पारंपरिक सोलह श्रृंगार और दीपों की रौशनी से दमक उठीं महिलाएं, युवतियों में दिखा फैशन और परंपरा का अनोखा संगम
जयपुर। दीपावली से एक दिन पूर्व मनाई जाने वाली रूप चतुर्दशी ने शहर को रौनक और रंगों से भर दिया। सांझ ढलते ही मोहल्लों, गलियों और चौबारों में दीपों की कतारें जगमगा उठीं। वहीं घरों में महिलाओं और युवतियों ने सोलह श्रृंगार से स्वयं को सजाया-संवारा। हर चेहरा, हर आंगन, मानो दीपोत्सव की चमक से भर गया।
सोलह श्रृंगार में झलका आत्मविश्वास और आस्था
रूप चतुर्दशी को नारी सौंदर्य और आत्म-विश्वास का पर्व कहा जाता है। इस दिन महिलाएं पारंपरिक रीति से स्नान कर, उबटन और सुगंधित तेलों से शरीर का अभिषेक करती हैं। इसके बाद नए वस्त्र पहनकर सोलह श्रृंगार करती हैं—काजल, बिंदी, चूड़ियां, गजरा, बिछुए, बिंदिया और आभूषणों की खनक से पूरा वातावरण मोहक बन जाता है।
बाजारों में उमड़ा उत्सव का जोश
शहर के बाजारों में इस दिन विशेष रौनक रही। सौंदर्य प्रसाधन, मेंहदी, पारंपरिक परिधान और गहनों की दुकानों पर महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ी। हाथों में मेंहदी की डिज़ाइन बनवाती युवतियां, चेहरे पर हल्की मुस्कान और आंखों में उत्साह लिए, त्योहार की तैयारी में मग्न नजर आईं।
आधुनिकता और परंपरा का अद्भुत मेल
रूप चतुर्दशी ने एक बार फिर यह साबित किया कि आधुनिकता के दौर में भी भारतीय नारी अपनी परंपराओं से गहराई से जुड़ी है। युवतियों ने इस अवसर पर पारंपरिक श्रृंगार में आधुनिकता का स्पर्श जोड़ते हुए संस्कृति और स्टाइल का सुंदर संतुलन प्रस्तुत किया। पारंपरिक साड़ी और लहंगे के साथ आधुनिक ज्वेलरी और हल्के मेकअप ने उनका लुक और भी आकर्षक बना दिया।
परिवारों में उमड़ा आत्मीयता का वातावरण
शाम ढलते ही घरों में दीपक जलाए गए और परिवारों ने एक-दूसरे के साथ उल्लास और अपनापन साझा किया। रूप चतुर्दशी का यह पर्व न केवल सौंदर्य का, बल्कि आत्मविश्वास, सकारात्मकता और नई ऊर्जा का भी प्रतीक बन गया।
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