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    दूसरे में दोष देखने की प्रवृति मानव का गुण नहीं: इंद्रेश उपाध्याय

    14 hours ago

    - श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह का दूसरा दिन

    -भागवत मर्मज्ञ इन्द्रेश उपाध्याय ने श्रद्धालुओं को परम धर्म का गहन बोध कराया

    कोटा. छप्पन भोग परिसर में एलन मानघना परिवार की और से आयोजित की जा रही श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान सप्ताह के दूसरे दिन प्रख्यात कथावाचक वृंदावन निवासी मर्मज्ञ इन्द्रेश उपाध्याय ने भगवान की विभिन्न लीलाओं का वर्णन किया। उन्होनें कहा कि सांसारिक लोगों को रिझाने से बेहतर है कि आप श्रीजी और ठाकुरजी को रिझाने में अपनी भक्ति को समर्पित करें। क्योंकि सांसारिक लोग क्षणिक समय के बाद आपसे रूठने लगते हैं लेकिन यदि ठाकुरजी आपसे एक बार जुड़ गए तो आपके जीवन की नैया वही पार लगाएंगे। 

    कथा प्रारंभ होने से पूर्व एलन मानणना परिवार की कृष्णादेवी मानधना, गोविन्द माहेश्वरी, राजेश माहेश्वरी, नवीन माहेश्वरी एवं बृजेश माहेश्वरी ने व्यास पीठ का पूजन-अर्चन किया। राजस्थान सरकार के उर्जा मंत्री हीरालाल नागर भी सपरिवार कथा श्रवण करने पहुंचे। छप्पन भोग में आयोजित भागवत कथा में रोजाना हजारों श्रद्धालु कथा का रसपान कर रहे हैं। 

    वेदरूपी वृक्ष का पका हुआ फल है भागवत

    इन्द्रेश उपाध्याय ने भागवत के महातम्य के बारे में बताते हुए कहा कि वेद रूपी वृक्ष का पका हुआ फल श्रीमद्भागवत पुराण है। क्योंकि यह भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से परिपूर्ण है और इसमें कोई कड़वापन नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह से रसीला और मधुर है। वेद को इच्छा पूरी करने वाला एक वृक्ष माना जाता है और श्रीमद्भागवत उस वृक्ष का पका हुआ, रसभरा और सबसे मीठा फल है। कलियुग में जीवन के सहज कल्याण के लिए ही वेदव्यासजी ने श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना की थी। भागवत कथा सुनने से भक्तों में भक्ति का संचार होता है और जिस स्थान पर यह कथा होती है, वह स्थान तीर्थ बन जाता है। दूसरे में दोष देखने की प्रवृति मानव का असल गुण नहीं है। सबके प्रति सम भाव रखने वाला समत्व होता है और जो स्वयं में अवगुण देखता है और सबमें गुण देखे वही संत है।

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