काम करता है। यह उपयोगकर्ताओं को विभिन्न मंचों पर खोज, नेविगेट और लेनदेन को अधिक आसानी से पूरा करने में सक्षम बनाता है, जिससे सरकारी खरीद में भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने में मदद मिलती है। भाषिणी: समावेशी भारत के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई)-संचालित बहुभाषी अनुवाद राष्ट्रीय भाषा अनुवाद मिशन (एनएलटीएम) के तहत भाषिणी, एक अग्रणी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) प्लेटफ़ॉर्म है, जो 22 अनुसूचित भाषाओं और जनजातीय भाषाओं के लिए रीयल-टाइम अनुवाद को सक्षम बनाता है। यह सरकारी सेवाओं और डिजिटल सामग्री तक पहुँच को आसान बनाता है और मशीनी अनुवाद, वाक् पहचान और प्राकृतिक भाषा समझ के ज़रिए डिजिटल समावेशन को बढ़ावा देता है। प्रमुख उपलब्धियाँ: • स्थानीय भाषा में बातचीत के लिए त्रिपुरा सीएम हेल्पलाइन, ई-विधान, किसान सहायता ऐप के साथ एकीकरण। • मिज़ोरम की मिज़ो, हमार, चकमा भाषाओं के लिए जनजातीय भाषा मॉडल। • महाकुंभ 2025 में रीयल-टाइम बहुभाषी घोषणाएँ। • एआई-संचालित संसदीय बहस अनुवाद और नागरिक सहभागिता के लिए संसद भाषिणी।   जनजातीय अनुसंधान, सूचना, शिक्षा, संचार और कार्यक्रम (ट्राई-ईसीई) योजना जनजातीय कार्य मंत्रालय के अंतर्गत जनजातीय अनुसंधान, सूचना, शिक्षा, संचार और कार्यक्रम (ट्राई-ईसीई) योजना, जनजातीय भाषाओं और संस्कृतियों के संरक्षण के लिए नवीन अनुसंधान और प्रलेखन परियोजनाओं को समर्थन प्रदान करती है। इस पहल के तहत, मंत्रालय ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई)-आधारित भाषा अनुवाद उपकरणों के विकास को समर्थन दिया है, जो अंग्रेजी/हिंदी लेखन और भाषण को जनजातीय भाषाओं में और इसके विपरीत रूपांतरित करने में सक्षम हैं। ये उपकरण मशीन लर्निंग, वाक् पहचान और प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) को एकीकृत करते हैं, ताकि लुप्तप्राय जनजातीय भाषाओं के वास्तविक समय अनुवाद और डिजिटल संरक्षण में मदद मिल सके। यह परियोजना जनजातीय अनुसंधान संस्थानों और भाषा विशेषज्ञों की मदद से सामुदायिक भागीदारी पर भी ज़ोर देती है, जिससे भाषाई सटीकता और सांस्कृतिक संवेदनशीलता सुनिश्चित होती है। डिजिटल अभिलेखागार और शैक्षणिक प्रयास केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल) और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) जैसे संस्थान, प्राचीन पांडुलिपियों, लोक साहित्य और मौखिक परंपराओं का डिजिटलीकरण करके भाषिणी के साथ सहयोग करते हैं। ये डिजिटल अभिलेखागार एआई और प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (एनएलपी) प्रणालियों को समृद्ध करते हैं, संरक्षण और अत्याधुनिक अनुवाद समाधानों, दोनों पर फोकस करते हैं और सांस्कृतिक विरासत और आधुनिक तकनीक के बीच संबंध को मज़बूत करते हैं। एआई-संचालित बहुभाषी प्लेटफार्मों के ज़रिए शिक्षा को सशक्त बनाना कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), सीखने की क्षमता को अधिक समावेशी, सुलभ और भाषाई रूप से विविध बनाकर भारत के शिक्षा परिदृश्य को बदल रही है। एआई-आधारित भाषा प्रौद्योगिकियों का एकीकरण, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के दृष्टिकोण को आगे बढ़ा रहा है, जो शिक्षार्थी की घर में बोली जाने वाली भाषा, मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा पर ज़ोर देती है, कम से कम कक्षा 5 तक और विशेषकर कक्षा 8 और उसके बाद तक। संस्थागत स्तर पर, एआईसीटीई का अनुवादिनी ऐप, एक स्वदेशी एआई-आधारित बहुभाषी अनुवाद उपकरण है, जो इंजीनियरिंग, चिकित्सा, विधि, स्नातक, स्नातकोत्तर और कौशल-विकास संबंधी पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में त्वरित अनुवाद संभव बनाता है। अनुवादित सामग्री ई-कुंभ पोर्टल पर उपलब्ध है, जिससे देशी भाषाओं में तकनीकी ज्ञान तक पहुँच का विस्तार होता है। ई-कुंभ पोर्टल क्या है?   ई-कुंभ पोर्टल एक एआईसीटीई मंच है, जो विभिन्न भारतीय भाषाओं में तकनीकी पुस्तकों और अध्ययन सामग्री तक निशुल्क पहुँच प्रदान करता है, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के मातृभाषा में शिक्षा के नज़रिए का समर्थन करता है।     इन एआई-संचालित पहलों के पूरक के रूप में राष्ट्रीय अनुवाद मिशन (एनटीएम) जैसे दीर्घकालिक राष्ट्रीय प्रयास हैं, जो ज्ञानवर्धक ग्रंथों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद सरल बनाता है और राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (एनएमएम), जो भारत के प्राचीन विद्वानों के कार्यों का संरक्षण और डिजिटलीकरण करता है। ये सभी मिलकर भारत की भाषाई विरासत और भविष्य के लिए तैयार, एआई-सक्षम शिक्षा व्यवस्था के बीच एक निरंतरता का निर्माण करते हैं। इस बीच, स्वयंम जैसे मंच बहुभाषी सामग्री वितरण के लिए डिजिटल आधार प्रदान करते हैं। 2025 के मध्य तक, स्वयंम पर 5 करोड़ से ज़्यादा शिक्षार्थी नामांकित हो चुके हैं, जबकि सरकार ने निर्देश दिया है कि अगले तीन सालों में सभी स्कूली और उच्च शिक्षा की पाठ्यपुस्तकें और अध्ययन सामग्री भारतीय भाषाओं में डिजिटल रूप से उपलब्ध कराई जाएँ। भाषा-एआई प्लेटफ़ॉर्म जैसे भाषिणी के साथ, ये पहल स्कूलों, एड-टेक फर्मों और उच्च शिक्षा संस्थानों को स्थानीयकृत शिक्षण सामग्री, इंटरैक्टिव टूल और शिक्षक-सहायताएँ मूल भाषाओं में प्रदान करने में सक्षम बनाती हैं, भाषाई विभाजन को खत्म करती हैं, शिक्षार्थियों की समझ में सुधार करती हैं, और प्रत्येक शिक्षार्थी को अपनी मातृभाषा में डिजिटल शिक्षा प्राप्त करने के लिए सशक्त बनाती हैं। यह लगातार विकसित होता बहुभाषी डिजिटल शिक्षा ढाँचा, न केवल शैक्षिक समावेशन को मज़बूत कर रहा है, बल्कि भारत की भाषाई विविधता को भी सुदृढ़ करता है, ताकि देश की कई भाषाएँ महज़ सांस्कृतिक अवशेष न होकर, शिक्षा, ज्ञान और नवाचार का जीवंत, कार्यात्मक माध्यम बनी रहें। परिवर्तन के पीछे की तकनीक भारत का बहुभाषी डिजिटल व्यवस्था तंत्र, उन्नत कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और कम्प्यूटेशनल भाषाविज्ञान तकनीकों द्वारा संचालित है, जिन्हें खासकर इसकी भाषाई विविधता के लिए डिज़ाइन किया गया है। अत्याधुनिक नवाचारों का उपयोग करके, ये तकनीकें न केवल भाषाई विरासत को संरक्षित करती हैं, बल्कि विविध भाषाओं में निर्बाध, वास्तविक समय संचार को भी सक्षम बनाती हैं, जिससे बड़े पैमाने पर डिजिटल समावेशन को बढ़ावा मिलता है। इस व्यवस्था के प्रमुख घटकों में शामिल हैं:

    नक्सलवाद के विरुद्ध केंद्र सरकार की व्यापक रणनीति

    निर्णायक कार्रवाई के एक दशक: हिंसा में आई कमी से विकास से लेकर पुनर्वास तक का सफर 2014 और 2024 के बीच नक्सल से जुड़ी हिंसक घटनाओं में 53 प्रतिशत की कमी आयी । पिछले दस सालों में नक्सल प्रभावित इलाकों में 576 किले सदृश पुलिस स्टेशन निर्मित किये गए। इस दौरान नक्सल प्रभावित ज़िले 126 से घटकर 18 रह गए। अक्टूबर 2025 तक 1,225 नक्सलियों ने सरेंडर किया और करीब 270 नक्सली मारे गए। नक्सलियों से मुठभेड़ में मरने वाले सुरक्षाकर्मियों की संख्या में 73% की कमी आयी और दूसरी तरफ नक्सली हिंसा में मरने वाले आम नागरिकों की मौतें भी 70% कम हुईं।   देश की नक्सल विरोधी रणनीति में एक बुनियादी बदलाव लाया   देते हुए नक्सलियो के कारगर नियंत्रण और उनके त्वरित खात्मे की प्रभावी शैली को दर्शाती है। केंद्र सरकार ने सुरक्षा, विकास और पुनर्वास की अपनी एक समन्वित शैली के ज़रिए देश की नक्सल विरोधी रणनीति में एक बुनियादी बदलाव लाया है। नक्सली हिंसा को लेकर पहले अपनाये जाने वाले ढुलमुल तौर तरीके को त्याग कर केंद्र सरकार ने अब बातचीत, सुरक्षा और समन्वय की एकीकृत नी ति अपनायी है, जिसका लक्ष्य मार्च 2026 तक देश के सभी नक्सल प्रभावित जिलों को नक्सल मुक्त बनाना है। यह तरीका कानून क्रियान्वन की कार्यदक्षता, क्षमता निर्माण और सामाजिक समन्वय पर बराबर ध्यान। नक्सली हिंसा में गिरावट के एक दशक पिछले एक दशक में, सुरक्षा बलों की मिली-जुली कोशिशों और नक्सली इलाको में विकास कार्यों की वजह से नक्सली हिंसा में काफी कमी आई है। तुलनात्मक रूप से देखें तो वर्ष 2004-2014 और 2014-2024 के बीच, नक्सली हिंसा की घटनायें 16,463 से घटकर 7,744 हो गई। जबकि इस दौरान मुठभेड़ में मरने वाले सुरक्षाकर्मियों की संख्या 1,851 से घटकर 509 रह गईं, और आम नागरिकों की मौतें 4,766 से घटकर 1,495 हो गई। यह स्थिति नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति और शासन व्यवस्था बहाल होने का एक शानदार संकेत है। अकेले वर्ष 2025 में सुरक्षा बलों ने 270 नक्सल उग्रवादियों को मुठभेड़ में मार गिराया, 680 नक्सलियों को गिरफ्तार किया और करीब 1225 नक्सलियों को आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य किया। सुरक्षा बलों की तरफ से ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट जैसे अभियान और बीजापुर , छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में नक्सलियों द्वारा बड़े पैमाने पर किये गए आत्मसमर्पण से नक्सल उग्रवादियों को जीवन की मुख्यधारा में शामिल होने की महती प्रेरणा मिली है।   सशक्त सुरक्षा ग्रिड और तकनीकी उन्नययन नक्सल हिंसा की रोकथाम को लेकर इसके नियंत्रण की बुनियादी संरचना का निर्माण सरकार की तरफ से एक बेहद जरुरी कदम था। पिछले दस सालों में सरकार द्वारा नक्सली इलाकों में हर जरूरत से सुसज्जित 576 पुलिस स्टेशन बनाए गए। पिछले छह सालों में 336 नए सिक्योरिटी कैंप बनाए गए हैं। वर्ष 2014 में नक्सल प्रभावित ज़िलों की संख्या जो 126 हुआ करती थी वह 2024 में घटकर 18 रह गई है, और अब सिर्फ़ 6 ज़िले ही सबसे ज़्यादा नक्सल प्रभावित कैटेगरी में हैं। इस दौरान 68 नाइट-लैंडिंग हेलीपैड बनाए गए जिससे सुरक्षा बलों को अपने ऑपरेशन के दौरान कभी भी आने-जाने में आसानी हुई है और उनका रिस्पॉन्स टाइम भी बेहतर हुआ है। सुरक्षा एजेंसियां अब नक्सली गतिविधियों की सटीक मॉनिटरिंग और उनके विश्लेषण के लिए अधुनातन तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं। सुरक्षा बलों द्वारा नक्सलियों की लोकेशन ट्रैकिंग, मोबाइल डेटा एनालिसिस, साइंटिफिक कॉल लॉग जांच और सोशल मीडिया एनालिसिस जैसे टूल्स का इस्तेमाल कर उनकी सभी हरकतों पर करीब से नज़र रखा जाता है। सुरक्षा बलों को अलग-अलग फोरेंसिक और टेक्निकल संस्थानों से मिले सपोर्ट से इंटेलिजेंस इकट्ठा करने और अपनी ऑपरेशनल दक्षता को और मज़बूत बनाने में मदद मिली है। इसके अलावा सुरक्षा बलों द्वारा मॉनिटरिंग और रणनीतिक प्लानिंग को बेहतर बनाने के लिए ड्रोन सर्विलांस, सैटेलाइट इमेजिंग और एआई -बेस्ड डेटा एनालिटिक्स का भी असरदार तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है।   नक्सलियों के फाइनेंस नेटवर्किंग के तोड़ की रणनीति नक्सलवाद को सपोर्ट करने वाले फाइनेंशियल नेटवर्क को अब बड़े सुव्यवस्थित तरीके से खत्म कर दिया गया है। नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी यानि एन आई ए के एक विशेष विंग ने नक्सलियों की ₹40 करोड़ से ज़्यादा की संपत्ति ज़ब्त की है, जबकि प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के ऑपरेशंस से इनकी करीब ₹12 करोड़ की ज़ब्ती हुई है। राज्यों ने भी नक्सलियों की ₹40 करोड़ की प्रॉपर्टी ज़ब्त की है। इसके अलावा, शहरी नक्सलियों को काफी नैतिक और मानसिक झटके लगे हैं, जिससे इनके इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर यानी सू चना युद्ध के लिए उनकी क्षमता में कमी आई है। क्षमता निर्माण और राजकीय सहयोग राज्यों के सुरक्षा बलों को मज़बूत बनाना सरकार की वामपंथी उग्रवाद के खात्मे की नीति का एक अहम हिस्सा रहा है। सिक्योरिटी रिलेटेड एक्सपेंडिचर यानी सुरक्षा सम्बंधित व्यय योजना के तहत, पिछले 11 सालों में वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों को ₹3,331 करोड़ रुपये जारी किए गए, जो पिछले दशक की तुलना में 155 % ज़्यादा है। इसी तरह स्पेशल इंफ्रास्ट्रक्चर स्कीम (SIS) ने राज्य की स्पेशल फोर्स, स्पेशल इंटेलिजेंस ब्रांच और मज़बूत पुलिस स्टेशनों के निर्माण के लिए ₹991 करोड़ रुपये मंज़ूर किए। 2017-18 के बाद से इस क्रम में ₹1,741 करोड़ की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है जिसमे अब तक ₹445 करोड़ जारी किए गए हैं। विशेष केंद्रीय सहायता (एससीए ) के तहत, ₹3,769 करोड़ की राशि वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में तमाम विकास परियोजनाओं के लिए आबंटित थी. इस राशि में पूरक के रूप में शिविर अवसंरचना के लिए केंद्रीय एजेंसियों को सहायता के तहत ₹122.28 करोड़ और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए ₹12.56 करोड़ प्रदान की गयी। बुनियादी सुविधाओं का विकास   नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के विकास ने वहां सामाजिक और आर्थिक समावेश को गति दी है। सड़क संपर्क: 2014 और 2025 के बीच कुल 17,589 किलोमीटर के निर्माण के लिए ₹20,815 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए जिसमें नक्सली इलाकों में 12,000 किलोमीटर से अधिक सड़कों का निर्माण पूरा हुआ। मोबाइल कनेक्टिविटी: वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) प्रभावित क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी विस्तार को दो चरणों में लागू किया गया है। पहले चरण के तहत, ₹4,080 करोड़ की लागत से 2,343 2जी टावर बनाए गए। दूसरे चरण में, सितंबर-अक्टूबर 2022 में ₹2,210 करोड़ के निवेश के साथ 2,542 4जी टावर स्वीकृत किए गए, जिनमें से 1,139 चालू हो गए हैं। इसके अतिरिक्त, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए 8,527 4जी टावरों को मंजूरी दी गई है। आकांक्षी जिला योजना के तहत स्वीकृत 4,281 टावरों में से 2,556 कार्यरत हैं, जबकि 4जी संतृप्ति योजना के तहत, 4,246 टावरों में से 2,602 चालू हैं। वित्तीय समावेशन और पहुंच: नक्सल प्रभावित इलाकों में 1007 बैंक शाखाएं, 937 एटीएम और 37,850 बैंकिंग संवाददाताओं की स्थापना की गई है। अब नक्सल प्रभावित 90 जिलों में 5,899 डाकघर काम करते हैं, जिससे प्रत्येक 5 किमी पर नागरिकों को डाक और वित्तीय सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित हुई है। शिक्षा और कौशल विकास: कौशल विकास योजना के तहत, 48 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) और 48 जिलों में 61 कौशल विकास केंद्र (एसडीसी) स्थापित करने के लिए ₹495 करोड़ स्वीकृत किए गए, जिनमें से 46 आईटीआई और 49 एसडीसी संचालित हैं। ये संस्थान संघर्ष से विकास की ओर बढ़ रहे युवाओं को आजीविका के नए अवसर प्रदान कर रहे हैं। सुरक्षा और प्रवर्तन:

    जल जीवन मिशन: ₹2.08 लाख करोड़ के केन्‍द्रीय परिव्यय के साथ, 15.72 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों को नल का पानी उपलब्ध कराया जाएगा

      15.72 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों को अब नल का सुरक्षित पानी उपलब्ध है। मिशन (2019) की शुरुआत के समय, केवल 3.23 करोड़ घरों में ही नल का पानी उपलब्ध था। तब से, 12.48 करोड़ अतिरिक्त घरों को इससे जोड़ा गया है, जो भारत के सबसे तेज़ बुनियादी ढाँचे के विस्तार में से एक है।   मिशन तैयार करने के दौरान 3 करोड़ व्यक्ति-वर्ष रोजगार सृजित करने की क्षमता है, तथा लगभग 25 लाख महिलाओं को फील्ड टेस्टिंग किट का उपयोग करने का प्रशिक्षण दिया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि देश में सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल की व्यवस्था होने से डायरिया से होने वाली 4 लाख मौतों को टाला जा सकेगा। यह भी अनुमान है कि देश में सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल की सार्वभौमिक पहुँच से लगभग 14 मिलियन डीएएलवाई (दिव्‍यांगता-समायोजित जीवन वर्ष) को टाला जा सकेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह भी कहा है कि प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नल कनेक्शन उपलब्ध कराने से जल संग्रहण में लगने वाले समय में महत्वपूर्ण बचत होगी (प्रतिदिन 5.5 करोड़ घंटे), विशेषकर महिलाओं के मामले में (इस बोझ का तीन-चौथाई हिस्सा)। भारत भर में 2,843 जल परीक्षण प्रयोगशालाओं ने 2025-26 में 38.78 लाख नमूनों का परीक्षण किया, जिससे जल गुणवत्ता की कड़ी निगरानी सुनिश्चित हुई। भारत ने जल जीवन मिशन (हर घर जल) के तहत एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है, जिसके तहत अब 81 प्रतिशत से ज़्यादा ग्रामीण परिवारों को स्वच्छ नल का पानी उपलब्ध हो रहा है। 22 अक्टूबर 2025 तक, 15.72 करोड़ से ज़्यादा ग्रामीण घरों को घरेलू नलों के ज़रिए सुरक्षित पेयजल मिल रहा है, जो ग्रामीण भारत में सार्वभौमिक जल सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस मिशन के तहत, सरकार ने राज्यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों को ₹2,08,652 करोड़ के केन्‍द्रीय परिव्यय के साथ सहायता स्वीकृत की, जिसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा चुका है। इस मिशन की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने 15 अगस्त 2019 को प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नल का जल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की थी। उस समय, केवल 3.23 करोड़ परिवारों (16.71 प्रतिशत) को ही नल का जल उपलब्ध था। तब से, 12.48 करोड़ अतिरिक्त परिवारों को इससे जोड़ा जा चुका है, जो ग्रामीण भारत में बुनियादी ढाँचे के सबसे तेज़ विस्तार में से एक है। जल जीवन मिशन ने माताओं और बहनों को अपने घरों के लिए पानी लाने की सदियों पुरानी मशक्कत से मुक्ति दिलाने का भी प्रयास किया है। इसका उद्देश्य उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार लाना, जीवन को आसान बनाना और ग्रामीण परिवारों का जीवन आसान बनाना तथा गौरव और सम्मान बढ़ाना है। मिशन स्थिरता और सामुदायिक भागीदारी पर समान रूप से ज़ोर देता है। इसमें गंदे पानी का प्रबंधन, जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन के माध्यम से जल स्रोतों का पुनर्भरण और पुन: उपयोग जैसे स्‍थायी उपाय शामिल हैं। इसे समुदाय-आधारित दृष्टिकोण से क्रियान्वित किया जाता है, जिसमें जागरूकता और स्वामित्व पैदा करने के लिए सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) गतिविधियाँ प्रमुख घटक हैं। मिशन का उद्देश्य जल के लिए एक जन आंदोलन बनाना है, जिससे यह एक साझा राष्ट्रीय प्राथमिकता बन सके। जल जीवन मिशन के व्यापक उद्देश्यों में शामिल हैं: जल जीवन मिशन के अंतर्गत प्रगति (22 अक्‍तूबर, 2025) जल जीवन मिशन भारत के प्रत्येक ग्रामीण परिवार के लिए सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल सुनिश्चित करने की दिशा में निरंतर प्रगति कर रहा है। जिला-स्तरीय प्रगति: 192 जिलों के सभी घरों, स्कूलों और आंगनवाड़ी केन्‍द्रों तक नल का पानी पहुँच चुका है, जिनमें से 116 जिलों को सत्यापन के बाद ग्राम सभा प्रस्तावों के माध्यम से आधिकारिक रूप से प्रमाणित किया जा चुका है। ब्‍लॉक, पंचायत, और गांव की कवरेज: ब्लॉक: 1,912 ने पूर्ण कवरेज की सूचना दी है, जिनमें से 1,019 प्रमाणित हैं। ग्राम पंचायत: 1,25,185 ने सूचना दी है, और 88,875 ने प्रमाणन प्राप्त कर लिया है। गाँव: 2,66,273 ने सूचना दी है, जिनमें से 1,74,348 हर घर जल पहल के अंतर्गत प्रमाणित हैं। 100 प्रतिशत कवरेज वाले राज्य/केन्‍द्र शासित प्रदेश: ग्यारह राज्यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों, गोवा, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव, हरियाणा, तेलंगाना, पुडुचेरी, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश ने सभी ग्रामीण घरों के लिए पूर्ण नल जल कनेक्टिविटी हासिल कर ली है। संस्थागत कवरेज: देश भर में 9,23,297 स्कूलों और 9,66,876 आंगनवाड़ी केन्‍द्रों में नल जल की आपूर्ति सुनिश्चित की गई है। 'रिपोर्ट' का अर्थ है कि राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के जल आपूर्ति विभाग ने पुष्टि की है कि उस प्रशासनिक इकाई के सभी घरों, स्कूलों और आंगनवाड़ी केन्‍द्रों में नल के माध्यम से पानी की आपूर्ति की जा रही है। 'प्रमाणित' का अर्थ है कि ग्राम सभा ने जल आपूर्ति विभाग के इस दावे की पुष्टि करने के बाद प्रस्ताव पारित किया है कि गाँव के सभी घरों, स्कूलों और आंगनवाड़ी केन्‍द्रों में नल का पानी मिल रहा है। यह प्रस्ताव जल आपूर्ति विभाग द्वारा ग्राम पंचायत को यह प्रमाण पत्र प्रदान करने के बाद पारित किया जाता है कि सभी घरों में नल का पानी उपलब्ध है।( गुणवत्ता आश्वासन और निगरानी जल जीवन मिशन के अंतर्गत, ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित करने के लिए गुणवत्ता आश्वासन और निगरानी हेतु एक मजबूत प्रणाली लागू की गई है। 2025-26 (21 अक्टूबर 2025 तक) के दौरान, कुल 2,843 प्रयोगशालाओं (2,184 संस्थागत और 659 जल उपचार संयंत्र-आधारित) ने देश के 4,49,961 गाँवों में 38.78 लाख जल नमूनों का परीक्षण किया। सामुदायिक स्तर की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए, 5.07 लाख गाँवों में 24.80 लाख महिलाओं को फील्ड टेस्टिंग किट (एफटीके) का उपयोग करके जल गुणवत्ता परीक्षण हेतु प्रशिक्षित किया गया है। यह समुदाय-संचालित दृष्टिकोण जल प्रदूषण का शीघ्र पता लगाना सुनिश्चित करता है और ग्रामीण जल गुणवत्ता निगरानी के स्थानीय स्वामित्व को सुदृढ़ करता है। जल जीवन मिशन (जेजेएम) के प्रमुख घटक जल जीवन मिशन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित घटकों की परिकल्पना की गई है: गाँव में पाइप से जलापूर्ति का बुनियादी ढाँचा - प्रत्येक ग्रामीण घर में नल के पानी का कनेक्शन सुनिश्चित करने के लिए गाँवों के भीतर पाइप से पानी की व्‍यवस्‍था करना। स्‍थायी पेयजल स्रोत- लंबे समय जल आपूर्ति प्रणाली प्रदान करने के लिए विश्वसनीय पेयजल स्रोतों का और/या मौजूदा स्रोतों का संवर्धन। बड़ी मात्रा में पानी का हस्तांतरण और वितरण - थोक जल हस्‍तांतरण प्रणालियों, उपचार संयंत्रों और वितरण नेटवर्क की स्थापना। जल गुणवत्ता के लिए तकनीकी हस्तक्षेप - जहाँ जल गुणवत्ता एक समस्या है, वहाँ दूषित पदार्थों को हटाने के लिए तकनीकों को लागू करना।

    भारत के व्यापार का परिमाण के लिहाज से लगभग 95 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से तकरीबन 70 प्रतिशत हिस्सा समुद्री मार्गों के जरिए

    समुद्री भारत-विजन 2030 से अमृतकाल 2047 तक   भारत के व्यापार का परिमाण के लिहाज से लगभग 95 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से तकरीबन 70 प्रतिशत हिस्सा समुद्री मार्गों के जरिए होता है। इससे भारत की अर्थव्यवस्था और प्रतिस्पर्धिता में इस क्षेत्र की केंद्रीय भूमिका का पता चलता है। मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 में 3-3.5 लाख करोड़ रुपए के अनुमानित निवेश से 150 से ज्यादा पहलकदमियों को शामिल किया गया है। इसके अलावा जलपोत निर्माण के लिए हाल ही में 69725 करोड़ रुपए का पैकेज दिया गया है। वित्त वर्ष 2024-25 में प्रमुख बंदरगाहों के जरिए 85.5 करोड़ टन माल की ढुलाई हुई जिससे समुद्री व्यापार और बंदरगाह कार्यकुशलता में ठोस वृद्धि का संकेत मिलता है। भारत की आर्थिक शक्ति का प्रवाह समंदरों से होता है। भारत के व्यापार का परिमाण के लिहाज से लगभग 95 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से तकरीबन 70 प्रतिशत हिस्सा समुद्री मार्गों के जरिए होता है। वास्तव में समुद्र भारत के वाणिज्य की प्राणशक्ति है। कच्चे तेल और कोयले से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा और कृषि उत्पादों तक देश के आयात और निर्यात का बड़ा हिस्सा व्यस्त बंदरगाहों से होकर गुजरता है। ये बंदरगाह भारत को विश्व भर के बाजारों से जोड़ते हैं।1 वैश्वीकरण से आपूर्ति श्रृंखला की अंतरनिर्भरता गहरी होने और भारत के प्रमुख मैनुफैक्चरिंग और ऊर्जा केंद्र के रूप में उभरने के साथ ही बंदरगाहों और जहाजरानी की कार्यकुशलता राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धिता को सीधे तौर पर प्रभावित करती है। भारत ने खुद को वैश्विक समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से साहसिक कदम उठाते हुए मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 (एमआईवी 2030) की शुरुआत की।2 वर्ष 2021 में शुरू किए गए इस परिवर्तनकारी रोडमैप में 150 से ज्यादा रणनीतिक पहलकदमियों को शामिल किया गया है।3 इस विजन का उद्देश्य संवहनीयता और कौशल विकास को केंद्र में रखते हुए बंदरगाहों का आधुनिकीकरण, जहाजरानी क्षमता का विस्तार और अंतर्देशीय जलमार्गों का सुदृढ़ीकरण है। एमआईवी 2030 सिर्फ माल ढुलाई का खाका होने के बजाय व्यापार, निवेश और रोजगार का उत्प्रेरक भी है। यह भारत के आर्थिक विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्धिता के मार्ग को प्रशस्त करता है। एमआईवी 2030 की केंद्रीय विषयवस्तु मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 उन 10 प्रमुख विषयों की पहचान करता है जो वैश्विक समुद्री शक्ति और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में अग्रणी बनने की ओर भारत की यात्रा को आकार देंगे।  इंडिया मैरीटाइम वीक 2025: आगे बढ़ती समुद्री महत्वाकांक्षा इंडिया मैरीटाइम वीक 2025 (आईएमडब्ल्यू 2025) वैश्विक समुद्री कैलेंडर की एक प्रमुख घटना है। इसका आयोजन 27 से 31 अक्टूबर तक मुंबई के नेस्को प्रदर्शनी केंद्र में किया जा रहा है।5 इसमें जहाजरानी, बंदरगाह और परिवहन समुदायों से जुड़े प्रमुख हितधारक हिस्सा लेंगे। आईएमडब्ल्यू 2025 विचार-विमर्श, सहयोग और व्यवसाय विकास का एक रणनीतिक मंच होगा। इसमें 100 से ज्यादा देशों के 1 लाख से अधिक प्रतिनिधियों, बंदरगाह संचालकों, निवेशकों, नवोन्मेषकों और नीति निर्माताओं के भाग लेने की संभावना है।6 इस 5 दिवसीय कार्यक्रम में 500 प्रदर्शक, विषय से संबंधित पैविलियन, प्रौद्योगिकी प्रदर्शन तथा बंदरगाह आधारित विकास, जलपोत निर्माण समूह और डिजिटल कॉरिडोर से संबंधित सत्र होंगे।7   समुद्री परिवर्तन का एक दशक: 2014 से 2025 भारत का समुद्री क्षेत्र आर्थिक विकास के एक नए मार्ग पर चलते हुए बंदरगाहों, तटीय जहाजरानी और अंतर्देशीय जलमार्गों में रिकॉर्ड प्रदर्शन के साथ तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस क्षेत्र की प्रगति राष्ट्र को मजबूत करने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है। भारतीय बंदरगाहों ने स्थापित किए नए मानदंड भारत के बंदरगाह क्षेत्र ने जबर्दस्त परिवर्तनकारी छलांग लगाई है। बंदरगाहों की कुल क्षमता 140 करोड़ मीट्रिक टन से दोगुना होकर 276.2 करोड़ मीट्रिक टन हो गई है। क्षमता में यह वृद्धि आधुनिकीकरण और अवसंरचना विकास में बड़े निवेश को प्रतिबिंबित करती है।8 माल ढुलाई का परिमाण भी प्रभावशाली ढंग से बढ़ते हुए 97.2 करोड़ मीट्रिक टन से बढ़ कर 159.4 करोड़ मीट्रिक टन हो गया है।9 इससे समुद्री व्यापार और बंदरगाहों की कार्यकुशलता में जबर्दस्त वृद्धि का संकेत मिलता है। वर्ष 2024-25 में प्रमुख बंदरगाहों के जरिए 85.5 करोड़ टन माल की ढुलाई हुई। वर्ष 2023-24 में इन बंदरगाहों के जरिए सिर्फ 81.9 करोड़ टन माल की ढुलाई हुई थी।10 संचालन में काफी सुधार होने के परिणामस्वरूप जलपोतों के फेरों का औसत समय 93 घंटे से घट कर सिर्फ 48 घंटे रह गया है। इससे समग्र उत्पादकता और वैश्विक प्रतिस्पर्धिता में बढ़ोतरी हुई है।11 इस क्षेत्र की वित्तीय सुदृढ़ता में भी उछाल आया है। क्षेत्र का शुद्ध वार्षिक सरप्लस 1026 करोड़ रुपए से तेजी से बढ़ते हुए 9352 करोड़ रुपए हो गया जिससे राजस्व अर्जन और व्यय प्रबंधन में सुधार का पता चलता है।12 कार्यकुशलता के संकेतक भी मजबूत हुए हैं। संचालन अनुपात 73 प्रतिशत से सुधर कर 43 प्रतिशत हो जाना संवहनीय और लाभकारी बंदरगाह संचालनों की ओर एक बड़ा कदम है।13 भारतीय जहाजरानी में बेड़े, क्षमता और कार्यबल का विस्तार भारत का जहाजरानी क्षेत्र लगातार विकास के मार्ग पर अग्रसर है। भारतीय ध्वज वाले जलपोतों की संख्या 1205 से बढ़ कर 1549 हो गई जो राष्ट्र की विस्तृत होती समुद्री उपस्थिति का परिचायक है। भारतीय बेड़े की कुल टनधारिता भी 1 करोड़ सकल टन से बढ़ कर 1.35 करोड़ सकल टन हो गई है। इससे ज्यादा मजबूत और सक्षम जहाजरानी क्षमता का पता चलता है। तटीय जहाजरानी में भी काफी गति दिखाई दी है। इसके जरिए माल ढुलाई 8.7 करोड़ मीट्रिक टन से बढ़ कर 16.5 करोड़ मीट्रिक टन हो गई है। इससे परिवहन के कार्यकुशल, किफायती और पर्यावरण के अनुकूल तरीकों की ओर झुकाव को बल मिलता है।14 भारत के अंतर्देशीय जलमार्गों का विकास भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) ने 2025 में रिकॉर्ड 14.6 करोड़ मीट्रिक टन माल ढुलाई की जानकारी दी। यह अंतर्देशीय जल परिवहन क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक घटना है।15 यह वृद्धि 2014 के 1.8 करोड़ मीट्रिक टन की तुलना में 710 प्रतिशत अधिक है।16 मौजूदा समय में चालू जलमार्गों की संख्या 3 से बढ़ कर 29 हो गई है। इससे भारत के अंतर्देशीय परिवहन नेटवर्क में बड़ी वृद्धि का पता चलता है।17 आईडब्ल्यूएआई ने हल्दिया मल्टीमोडल टर्मिनल (एमएमटी) को आईआरसी नेचुरल रिसोर्सेस के हाथों सौंप दिया है। यह सरकार और निजी क्षेत्र की साझीदारी से अंतर्देशीय जलमार्ग अवसंरचना के उन्नयन और बहुविध परिवहन को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। विश्व बैंक की सहायता से निर्मित पश्चिम बंगाल के इस टर्मिनल की क्षमता वार्षिक 0.30 करोड़ मीट्रिक टन है।18 यात्री जलयान और रो-पैक्स (सवारी और वाहन ढोने वाले जहाज) की लोकप्रियता में भी काफी इजाफा हुआ है। इनके जरिए 2024-25 में 7.5 करोड़ से ज्यादा सवारियों ने यात्रा की। इससे पता चलता है कि सुरक्षित और कार्यकुशल यात्रा के लिए लोग जल आधारित परिवहन को तेजी से अपना रहे हैं।19 महज एक दशक में भारत में "समुद्री कामगारों की संख्या 1.25 लाख से बढ़कर 3 लाख से अधिक हो गई  है, जो अब वैश्विक समुद्री कामगारों का 12% है।20 अब देश प्रशिक्षित नाविकों के मामले में दुनिया के शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ताओं में से एक बन गया है और देश तथा विदेश में नौवहन, जहाज संचालन, रसद और संबद्ध समुद्री उद्योगों में व्यापक अवसर पैदा हो रहे हैं।21 समुद्री परिवहन विकास के लिए वित्तपोषण: समर्थन और नवोन्मेष एम्आईवी 2030 में बंदरगाहों, नौवहन और अंतर्देशीय जलमार्गों में कुल 3-3.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश का अनुमान है।22 जहाज निर्माण को बढ़ावा देने और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने के लिए हाल ही में घोषित 69,725 करोड़ रुपये के ऐतिहासिक पैकेज के साथ, भारत वैश्विक समुद्री मानचित्र पर खुद को मजबूती से स्थापित करने के लिए अपनी विशाल तटरेखा का लाभ उठाने का एक रणनीतिक मार्ग तैयार कर रहा है।23 लक्षित आवंटन और रणनीतिक पहल समग्र दृष्टिकोण के साथ सहजता से जोड़े गए हैं, जिससे प्रस्तावित निवेश को कार्यान्वित करने के उपाए किये जा रहे हैं । 25,000 करोड़ रूपए की राशि के साथ, समुद्री विकास कोष (एमडीएफ) भारत की नौवहन क्षमता और जहाज निर्माण क्षमता के विस्तार के लिए दीर्घकालिक वित्तपोषण प्रदान करेगा। इसके अतिरिक्त, 24,736 करोड़ रूपए24 के परिव्यय वाली संशोधित जहाज निर्माण वित्तीय सहायता योजना (एसबीएफएएस) घरेलू लागत संबंधी नुकसानों से निपटने और जहाज़-तोड़ने को बढ़ावा देने के लिए है, जबकि 19,989 करोड़ रूपए के परिव्यय के साथ जहाज निर्माण विकास योजना (एसबीडीएस) ग्रीनफील्ड क्लस्टर, यार्ड के विस्तार और जोखिम कवरेज को प्रोत्साहित करती है।25 इसके अलावा, विशाखापत्तनम में 305 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित भारतीय जहाज प्रौद्योगिकी केंद्र (आईएसटीसी) जहाज डिजाइन, अनुसंधान एवं विकास, इंजीनियरिंग और कौशल विकास के लिए एक राष्ट्रीय केंद्र के रूप में उभरेगा।26  

    बिहार चुनाव और उपचुनाव 2025: मौन अवधि में चुनावी सामग्री और एग्जिट पोल के प्रदर्शन पर रोक

    निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने 6 अक्टूबर, 2025 को बिहार विधान सभा के आम चुनाव और उपचुनावों के कार्यक्रम की घोषणा की। बिहार चुनाव में मतदान क्रमशः 6 नवंबर, 2025 और 11 नवंबर, 2025 को दो चरणों में होगा। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 (1) (बी), किसी भी मतदान क्षेत्र में किसी भी चुनाव के लिए मतदान के समापन के वास्ते निर्धारित समय के साथ समाप्त होने वाले अड़तालीस घंटे (मौन अवधि) की अवधि के दौरान, अन्य बातों के साथ-साथ, टेलीविजन या इसी तरह के उपकरण के माध्यम से किसी भी चुनावी सामग्री को प्रदर्शित करने पर रोक लगाती है। आयोग पुनः दोहराता है कि टीवी/रेडियो चैनलों और केबल नेटवर्कों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उपरोक्त धारा में निर्दिष्ट 48 घंटों की अवधि के दौरान उनके द्वारा प्रसारित/प्रदर्शित कार्यक्रमों की विषय-वस्तु में पैनलिस्टों/प्रतिभागियों के विचार/अपील सहित ऐसी कोई सामग्री शामिल न हो जिसे किसी विशेष पार्टी या उम्मीदवार (या उम्मीदवारों) की संभावनाओं को बढ़ावा देने/पूर्वाग्रहित करने या चुनाव के परिणाम को प्रभावित करने वाला माना जाए। इसमें किसी भी जनमत सर्वेक्षण का प्रदर्शन भी शामिल है। आयोग ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126ए के अंतर्गत अधिसूचित किया है कि 6 नवंबर, 2025 (गुरुवार) को सुबह 7:00 बजे से 11 नवंबर, 2025 (मंगलवार) को शाम 6:30 बजे तक प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से एग्जिट पोल और उनके परिणामों का प्रसार प्रतिबंधित रहेगा। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 का उल्लंघन करने पर दो वर्ष तक के कारावास या जुर्माने या दोनों से दंडित किया जा सकता है। आयोग सभी मीडिया समूहों को सलाह देता है कि वे इसकी भावना के अनुरूप इस संबंध में निर्देशों का पालन करें।

    प्रधानमंत्री ने छठ पूजा के पवित्र खरना अनुष्ठान पर शुभकामनाएं दीं

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज महापर्व छठ के दौरान मनाए जाने वाले एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान 'खरना' के पावन अवसर पर सभी श्रद्धालुओं को हार्दिक शुभकामनाएं दीं। उन्होंने इस पावन पर्व से जुड़े कठिन व्रत और अनुष्ठानों का पालन करने वाले सभी श्रद्धालुओं के प्रति सम्‍मान व्‍यक्‍त किया। मोदी ने इस अवसर पर छठी मइया को समर्पित एक भक्तिमय गीत भी साझा किया। एक्स पर एक पोस्ट में मोदी ने लिखा: “आप सभी को महापर्व छठ की खरना पूजा की असीम शुभकामनाएं। सभी व्रतियों को सादर नमन! श्रद्धा और संयम के प्रतीक इस पावन अवसर पर गुड़ से तैयार खीर के साथ ही सात्विक प्रसाद ग्रहण करने की परंपरा रही है। मेरी कामना है कि इस अनुष्ठान पर छठी मइया हर किसी को अपना आशीर्वाद दें।

    प्रधानमंत्री ने थाईलैंड की राजमाता महारानी सिरीकित के निधन पर शोक व्यक्त किया

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज थाईलैंड की राजमाता, महारानी सिरीकित के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया। अपने शोक संदेश में, प्रधानमंत्री ने जनसेवा के प्रति महारानी के आजीवन समर्पण को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि उनकी विरासत दुनिया भर की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में, मोदी ने कहा: “थाईलैंड की राजमाता, महामहिम महारानी सिरीकित के निधन से मुझे गहरा दुख हुआ है। जनसेवा के प्रति उनका आजीवन समर्पण पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। इस गहन शोक की घड़ी में मैं महामहिम नरेश, शाही परिवार के सदस्यों और थाईलैंड के लोगों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदनाएं व्यक्त करता हूं।”

    छठ पूजा पर राष्ट्रपति की शुभकामनाएं

    भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने छठ पूजा के अवसर पर देशवासियों को शुभकामनाएं भेजी हैं। अपने संदेश में राष्ट्रपति ने कहा, “छठ पूजा के पावन अवसर पर मैं सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देती हूं। छठ पूजा के दौरान, भक्त सूर्य की पूजा करते हैं और उन्हें अर्घ्य देते हैं। इस पर्व पर हम प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। हम नदियों और तालाबों की पूजा करते हैं और अपने परिवार की खुशहाली के लिए प्रार्थना करते हैं। यह पर्व स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है। छठ पूजा समाज में एकता, सहयोग और सामूहिक भागीदारी का संदेश भी देती है। इस पावन अवसर पर मैं सभी नागरिकों की खुशहाली और समृद्धि की प्रार्थना करता हूं।

    निजी क्षेत्र के अच्छे स्वास्थ्य संस्थान स्वस्थ और विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने में अमूल्य योगदान दे सकते हैं: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु

    भारत के राष्ट्रपति ने गाजियाबाद के इंदिरापुरम में यशोदा मेडिसिटी का उद्घाटन किया चिकित्सा उत्तरदायित्व के साथ-साथ सामाजिक उत्तरदायित्व निभाना स्वास्थ्य संस्थानों के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती. द्रौपदी मुर्मु ने आज इंदिरापुरम, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में यशोदा मेडिसिटी का उद्घाटन किया इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा राष्ट्र निर्माण का एक अभिन्न अंग है। लोगों को बीमारियों से बचाना और उनके स्वास्थ्य में सुधार लाना सरकार की प्राथमिकता है। इसी उद्देश्य से, देश भर में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संबंधी बुनियादी ढाँचे, संस्थानों और सेवाओं का निरंतर विस्तार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे सभी प्रयास निश्चित रूप से एक स्वस्थ और विकसित भारत के निर्माण में योगदान देंगे। सरकार के साथ-साथ अन्य सभी हितधारक भी इन प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे। इसलिए, सभी हितधारकों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करें और यह सुनिश्चित करें कि देश के सभी क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ उपलब्ध हों और कोई भी नागरिक प्रभावी स्वास्थ्य सेवा से वंचित न रहे। निजी क्षेत्र के अच्छे स्वास्थ्य संस्थान इस लक्ष्य की प्राप्ति में अमूल्य योगदान दे सकते हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यशोदा मेडिसिटी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में परिवर्तनकारी कार्य करेगी। राष्ट्रपति को यह जानकर खुशी हुई कि कोविड-19 की वैश्विक महामारी के दौरान, यशोदा अस्पताल ने बड़ी संख्या में लोगों का इलाज किया और राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम जैसी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को पूरी लगन से अपनाया। उन्होंने संस्थान से सिकल सेल एनीमिया से संबंधित राष्ट्रीय अभियानों में अपना योगदान देने का आग्रह किया। उन्होंने अस्पताल के हितधारकों को कैंसर के उपचार के लिए अनुसंधान करने और अन्य संस्थानों के साथ सहयोग करने की भी सलाह दी। राष्ट्रपति ने कहा कि चिकित्सा उत्तरदायित्व के साथ-साथ सामाजिक उत्तरदायित्व निभाना स्वास्थ्य सेवा संस्थानों की प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्हें विश्वास है कि यशोदा मेडिसिटी 'सभी के लिए किफायती विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवा के अपने लक्ष्य को साकार करेगी। उन्होंने कहा कि निजी और सरकारी, दोनों क्षेत्रों के उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवा संस्थानों के सहयोग से, भारत एक वैश्विक स्वास्थ्य सेवा केंद्र के रूप में और अधिक पहचान हासिल करेगा।  

    महाराजा गंगासिंह की प्रतिमा पर किए पुष्प अर्पित, शिवपुर हैड पर किया हवन, पूजा-अर्चना

    हर्षोल्लास से मनाया गंगानगर जिले का स्थापना दिवस -सांस्कृतिक कार्यक्रमों और लोक कलाकारों की प्रस्तुतियों ने जमाया रंग श्रीगंगानगर। गंगानगर जिले का स्थापना दिवस-2025 हर्षाल्लास से मनाया गया। स्थापना दिवस के उपलक्ष में आयोजित तीन दिवसीय गंग महोत्सव के दूसरे दिन रविवार को गंगासिंह चौक पर जिले के संस्थापक महाराजा गंगासिंह को श्रद्धापूर्वक नमन कर पुष्पाजंलि दी। इसके बाद शिवपुर हैड पर हवन-यज्ञ कर पूजा-अर्चना की गई। सर्वधर्म प्रार्थना सभा में बालिकाओं ने जिले की खुशहाली के लिए प्रार्थना की जबकि अतिथियों द्वारा महाराजा गंगासिंह की स्मृति में बनाए म्यूजियम का अवलोकन किया गया। इस बीच पर्यटन विभाग की ओर से लोक कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों, नृत्य और लोकगीतां की प्रस्तुतियों से समां बांध दिया।    इससे पूर्व गंगासिंह चौक पर महाराजा गंगासिंह की प्रतिमा पर गंगानगर विधायक जयदीप बिहाणी, जिला कलक्टर डॉ. मंजू, अतिरिक्त जिला कलक्टर प्रशासन सुभाष कुमार, एडीएम सतर्कता श्रीमती रीना, जिला परिषद सीईओ गिरधर, एसडीएम नयन गौतम, जल संसाधन विभाग के एसई धीरज चावला, एएसपी रघुवीर शर्मा, नगर परिषद आयुक्त रविन्द्र यादव, श्रीमती स्वाति गुप्ता, पूर्व विधायक राजकुमार गौड, सीताराम मौर्य, रतनलाल गणेशगढिया, श्याम धारीवाल सहित अन्य द्वारा पुष्प अर्पित किए गये। लोक कलाकारों द्वारा विभिन्न प्रस्तुतियां दी गईं।हवन, पूजा अर्चना व सर्वधर्म प्रार्थना का आयोजन    इसके पश्चात् शिवपुर हैड पर हवन, पूजा अर्चना व सर्वधर्म प्रार्थना का आयोजन किया गया। जिला कलक्टर डॉ. मंजू ने हवन व पूजा-अर्चना की। सर्वधर्म प्रार्थना सभा में पंडित कृष्ण कुमार तिवाड़ी ने विधि विधान से हवन व पूजा अर्चना करवाई जबकि बालिकाओं ने जिले की खुशहाली की कामना करते हुए सर्वधर्म प्रार्थना की। इस मौके पर विधायक जयदीप बिहाणी, बलदेवसिंह बराड़, अतिरिक्त जिला कलक्टर प्रशासन सुभाष कुमार, एडीएम सतर्कता श्रीमती रीना, जिला परिषद सीईओ गिरधर, नयन गौतम, प्रशिक्षु आईएएस अदिती, यादव, धीरज चावला, एएसपी रघुवीर शर्मा, अशोक असीजा, रविन्द्र यादव, श्रीमती स्वाति गुप्ता, गिरजेशकांत शर्मा, डॉ. अजय सिंघला, डॉ. सुखपालसिंह बराड, हरिराम चौहान, दिनेश राजपुरोहित, पर्यटन विभाग के पवन शर्मा, पूर्व जिला प्रमुख श्रीमती कविता, सीताराम मौर्य, श्रीमती प्रियंका बैलाण, रतनलाल गणेशगढिया, श्याम धारीवाल, आशुतोष गुप्ता, प्रदीप धेरड, मुकेश गोदारा, सारिका चौधरी, लीला चेरीटेबल ट्रस्ट की ओर से प्रेम चौधरी, बृजमोहन सहारण, रतनलाल गणेशगढिया, हाकम सिंह गिल, सहित समस्त अधिकारी-कर्मचारी और बड़ी संख्या में ग्रामीणजन मौजूद रहे। सभी ने महाराजा गंगासिंह को नमन करते हुए हवन में पूर्णाहुति दी। स्वर्गीय करणी सिंह राठौड को भी श्रृंदाजंलि दी गई। पूजा-अर्चना के पश्चात अतिथियों ने शिवपुर हैड स्थित गंगनहर में श्रीफल और पुष्प प्रवाहित किए। महाराजा गंगासिंह की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करने के पश्चात अतिथियों ने पौधारोपण भी किया। अतिथियों द्वारा महाराजा गंगासिंह की स्मृति में बनाए म्यूजियम का अवलोकन किया गया। आयोजन के दौरान बच्चों ने झूलों और खेलों का आनंद उठाया।लोक कलाकारों की प्रस्तुतियों को सराहास्थापना दिवस कार्यक्रम में पर्यटन विभाग की ओर से लोक कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों और लोकगीतां की प्रस्तुतियों से समां बांध दिया। आवो नी पधारो म्हारे देश से शुरूआत करते हुए लोक कलाकारों ने मोर बन आयो रसिया, सतरंगी राजस्थान सहित एक से बढकर एक लोकगीतों और लोक नृत्य की प्रस्तुतियां देकर समां बांध दिया। मौके पर अतिथियों और उपस्थितजनों ने कलाकारों की प्रस्तुतियों की सराहना की। राजस्थानी वेशभूषा में सजे-धजे कलाकारों और बहुरूपिया बने कलाकारां ने भी अतिथियों और ग्रामीणों का मनोरंजन किया। कार्यक्रम में मश्क वादन (रावला मंडी), कच्छी घोडी (निवाई टोंक), बैर नृत्य (बालोतरा-बाडमेर),  राजस्थानी वेशभूषा में रौबीले कलाकार (बीकानेर), बहरूपिया स्वांग (चितौडगढ), सूफी बैंड/लंगा मांगणियार (बाडमेर), कालबेलिया (जोधपुर), चरकुला (बीकानेर), भवई (बाडमेर), पंजाबी भगडा (श्रीगंगानगर) सहित अन्य कलाकारों द्वारा घूमर और चंग-डफ की प्रस्तुतियों से उपस्थितजनों का खूब मनोरंजन किया। जिला परिषद, जिला उद्योग केन्द्र की राजीविका की ओर से ग्रामीण हॉट में खिलौने, हैंडीक्राफ्टस और फूड स्टॉल्स लगाई गई। सांस्कृतिक कार्यक्रम में मंच संचालन राजेश सिडाना व अमृत लाल ने किया।

    मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल करेगा प्रवासी राजस्थानी समुदाय से संवाद

    कोलकाता में 28 अक्टूबर को प्रवासी राजस्थानी मीट -प्रवासी राजस्थानी दिवस के लिए किया जाएगा आमंत्रित जयपुर। कोलकाता के प्रवासी राजस्थानी समुदाय से प्रभावी संवाद स्थापित करने के लिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के दूरदर्शी नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल 28 अक्टूबर को पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता जायेगा। इस दौरान मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में ‘प्रवासी राजस्थानी मीट’ का आयोजन किया जाएगा और प्रवासी राजस्थानियों को 10 दिसंबर 2025 को जयपुर में आयोजित होने वाले प्रथम ‘प्रवासी राजस्थानी दिवस’ के लिए आमंत्रित भी किया जायेगा। मुख्यमंत्री शर्मा के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल प्रवासी राजस्थानियों, औद्योगिक समूहों, व्यवसायियों और उद्यमियों को राज्य के विकास में सक्रिय योगदान के लिए आमंत्रित करेगा। इस दौरान टेक्सटाइल एवं होजरी, केमिकल तथा खनिज जैसे विभिन्न व्यवसायिक क्षेत्रों में कार्यरत व्यावसायिक और औद्योगिक समूहों के प्रमुखों के साथ वन-टू-वन बैठकें भी आयोजित होंगी। उल्लेखनीय है कि प्रवासी राजस्थानी मीट राज्य में निवेश को प्रोत्साहित करने, सहभागिता को सुदृढ़ बनाने, राजस्थान और उसके वैश्विक प्रवासी समुदाय के बीच संबंधों को और प्रगाढ़ करने तथा राज्य की विकास यात्रा में उनकी निरंतर भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। 10 दिसंबर को आयोजित होने वाले प्रवासी राजस्थानी दिवस की तैयारियों की कड़ी में यह तीसरा कार्यक्रम है जो कोलकाता में आयोजित किया जा रहा है। इससे पहले हैदराबाद और सूरत में आयोजित प्रवासी राजस्थानी मीट्स के दौरान मुख्यमंत्री ने प्रवासी राजस्थानियों को राज्य में नए अवसरों की संभावनाएं तलाशने के लिए प्रेरित किया था। इन कार्यक्रमों में उन्होंने प्रवासी राजस्थानी समुदाय के योगदान की सराहना करने के साथ ही राज्य के समावेशी एवं सतत् विकास के लिए उन्हें पूरा सहयोग देने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की थी। प्रवासी राजस्थानी मीट के प्रतिनिधिमण्डल में माननीय नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा, ग्रामीण विकास विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव श्रीमती श्रेया गुहा, उद्योग एवं वाणिज्य विभाग के प्रमुख शासन सचिव श्री आलोक गुप्ता, राजस्थान फाउंडेशन की आयुक्त डॉ मनीषा अरोड़ा, ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टमेंट प्रमोशन के आयुक्त सुरेश कुमार ओला तथा राज्य सरकार के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल होंगे। यह मीट कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) के सहयोग से आयोजित की जा रही है, जो ‘प्रवासी राजस्थानी दिवस 2025’ का इवेंट इंडस्ट्री पार्टनर है। ‘प्रवासी राजस्थानी दिवस 2025’ के बारे में 10 दिसंबर को जयपुर में आयोजित होने जा रहा ‘प्रवासी राजस्थानी दिवस’ राज्य सरकार की एक प्रमुख पहल है, जिसका उद्देश्य वैश्विक प्रवासी राजस्थानी समुदाय से जुड़ाव को सुदृढ़ बनाना है। प्रवासी समुदाय से संपर्क स्थापित करने के लिए उद्योग विभाग और राजस्थान फाउंडेशन को नोडल बनाया गया है। यह आयोजन प्रवासी राजस्थानियों को एक साझा मंच पर लाता है, जहां प्रवासी समुदाय और राज्य सरकार के बीच विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के नए आयाम तलाशे जाते हैं और सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत किया जाता है।