- एमएनआरई ने स्थिर, विश्वसनीय और सतत नवीकरणीय विकास सुनिश्चित करते हुए भारत के तीव्र विस्तार से लेकर प्रणालीगत एकीकरण तक के परिवर्तन को रेखांकित किया
- भारत के 2030 स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को कार्यनीतिक स्थायित्व के साथ आगे बढ़ाने के लिए ग्रिड, वित्तीय प्रणालियों और बाजार डिजाइन के साथ नवीकरणीय ऊर्जा का समन्वयन किया
- हाइब्रिड और आरटीसी परियोजनाओं, अपतटीय पवन, भंडारण, पीएम कुसुम और पीएमएसजीवाई के तहत वितरित सौर, ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर के साथ आकार ले रहा है भारत के नवीकरणीय विकास का अगला चरण
भारत का नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र एक नए रूपान्तरकारी चरण में प्रवेश कर रहा है, जो न केवल क्षमता वृद्धि की गति से बल्कि इसकी प्रणालियों की मजबूती, स्थिरता और गहनता से भी परिभाषित होगा। एक दशक के रिकॉर्ड विस्तार के बाद, अब फोकस मज़बूत, वितरण योग्य और लचीली स्वच्छ ऊर्जा संरचना के निर्माण पर केंद्रित है जो 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म क्षमता प्राप्त करने के देश के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक हो सके।
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने रेखांकित किया है कि भारत की नवीकरणीय विकास की गाथा विश्व में सबसे तेज और सबसे अग्रगामी बनी हुई है, जो गति से लेकर प्रणाली की मजबूती, मात्रा से लेकर गुणवत्ता और विस्तार से लेकर स्थायी एकीकरण तक विकसित हो रही है।
मात्रा से गुणवत्ता की ओर बदलाव
पिछले दशक में भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता पांच गुना से भी अधिक बढ़ी है, जो 2014 में 35 गीगावाट से कम थी और आज 197 गीगावाट (बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को छोड़कर) से भी अधिक हो गई है। यह असीम वृद्धि अनिवार्य रूप से एक ऐसे बिंदु पर पहुंचती है, जहां अगले कदम के लिए न केवल अधिक मेगावाट की आवश्यकता होगी, बल्कि गहन प्रणाली सुधारों की भी जरूरत होगी।
यह सेक्टर उस चरण में प्रवेश कर चुका है, जहां फोकस क्षमता विस्तार से हटकर क्षमता अवशोषण पर केंद्रित हो रहा है। अब हम ग्रिड एकीकरण, ऊर्जा भंडारण, संकरण और बाज़ार सुधारों पर काम कर रहे हैं, जो 500 गीगावाट से अधिक के गैर-जीवाश्म भविष्य की वास्तविक नींव हैं। इस अर्थ में क्षमता वृद्धि में हाल में आई नरमी एक पुनर्संतुलन है, एक आवश्यक विराम है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भविष्य का विकास स्थिर, प्रेषण योग्य और लचीला हो।
भारत की नवीकरणीय ऊर्जा वृद्धि विश्व में सबसे तेज बनी हुई है, जो बहु-मार्गीय विस्तार से प्रेरित है
40 गीगावाट से अधिक की नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं वर्तमान में पीपीए, पीएसए या ट्रांसमिशन कनेक्टिविटी अर्जित करने के उन्नत चरणों में हैं - जो इस क्षेत्र में प्रतिबद्ध निवेश की मजबूत पाइपलाइन का स्पष्ट प्रतिबिंब है। वास्तविकता यह है कि भारत का नवीकरणीय ऊर्जा बाजार अपने ग्रिड और संविदात्मक संस्थानों की गति से आगे निकल गया है, जो व्यापक स्तर पर ऊर्जा परिवर्तन से गुजर रहे सभी देशों के लिए एक समान चुनौती है।
इस संदर्भ में, नवीकरणीय ऊर्जा के लिए व्यापक पर बोलियां लगाने से पहले राज्यों/डिस्कॉम द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा खरीद दायित्व को लागू करना, बिजली की निकासी के लिए ट्रांसमिशन लाइनों को उन्नत करना और ग्रिड एकीकरण के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना शीर्ष प्राथमिकताएं बनी हुई हैं।
चालू वर्ष में केंद्रीय नवीकरणीय ऊर्जा कार्यान्वयन एजेंसियों (आरईआईए) ने 5.6 गीगावाट के लिए बोलियां लगाई हैं, जबकि राज्य एजेंसियों ने 3.5 मेगावाट के लिए बोलियां लगाई हैं। इसके अतिरिक्त, वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं द्वारा कैलेंडर वर्ष 2025 में लगभग 6 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता जोड़ने की संभावना है। इस प्रकार, नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता वृद्धि न केवल आरईआईए द्वारा संचालित बोलियों के माध्यम से, बल्कि कई माध्यमों से हो रही है।
वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों ने भी इसमें भूमिका निभाई है: आपूर्ति-श्रृंखला में व्यवधान, मॉड्यूल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और कठिन वित्तीय परिस्थितियों ने कमीशनिंग की समय-सीमा को धीमा कर दिया है। फिर भी, भारत वार्षिक रूप से 15-25 गीगावाट नई नवीकरणीय क्षमता जोड़ना जारी रखे हुए है, जो विश्व में सबसे तेज़ दरों में से एक है।
एक सुविचारित नीतिगत धुरी
पिछले दो वर्षों में नीतिगत ध्यान सुविचारित विशुद्ध क्षमता वृद्धि से हटकर प्रणाली डिज़ाइन की ओर स्थानांतरित हो गया है। ऊर्जा भंडारण या अधिकतम विद्युत आपूर्ति वाली नवीकरणीय ऊर्जा (आरईपी) के लिए निविदाएं अब नीलामी में प्रमुखता से शामिल हैं, जो दृढ़ और प्रेषण योग्य हरित ऊर्जा की ओर एक कदम का संकेत है। बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (बीईएसएस) को ग्रिड और परियोजना दोनों स्तरों पर एकीकृत किया जा रहा है, जो एक नए बाज़ार के उद्भव का संकेत है। उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना, घरेलू सामग्री आवश्यकता, शुल्क अधिरोपण, एएलएमएम के कार्यान्वयन और पूंजीगत उपकरणों के लिए शुल्क छूट के माध्यम से प्रोत्साहित घरेलू विनिर्माण, आयात निर्भरता को कम कर रहा है और औद्योगिक गहराई सृजित कर रहा है।
इसके अतिरिक्त, जीएसटी संरचनाओं और एएलएमएम प्रावधानों का पुनर्निर्धारण एक कार्यनीतिक समेकन चरण का प्रतिनिधित्व करता है, जो राजकोषीय नीति को घरेलू मूल्य श्रृंखला की गहराई और प्रौद्योगिकी आश्वासन के दोहरे उद्देश्यों के साथ संयोजित करता है। पारंपरिक होने के बजाय, ये समायोजन लागतों को स्थिर करने, मॉड्यूल विश्वसनीयता बढ़ाने और भारत के परिपक्व होते सौर विनिर्माण इकोसिस्टम में परिमाण की दक्षता को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। इसके साथ ही, बैटरी भंडारण परिनियोजन का मार्ग व्यवहार्यता अंतर-वित्त पोषित परियोजनाओं, संप्रभु निविदाओं और उभरते भंडारण दायित्वों के माध्यम से आगे बढ़ रहा है, जो दृढ़, प्रेषण योग्य नवीकरणीय क्षमता की नींव स्थापित कर रहा है। ये उपाय विस्तार-आधारित विकास से एक अधिक लचीले, गुणवत्ता-संचालित और प्रणाली-एकीकृत नवीकरणीय ऊर्जा ढांचे की ओर बदलाव का संकेत देते हैं।
ऐसे परिवर्तनों से दृष्टिगोचर क्षमता आंकड़े प्राप्त करने में समय लगता है, लेकिन वे स्थायी संरचनात्मक प्रगति का प्रतिनिधित्व करते हैं – यह प्रगति एक मजबूत ऊर्जा भविष्य का आधार बनती है।
ट्रांसमिशन सुधारों से 200 गीगावाट से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का विकास होगा
ट्रांसमिशन एक नए मोर्च के रूप में उभरा है। भारत के ग्रिड को 500 गीगावाट के लिए 2.4 लाख करोड़ रुपये की ट्रांसमिशन योजना के माध्यम से पुनर्परिकल्पित किया जा रहा है, जो नवीकरणीय ऊर्जा-समृद्ध राज्यों को मांग केंद्रों से जोड़ेगा। सरकार हरित ऊर्जा गलियारों और राजस्थान, गुजरात और लद्दाख से नई उच्च क्षमता वाली ट्रांसमिशन लाइनों के माध्यम से ट्रांसमिशन बुनियादी ढांचे में निवेश को प्राथमिकता दे रही है। हालांकि ये परियोजनाएं बहु-वर्षीय प्रयास हैं, लेकिन एक बार चालू होने पर ये 200 गीगावाट से अधिक नई नवीकरणीय क्षमता प्रस्तुत करेगी। इस प्रकार वर्तमान चरण अस्थायी है - एक संक्रमणकालीन अंतराल है, न कि एक संरचनात्मक सीमा है।
सरकार ने पहले ही एचवीडीसी कॉरिडोर बनाने और अंतर-क्षेत्रीय ट्रांसमिशन क्षमता को वर्तमान 120 गीगावाट से बढ़ाकर 2027 तक 143 गीगावाट तथा 2032 तक 168 गीगावाट करने की योजना बना ली है।
इसके अतिरिक्त, सीईआरसी जनरल नेटवर्क एक्सेस (जीएनए) विनियमन, 2025 में हाल ही में किए गए संशोधनों ने ट्रांसमिशन तत्परता के दृष्टिकोण में उल्लेखनीय सुधार किया है। समय-विभाजित एक्सेस - 'सौर-घंटे' और 'गैर-सौर-घंटे' - की शुरुआत से सौर, पवन और भंडारण परियोजनाओं के बीच गलियारों का गतिशील साझाकरण संभव हो गया है, जिससे निरुपयोगी क्षमता का दोहन हो रहा है और नवीकरणीय ऊर्जा समृद्ध राज्यों में भीड़भाड़ कम हो रही है। स्रोत लचीलेपन, सख्त कनेक्टिविटी मानदंडों और सबस्टेशन-स्तरीय पारदर्शिता के प्रावधान ग्रिड एक्सेस को और अधिक सुव्यवस्थित बनाते हैं और कल्पित आवंटन पर अंकुश लगाते हैं। ये सुधार ट्रांसमिशन उपयोग को अनुकूलित करने और अटकी हुई नवीकरणीय परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने की दिशा में एक निर्णायक कदम हैं, जो इस सेक्टर की प्रमुख कार्यान्वयन चुनौतियों में से एक का प्रत्यक्ष समाधान करते हैं।
भारत स्वच्छ ऊर्जा पूंजी के लिए लगातार आकर्षण का केंद्र बना हुआ है
अल्पकालिक विलंब के बाद, भारत स्वच्छ ऊर्जा पूंजी के लिए एक आकर्षण बना हुआ है। नवीकरणीय ऊर्जा शुल्क वैश्विक स्तर पर सबसे कम दरों में से एक बने हुए हैं, जिससे दीर्घकालिक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित होती है। भारत स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में निवेश के लिए सबसे आकर्षक गंतव्यों में से एक बना हुआ है और अंतर्राष्ट्रीय रुचि उच्च बनी हुई है। वैश्विक निवेशक भारत से बाहर नहीं जा रहे हैं; वे एकीकृत और भंडारण-समर्थित पोर्टफोलियो की ओर रुख कर रहे हैं। इस क्षेत्र के मूल तत्व - मजबूत मांग वृद्धि, नीतिगत निरंतरता और लागत प्रतिस्पर्धात्मकता - मजबूती से बरकरार हैं।
वास्तविक आर.ई. कहानी: विस्तार से एकीकरण तक
वास्तविक कहानी क्षरण की नहीं, विकास की है। भारत का स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन एक ऐसे चरण में प्रवेश कर रहा है जहां मुख्य चुनौतियां एकीकरण, विश्वसनीयता और परिमाण की दक्षता से संबंधित हैं। इस संदर्भ में परियोजनाओं की पाइपलाइन का अस्थायी रूप से स्थिर होना परिपक्वता का प्रतीक है। यह सेक्टर अब - नवीकरणीय ऊर्जा को ग्रिड अवसंरचना, वित्तीय अनुशासन और दीर्घकालिक बाजार डिजाइन के साथ समन्वयित करने का कठिन काम कर रहा है।
वास्तविक ग्रिड विस्तार के पूरक के रूप में वर्चुअल पावर परचेज एग्रीमेंट (वीपीपीए) और अन्य बाजार-आधारित उपकरण नवीकरणीय ऊर्जा परिनियोजन में तेजी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वीपीपीए कॉर्पोरेट और संस्थागत खरीदारों को खरीद को वास्तविक वितरण से अलग करते हुए अक्षय ऊर्जा का आभासी रूप से अनुबंध करने की अनुमति देते हैं। इससे मांग में वृद्धि होती है, डेवलपर्स को मूल्य निश्चितता मिलती है और ग्रिड कनेक्टिविटी की प्रतीक्षा कर रही परियोजनाओं में निजी निवेश को प्रोत्साहन मिलता है। ग्रीन एट्रिब्यूट ट्रेडिंग, बाजार-आधारित सहायक सेवाओं और डे-अहेड तथा रियल-टाइम बाजार एकीकरण के साथ, ये इंस्ट्रूमेंट लचीले, मांग-संचालित नवीकरणीय विकास के लिए एक मजबूत इकोसिस्टम का निर्माण करेंगे। कॉर्पोरेट खरीद, ग्रिड लचीलेपन और राष्ट्रीय डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों को संयोजित करने के लिए, एमएनआरई और विद्युत मंत्रालय से सक्षम नीतिगत समर्थन के साथ, ऐसे तंत्र विद्युत (संशोधन) विधेयक के तहत या सीईआरसी बाजार विनियमों के माध्यम से रणनीतिक रूप से शामिल किए जाने की प्रक्रिया में हैं।
भविष्य की रूपरेखा
विकास का अगला चरण पहले से ही आकार ले रहा है :
- राजस्थान, गुजरात और कर्नाटक में बड़ी हाइब्रिड और आरटीसी परियोजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं।
- अपतटीय पवन और पम्पयुक्त जल भंडारण में तेजी आ रही है।
- पीएम सूर्याघर और पीएम कुसुम के अंतर्गत वितरित सौर और कृषिवोल्टीय पहल ग्रामीण भागीदारी को बढ़ा रही हैं।
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन नवीकरणीय ऊर्जा को औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन से जोड़ रहा है।
- हरित ऊर्जा कॉरिडोर चरण III के सुदृढ़ीकरण के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण
ये वे कारक हैं जो भारत को केवल गति से नहीं, बल्कि कार्यनीतिक स्थिरता से उसके 2030 के लक्ष्यों की ओर अग्रसर करेंगे।
विकसित भारत: नवीकरणीय ऊर्जा परिवर्तन का विकास
भारत का स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन तिमाही आंकड़ों से नहीं, बल्कि संस्थागत स्थायित्व और स्थिरता से परिभाषित होता है। एक दशक की भागदौड़ के बाद, यह सेक्टर ग्रिड की मज़बूती, स्थानीय विनिर्माण और वित्तीय स्थिरता के साथ क्षमता का समन्वय करके आगे बढ़ना सीख रहा है। भारत की नवीकरणीय ऊर्जा यात्रा समेकन के दौर से गुज़र रही है - जो यह सुनिश्चित करती है कि जब अगली गतिवृद्धि होगी, तो यह अधिक तेज और कहीं अधिक टिकाऊ होगी। भारत की नवीकरणीय ऊर्जा गाथा ने गति नहीं खोई है। इसने परिपक्वता अर्जित की है।