जयपुर। आयुर्वेद के सभी प्रामाणिक ग्रंथ संस्कृत में हैं। इनमें वर्णित रोगों, औषधियों और सिद्धांतों की शब्दावली भी संस्कृत में ही है। यदि आयुर्वेद से संस्कृत को अलग कर दिया गया, तो यह अपनी मूल आत्मा खो देगा। यह बात भारतीय चिकित्सा चिकित्सक संस्थान द्वारा झोटवाड़ा में आयोजित धन्वंतरि जयंती समारोह में मुख्य अतिथि शास्त्री कोसलेंद्रदास ने कही। जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के दर्शन एवं योग विभागाध्यक्ष कोसलेंद्रदास ने कहा कि आयुर्वेद केवल उपचार पद्धति नहीं बल्कि जीवन दर्शन है। इसके मूल शास्त्रों में वर्णित ज्ञान आज भी प्रासंगिक है। आवश्यकता है कि आयुर्वेद के विद्यार्थी संस्कृत के अध्ययन को अनिवार्य रूप से अपनाएं, ताकि परंपरा और विज्ञान का सेतु पुनः सुदृढ़ हो। कोसलेंद्रदास ने यह भी कहा कि आयुर्वेद में नये अनुसंधान होने चाहिए लेकिन साथ ही प्राचीन ग्रंथों के गूढ़ रहस्यों को भी आधुनिक दृष्टि से सामने लाया जाए। समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो. ओमप्रकाश शर्मा ने कहा कि आयुर्वेद के सिद्धांत अपनाकर युवा पीढ़ी न केवल स्वस्थ रह सकती है, बल्कि असंतुलित जीवनचर्या को भी संतुलित बना सकती है। कार्यक्रम में वैद्य मदन शंकर शर्मा और वैद्य चंद्रकांत गौतम ने भी व्याख्यान प्रस्तुत किए।
संयोजक डॉ. रमाशंकर शर्मा ने बताया कि समारोह में वैद्य गिर्राज प्रसाद शर्मा और वैद्य राजेंद्र प्रसाद शर्मा को आयुर्वेद क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
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