इस दीपावली न सिर्फ धन की देवी लक्ष्मी, बल्कि दरिद्रता की प्रतीक अलक्ष्मी से भी जुड़ी है एक खास परंपरा
सोमवार, 20 अक्टूबर को दीपावली है — रोशनी का पर्व, सौभाग्य का उत्सव और समृद्धि का प्रतीक। इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है ताकि जीवन में धन, सुख और वैभव बना रहे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि लक्ष्मी के साथ-साथ उनकी बड़ी बहन अलक्ष्मी से जुड़ी एक परंपरा भी इस दिन निभाई जाती है?
दीपावली पर लक्ष्मी पूजा का महत्व:
• इस दिन मां लक्ष्मी का स्वागत घर में दीप जलाकर, सफाई कर और पूजा अर्चना से किया जाता है।
• लक्ष्मी को धन, ऐश्वर्य, समृद्धि और सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।
• रात के समय विशेष लक्ष्मी पूजन से घर में स्थायी सुख-समृद्धि का वास होता है।
कौन हैं अलक्ष्मी? क्यों जलाते हैं उनके नाम का दीपक?:
• अलक्ष्मी, लक्ष्मी की बड़ी बहन मानी जाती हैं और इन्हें दरिद्रता, क्लेश और दुर्भाग्य की देवी के रूप में जाना जाता है।
• पौराणिक मान्यता है कि जब समुद्र मंथन हुआ था, तो सबसे पहले अलक्ष्मी प्रकट हुईं थीं। लक्ष्मी उनके बाद प्रकट हुईं।
• शास्त्रों के अनुसार, दीपावली की रात घर के बाहर एक दीपक अलक्ष्मी के लिए जलाना चाहिए ताकि वे घर में प्रवेश न कर सकें।
• यह दीपक मुख्य दरवाजे पर या किसी कोने में रखा जाता है।
अलक्ष्मी का स्वभाव और प्रभाव:
• अलक्ष्मी को गंदगी, झगड़े, आलस्य और अधार्मिकता प्रिय हैं।
• वह उन्हीं घरों में वास करती हैं, जहां नकारात्मकता, अस्वच्छता और कुव्यवहार होता है।
• एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब अलक्ष्मी का विवाह मुनि उद्दालक से हुआ तो उन्होंने खुद कहा कि वह केवल उन घरों में जाती हैं जो गंदे और असंयमी होते हैं।
अलक्ष्मी से बचना है तो अपनाएं सकारात्मक जीवनशैली:
• दीपावली के दिन केवल पूजा करना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि जीवन में अनुशासन, स्वच्छता और धर्म पालन भी जरूरी है।
• नियमित पूजा, जल्दी उठना, साफ-सुथरा घर और सद्व्यवहार से अलक्ष्मी का प्रभाव दूर रहता है।
• जिनके जीवन में पूजा-पाठ के बावजूद धन हानि हो रही हो, उनके ऊपर अलक्ष्मी का प्रभाव माना जाता है।
• शास्त्रों के अनुसार, धार्मिक आचरण, सत्कर्म और सदाचार से ही अलक्ष्मी के प्रभाव को हटाया जा सकता है।
एक दीपक, एक संदेश:
इस दीपावली जब आप पूरे घर में दीपों की रोशनी से लक्ष्मी का स्वागत करें, तो दरवाजे के बाहर एक दीपक अलक्ष्मी के लिए भी जरूर जलाएं।
यह न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि जहां सजगता और सदाचार है, वहां नकारात्मकता टिक नहीं सकती।
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